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स्मार्ट सिटी सिर्फ नाम, ग्राउंड लेवल पर नहीं हुआ काम, रैं¨कग में धड़ाम

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में चंडीगढ़ बुरी तरह पिछड़ गया है। जो सपने इस प्रोज

By JagranEdited By: Published: Fri, 08 Feb 2019 08:44 PM (IST)Updated: Fri, 08 Feb 2019 08:44 PM (IST)
स्मार्ट सिटी सिर्फ नाम, ग्राउंड लेवल पर नहीं हुआ काम, रैं¨कग में धड़ाम
स्मार्ट सिटी सिर्फ नाम, ग्राउंड लेवल पर नहीं हुआ काम, रैं¨कग में धड़ाम

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में चंडीगढ़ बुरी तरह पिछड़ गया है। जो सपने इस प्रोजेक्ट की लां¨चग पर दिखाए गए थे, उन्हें पूरा करने में प्रशासन नाकाम रहा है। करोड़ों की ग्रांट मिलने के बाद भी प्रशासन कोई काम नहीं करवा सका। मिनिस्ट्री ऑफ हाउ¨सग एंड अर्बन अफेयर्स ने स्मार्ट सिटी की जो रैं¨कग जारी की है, उसमें चंडीगढ़ को 67वां रैंक मिला है। महज 28.26 स्कोर ही मिला है। जबकि 360.21 स्कोर के साथ नागपुर पहले और भोपाल 329.32 स्कोर के साथ दूसरे नंबर पर रहा है। मिनिस्ट्री ने यह रैं¨कग प्रोजेक्ट के तहत मिले कुल बजट में से कितनी रकम खर्च हुई, टेंडर कितने जारी हुए, कितने काम पूरे हुए, कितने बजट के वर्क ऑर्डर जारी हुए की कंपाइल रिपोर्ट के आधार पर जारी की है। चंडीगढ़ स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट 6100 करोड़ रुपये का है। इसमें से 296 करोड़ रुपये प्रशासन पिछले साल तक मिल चुके थे। वर्ष 2019-20 के बजट में भी 100 करोड़ रुपये मिले हैं। लेकिन चंडीगढ़ स्मार्ट सिटी लिमिटेड कंपनी इस पैसे को समय रहते खर्च ही नहीं कर पाई। जबकि नागपुर, भोपाल और सूरत जैसे शहरों समय पर सही प्ला¨नग कर अधिकतर बजट खर्च कर दिया। लुधियाना से भी पिछड़े

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ग्राउंड स्तर पर काम करने में चंडीगढ़ लुधियाना से भी पिछड़ गया। लुधियाना को 78.42 स्कोर के साथ 37वां रैंक मिला है। इससे पहले स्मार्ट सिटी के फ‌र्स्ट फेज में भी लुधियाना का नाम चंडीगढ़ से पहले आया था। अमृतसर को 13.5 अंकों के साथ 77वां रैंक मिला है। जबकि हरियाणा सीएम सिटी करनाल इन सबसे पीछे है। करनाल 0.48 स्कोर के साथ 94वें अंक पर रहा है। ढाई साल में 25 करोड़ भी नहीं पाए खर्च

26 मई 2016 को चंडीगढ़ का नाम स्मार्ट सिटी के लिए चुना गया था। नाम चयन के बाद शहर की सूरत बदलने के बड़े बड़े सपने दिखाए गए। लेकिन ढाई साल बीत जाने के बाद अब रिजल्ट सबके सामने है। 396 करोड़ रुपये में से लगभग 25 करोड़ भी खर्च नहीं हो सका है। इस दौरान केवल सेक्टर-17 ब्रिज में स्मार्ट सिटी का कार्यालय ही बन पाया है। जिस पर करीब 5 करोड़ रुपये का खर्चा आया है। ढाई साल बाद 31 दिसंबर 2018 को करीब 1500 करोड़ रुपये के टेंडर जारी किए गए हैं। अभी इनकी टेंडर प्रक्रिया ही चल रही है। काम कब शुरू होंगे, अभी यह स्पष्ट नहीं है। इस प्रोजेक्ट के तहत अभी तक कोई भी ऐसा काम नहीं है, जिसका लाभ शहर को मिलना शुरू हो गया हो। 3.38 करोड़ रुपये कंसलटेंट कंपनी को दिए गए हैं। डेवलपमेंट पर बेहद कम खर्च हो पाया है। स्मार्ट सिटी के तहत अधिकारियों की दर्जनों बैठक हो चुकी है। स्मार्ट सिटी के तीन सीईओ बदल चुके हैं। साइकिल ट्रैक बने, लेकिन उनपर चलता कोई नहीं

प्रशासन ने 19 करोड़ रुपये खर्च कर पूरे शहर में 90 किलोमीटर साइकिल ट्रैक बनाए। पहली बार फास्ट मू¨वग मध्य और दक्षिण मार्ग के साथ भी साइकिल ट्रैक बनाए गए। लेकिन जिनके लिए यह बनाए गए हैं वह इन पर न चलकर मेन रोड पर ही चल रहे हैं। पुलिस इन्हें ट्रैक पर चढ़ाती है, आगे जाकर फिर मेन रोड पर आ जाते हैं। सेक्टर-16-17 को जोड़ने वाला सब-वे अधर में

स्मार्ट सिटी के तहत प्रशासन ने सेक्टर-17 को सेक्टर-16 को जोड़ने के लिए सब-वे का निर्माण 2017 में शुरू हुआ था। छह महीने में इसे पूरा करने का लक्ष्य था, लेकिन सवा साल बीतने के बाद भी यह शुरू नहीं हो सकता है। इस प्रोजेक्ट पर प्रशासन लगभग 7 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। लेकिन यह सिर्फ पैदल यात्रियों के लिए ही होगा। इससे कोई वाहन नहीं गुजर सकेगा। इसी वजह से लोग इतनी रकम इस पर खर्च करने पर सवाल भी उठाते रहे हैं। पार्किंग सिर्फ नाम की स्मार्ट

स्मार्ट सिटी में स्मार्ट पार्किंग बनाने का दावा किया गया था। लेकिन स्मार्ट पार्किंग में वह सभी प्रावधान आजतक लागू नहीं हो पाए, जिसके लिए इसे घंटे के हिसाब से महंगा किया गया है। आम लोगों के साथ ही एमसी हाउस भी इस पर सवाल उठाता रहा है। काम करने वाले स्टाफ की किल्लत

स्मार्ट सिटी के तहत प्रशासन ने एसपीवी (स्पेशल पर्पज व्हीकल) का गठन किया था। जिसके चेयरमैन प्रशासक के सलाहकार, सीईओ नगर निगम कमिश्नर, निदेशक गृह सचिव और वित्त सचिव हैं। अभी भी कंपनी के पास ग्राउंड लेवल पर काम करने वाले स्टाफ की कमी है।


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