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खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी

झांसी वाली रानी थी..के शब्दों से टैगोर थिएटर सेक्टर-18 गूंज उठा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Aug 2019 07:30 PM (IST)Updated: Sun, 18 Aug 2019 07:30 PM (IST)
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी..के शब्दों से टैगोर थिएटर सेक्टर-18 गूंज उठा। मौका था सुभद्रा कुमारी चौहान और मैथिलिशरण गुप्त के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कवि दरबार का। नॉर्थ कल्चर जोन पटियाला की तरफ से मिनी थिएटर में कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें नॉर्थ कल्चर के निदेशक डॉ. सौभाग्य वर्धन के अलावा, सुशील हसरत नरेलवी, उर्मिल कौशिक, प्रज्ञा शारदा सहित ट्राईसिटी के विभिन्न कवियों और कवित्रियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में मौजूद कवियों ने मैथिलिशरण गुप्त द्वारा लिखी गई विभिन्न कविताओं का पाठ करते हुए उन्हें याद किया। कार्यक्रम की खासियत रही कि सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं का पाठ करने के लिए महिला कवियत्री को बुलाया गया था जबकि मैथिलिशरण के लिए पुरुष कवियों ने भी मंच संभाला। सुभद्रा चौहान की कविताओं ने भर दिया जोश

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सुभद्रा कुमारी चौहान के बारे में बोलते हुए प्रज्ञा शारदा ने कहा कि सुभद्रा का जन्म 16 अगस्त 1904 में हुआ था। जबकि 15 फरवरी 1948 उनका देहांत हुआ। उन्होंने अपनी लेखनी से अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीयों में जोश भर दिया। सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी से कार्यक्रम में मौजूद दर्शकों में जोश भर दिया गया। वहीं, कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए उर्मिल कौशिक ने मेरा नया बचपन कविता, बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी, गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी को सुनाकर सभी के बचपन से रू-ब-रू करा दिया गया। इसके बाद उन्होंने जलियावाला बाग में बसंत, यहां कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते, काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते को सुनाकर सभी को देशभक्ति से सराबोर कर दिया। मैथिलिशरण गुप्त की कविताएं से दिया खुलकर जीने का संदेश

सुभद्रा कुमारी चौहान के बाद मैथिलिशरण गुप्त द्वारा लिखी गई कविताओं का पाठ और रचनाओं पर परिचर्चा आयोजित की गई। जानकारी देते हुए सुशील नरेलवी ने जीवन की ही जय है कविता को पेश किया। जिसमें उन्होंने बताया कि मृषा मृत्यु का भय है, जीवन का ही जय है को सुनाया। इसके अलावा किसान कविता में से हेमंत में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है, पावस निशाओं में तथा हंसता शरद का सोम है को पेश करके किसानों की दशा को पेश किया। मैथिलिशरण गुप्त का जन्म तीन अगस्त 1886 को हुआ था। जिन्होंने हिदी के अलावा स्थानीय भाषाओं में भी लेखन किया है।


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