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पंजाब के 98 सहायक जिला अटार्नी की सेवा समाप्त, 2011 की नीति के तहत किया गया था नियमित

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब के 98 सहायक जिला अटार्नी की सेवा समाप्त कर दी है। इनकी सेवाओं को मार्च 2011 की नियमितीकरण नीति के तहत नियमित किया गया था। हाई कोर्ट ने यह आदेश मामले में दायर याचिकाओं पर दिया।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 10:31 AM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 10:31 AM (IST)
पंजाब के 98 सहायक जिला अटार्नी की सेवा समाप्त, 2011 की नीति के तहत किया गया था नियमित
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की फाइल फोटो।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब में सेवारत 98 सहायक जिला अटार्नी (एडीए) की नियुक्ति को रद कर दिया है। इन्हें शुरू में अनुबंध पर नियुक्त किया गया था, लेकिन बाद में उनकी सेवाओं को मार्च 2011 की नियमितीकरण नीति के तहत राज्य सरकार द्वारा नियमित कर दिया गया था। हालांकि, हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि सरकार छह माह तक नई नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने तक इन सहायक जिला अटार्नी को अनुबंध कर्मचारियों के रूप में रख सकती है।

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हाई कोर्ट के जस्टिस सुधीर मित्तल ने राज्य में सेवारत 98 एडीए को नियमित करने के आदेश को रद करने की गुरिंदर सिंह और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिए। राज्य में एडीए के पदों की कमी को ध्यान में रखते हुए, पंजाब सरकार ने 17 अक्टूबर 2009 को एक विज्ञापन जारी कर अनुबंध के आधार पर एडीए के 98 पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे। नियुक्ति एक वर्ष की अवधि के लिए या नियमित भर्ती तक के लिए थी और इसे अनुबंध की अवधि पूरी होने पर बिना कोई आदेश पारित किए समाप्त किया जा सकता था। इनका चयन जिला स्तरीय समितियों द्वारा किया गया तथा नियुक्ति आदेश दिनांक 16 फरवरी 2010 जारी किया गया।

नियुक्ति आदेश में संविदा अवधि बढ़ाने का भी प्रावधान था। 18 मार्च 2011 को पंजाब सरकार द्वारा नियमितीकरण नीति जारी कर उनकी सेवा को नियमित कर दिया। सरकार द्वारा इस सेवा को नियमित करने को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। बहस के दौरान राज्य सरकार ने तर्क दिया कि अरविंद ठाकुर के मामले में 6 मई, 2009 के फैसले के तहत एक पारदर्शी प्रक्रिया के बाद यह नियुक्ति की गई और इस प्रकार, उनकी प्रारंभिक नियुक्ति को बैक डोर एंट्री नहीं कहा जा सकता है, इसलिए वे 18 मार्च, 2011 की नीति के तहत नियमितीकरण के हकदार थे। 1989 के नियम स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि एडीए का पद तृतीय श्रेणी का पद है और इस प्रकार, नियमितीकरण के क्रम में कोई अवैध नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि 1989 के नियमों को 2010 के नियमों द्वारा निरस्त कर दिया गया था। 2010 के नियम यह भी दर्शाते हैं कि एडीए ग्रुप-बी का पद है और ग्रुप-बी पदों पर नियमितीकरण की अनुमति नहीं है। नियमितीकरण केवल ग्रुप-सी या ग्रुप-डी पदों पर ही किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि नियमितीकरण की यह प्रक्रिया बेतुकी प्रतीत होती है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की प्रवृत्ति को शुरू में ही समाप्त करने की आवश्यकता है, ताकि हमें उस दिन का सामना न करना पड़े जब ग्रुप-ए पदों पर संविदा पर नियुक्त कर बाद में उसे नियमित किया जा रहा हाो। कोर्ट ने भर्ती रद करते हुए प्रभावित एडीए को नई भर्ती में आयु की छूट देने का भी आदेश दिया।


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