अकाली दल का आरोप, कांग्रेस की मदद के लिए नया मोर्चा बना रहे निष्कासित टकसाली नेता
टकसाली नेता रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, सेवा सिंह सेखवां और डॉ. रतन सिंह अजनाला द्वारा अलग अकाली दल बनाए जाने की घोषणा पर अकाली दल ने कड़ी टिप्पणी की है।
जेएनएन, चंडीगढ़। टकसाली नेता रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, सेवा सिंह सेखवां और डॉ. रतन सिंह अजनाला द्वारा अलग अकाली दल बनाए जाने की घोषणा पर अकाली दल ने कड़ी टिप्पणी की है। अकाली दल ने कहा कि पूर्व टकसाली अकाली नेता कांग्रेस के हाथों में खेल रहे हैं। वे शिअद तथा सिख पंथ को कमजोर करने के लिए कांग्रेस के इशारे पर नया फ्रंट बना रहे हैं।
पूर्व मंत्रियों व शिअद के सीनियर उपाध्यक्षों निर्मल सिंह काहलों व गुलजार सिंह रणीके ने कहा कि निष्कासित नेताओं द्वारा सुखपाल खैहरा तक पहुंच करने के ताजा ऐलान ने साबित कर दिया है कि इन तीनों द्वारा बनाया जा रहा नया मोर्चा कांग्रेस मोर्चा ही होगा। उन्होने कहा कि खैहरा खुद एक कांग्रेसी मोहरा है, उससे हाथ मिलाकर निष्कासित नेताओं ने साबित कर दिया है कि वे कांग्रेस के मोहरे हैं।
अकाली नेताओं ने कहा कि निष्कासित अकाली नेता खुद को बहुत बड़े पंथक नेता कहते थे, लेकिन पंथक नेता सुखपाल खैहरा जैसों से कैसे हाथ मिला सकता है। उन्होने कहा कि खैहरा ने अपने राजनीतिक जीवन के कुल 22 सालों में से 19 साल इंदिरा कांग्रेस में बिताए हैं। उसने दरबार साहिब पर हमले का भी समर्थन किया था व कभी भी 1984 में हजारों सिखों के कत्लेआम के लिए जिम्मेदार जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार के खिलाफ कार्रवाई की मांग नहीं की।
अकाली नेताओं ने कहा कि कितनी हैरानी की बात है कि यह निष्कासित त्रिवेणी लोगों को यह कहकर बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही है कि वे अकाली दल में परिवारवाद के खिलाफ लड़ रहे हैं। उन्होने कहा कि यदि ऐसा है तो इन निष्कासित अकाली नेताओं के पुत्र प्रेस कांफ्रेंस में क्यों बैठे थे? क्या यह सच नहीं है कि इन निष्कासित नेताओं के पुत्र अपने पिता के राजनीतिक कार्यभार को संभाल रहे हैं तथा इनके पुत्रों को सरेआम इनके पिताओं का राजनीतिक वारिस बनाया जा चुका है।
कई बार टूटा अकाली दल
यह पहला मौका नहीं है जब अकाली दल टूटा हो। इससे पहले दरबार साहिब पर हमले के बाद 1985-86 में भी अकाली दल में टूट हुई थी। इस दौरान रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने अकाली दल पंथक, बाबा जोगिंदर सिंह ने अकाली दल यूनाइटेड और सिमरजीत सिंह मान ने अकाली दल मान का गठन किया था, जबकि उसके बाद रवि इंदर सिंह ने अकाली दल 1920 का भी गठन किया।
अकाली दल के इतिहास में सबसे बड़ा राजनीतिक संकट 1999 में तब पैदा हुआ जब कद्दावर पंथक नेता गुरचरण सिंह टोहड़ा ने अकाली दल को छोड़ कर सर्वहिंद अकाली दल बना ली थी। टोहड़ा की अगुवाई में 2002 के विधानसभा चुनाव में सर्वहिंद अकाली दल ने चुनाव भी लड़ा, लेकिन किसी भी सीट पर जीत हासिल नहीं की। अलबत्ता अकाली दल को जरूर नुकसान हुआ और कांग्रेस स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में आई। हालांकि बाद में टोहड़ा फिर अकाली दल में आ गए थे।