101 वर्ष का हुआ शिरोमणि अकाली दल, चुनौतियां कायम, शताब्दी बाद भी जारी है संघर्ष
शिरोमणि अकाली दल कांग्रेस के बाद दूसरी ऐसी पार्टी है जो अपने गठन का 101 वर्ष पूरा कर चुकी है। अकाली दल का गठन 14 दिसंबर 2020 को हुआ था। इन वर्षों में पार्टी ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं।
इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। शिरोमणि अकाली दल (शिअद ) मंगलवार को शताब्दी स्थापना समारोह मनाने जा रहा है। ऐतिहासिक गुरुद्वारों को महंतों के कब्जे से आजाद करवाने के उदेश्य से 14 दिसबंर, 1920 को गठित इस पार्टी ने कई उतार-चढ़ाव देखे। इसके सामने अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कई बड़ी चुनौतियां हैं।
पंथक से सेकुलर पार्टी बना शिअद
वर्ष 1920 से लेकर 1996 तक इसे पंथक हितों के लिए लडऩे वाली पार्टी ही माना जाता रहा। वर्ष 1996 में मोगा कांफ्रेंस के बाद पार्टी ने सैद्धांतिक तौर पर बड़ा बदलाव करते हुए खुद को पंथक पार्टी से सेकुलर पार्टी के रूप में बदल लिया। इस दौरान उसने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया, जो वर्ष 2020 तक कायम रहा। तीन कृषि कानूनों का मामला न आता तो संभव है यह मामला गठबंधन आगे भी जारी रहता।
गुरुद्वारों को आजाद करवाने के लिए लड़ी लड़ाई
वर्ष 1920 में गुरुद्वारों को महंतों से आजाद करवाने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया गया तो उसे शिरोमणि अकाली दल कहा गया। इस बीच उसकी सबसे बड़ी लड़ाई गुरुद्वारों को आजाद करवाना था । इसके लिए कई मोर्चे लगे। वर्ष 1925 में गुरुद्वारा एक्ट बनाकर सभी ऐतिहासिक गुरुद्वारों के रखरखाव की जिम्मेदारी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को दे दी गई। महात्मा गांधी ने इस जीत को आजादी की लड़ाई की पहली जीत बताया।
शिअद ने 1937 में पहली बार रखा चुनावी मैदान में कदम
सिखों के मुद्दों पर लडऩे वाले शिअद ने 1937 में पहली बार चुनावी मैदान में कदम रखा और 10 सीटें हासिल कीं। हालांकि, पार्टी सिकंदर हयात खान की सरकार के दौरान विपक्ष में बैठी। वर्ष 1947 में जब मजहब के आधार पर देश का बंटवारा हुआ तो शिअद के तत्कालीन प्रधान मास्टर तारा सिंह ने इसका विरोध किया। हालांकि, तब मोहम्मद जिन्ना ने मास्टर तारा सिंह को यहां तक कहा कि वे अपने हिसाब से अपने मजहब का संविधान बना लें, लेकिन पाकिस्तान के साथ आ जाएं। मास्टर तारा सिंह ने ऐसा नहीं किया और भारत के साथ ही रहना मंजूर किया।
संघर्ष कर पंजाब का विभाजन करवाया
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी उन्हें ऐसा क्षेत्र देने का वादा किया, जहां सिख आजादी से रह सकेंगे। इसे नेहरू-तारा सिंह पैक्ट कहा गया, लेकिन जवाहर लाल नेहरू के अपना वादा पूरा न करने के चलते शिरोमणि अकाली दल ने फिर से संघर्ष शुरू कर दिया। इसी संघर्ष की वजह से 1966 में पंजाब का विभाजन किया गया और मौजूदा पंजाब अस्तित्व में आया।
शिअद ने किया था आपातकाल का सबसे पहले विरोध
1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया तो सबसे पहला विरोध शिरोमणि अकाली दल की ओर से किया गया। पार्टी के कई सीनियर नेता, जिनमें प्रकाश सिंह बादल, गुरचरण सिंह टोहड़ा, जगदेव सिंह तलवंडी आदि प्रमुख थे, गिरफ्तार कर लिए गए। यहीं से अकाली दल के संबंध इंदिरा गांधी से बुरी तरह से बिगड़ गए। इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटते ही 1978 में बनी अकाली सरकार को भंग कर दिया। असल में इस लड़ाई का केंद्र नदियों के पानी का बंटवारा था। प्रकाश सिंह बादल की सरकार ने प्रधानमंत्री द्वारा पानी को बांटने को गैर संवैधानिक बताया और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी थी। वर्ष 1980 में जब कांग्रेस के दरबारा सिंह मुख्यमंत्री बने तो इंदिरा गांधी के दबाव पर यह केस वापस ले लिया।
पार्टी ने 1982 में धर्म युद्ध मोर्चा लगाया
इसके बाद पार्टी ने 1982 में फिर धर्मयुद्ध मोर्चा लगाया। इसी दौरान पंजाब में हिसंक संघर्ष शुरू हो गया, जिसमें आम लोगों, पुलिस कर्मियों और युवकों का बहुत नुकसान हुआ। आपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद सिख कत्लेआम जैसी घटनाएं हुईं। बहुत से अकाली नेता जेलों में डाल दिए गए। इस समय तक अकाली दल का कई बार विघटन हुआ।
वर्ष 1997 में भारी बहुमत के साथ सत्ता में की वापसी
वर्ष 1992 में शिअद ने विधानसभा चुनाव का बहिष्कार कर दिया, लेकिन 1997 में भाजपा के साथ मिलकर भारी बहुमत से सत्ता में वापसी की। वर्ष 1997 से लेकर 2021 तक पार्टी ने तीन बार सरकारें बनाईं। तीनों बार प्रकाश सिंह बादल ही मुख्यमंत्री बने।
पार्टी की कमान सुखबीर के हाथों में
पार्टी की कमान सुखबीर बादल के हाथ में है। वह इस समय श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी , किसानों की नाराजगी आदि जैसे मुद्दों पर घिरे हुए हैं और पार्टी को उससे बाहर लाने का प्रयास कर रहे हैं। 94 वर्षीय प्रकाश सिंह बादल इस समय देश के सबसे वृद्ध विधायक हैं । बादल को फरवरी 2022 में संभावित विधानसभा के चुनाव में खड़ा किए जाने की तैयारियां हैं।
शिअद के लिए मोगा रहा है भाग्यशाली
शिअद के लिए मोगा हमेशा भाग्यशाली रहा है। बेशक 1997 के चुनाव से पूर्व 1996 की कांफ्रेंस हो या 2007 के चुनाव से पूर्व 2006 में की गई मोगा कांफ्रेंस। इसलिए आगामी विधानसभा चुनाव में उतरने से पहले पार्टी मोगा जिले में अपना 101वां स्थापना दिवस मनाने जा रही है।