चंडीगढ़ सेल्फ फाइनेंसिंग इंप्लाइज हाउसिंग स्कीमः गृह सचिव के आदेश पर भी नहीं तय हो पाए फ्लैैट के रेट
2008 में लांच की गई इंप्लाइज सेल्फ फाइनेंसिंग हाउसिंग स्कीम अधिकारियों की लेटलतीफी के कारण अधर में लटकी हुई है। केंद्रीय गृह सचिव के आदेश के बावजूद फ्लैट्स के रेट तय करने के लिए अभी तक मीटिंग तक नहीं बुलाई गई।
चंडीगढ़, जेएनएन। 2008 में लांच की गई सेल्फ फाइनेंसिंग इंप्लाइज हाउसिंग स्कीम 12 साल बाद भी सिरे नहीं चढ़ी। इसका मुख्य कारण प्रशासन के ही अधिकारियों की लेटलतीफी रही है। ताजा उदाहरण यही है कि केंद्रीय गृह सचिव के आदेश पर भी चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड ने फ्लैट के रेट दोबारा से तय करने की प्रक्रिया शुरू नहीं की है। इंप्लाइज के प्रतिनिधियों को भी इस गणना में शामिल कर उनकी राय लेनी है। लेकिन उन्हें ढाई महीने से अधिक वक्त बीतने के बाद भी सूचना तक नहीं दी गई। हाई कोर्ट के आदेशों के बाद ही प्रशासन ने फ्लैट के रेट की दोबारा गणना का फैसला लिया था। गणना शुरू नहीं होने पर परेशान इंप्लाइज फिर से अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट पहुंच चुके हैं।
2008 में लांच की गई इंप्लाइज सेल्फ फाइनेंसिंग हाउसिंग स्कीम को सिरे चढ़ाने के लिए केंद्रीय गृह सचिव ने दोबारा से फ्लैट्स के रेट तय करने के आदेश दिए थे। यह रेट चार अलग-अलग फार्मुले के हिसाब से तय होने हैं। इंप्लाइज से चर्चा के बाद जिस पर सहमति बनेगी उसी हिसाब से कंस्ट्रक्शन का फैसला लिया जाना है। इंप्लाइज के प्रतिनिधि और यूटी इंप्लाइज हाउसिंग वेलफेयर सोसायटी के जनरल सेक्रेटरी डा. धर्मेंद्र ने बोर्ड के अधिकारियों पर जानबूझ कर देरी के आरोप लगाए हैं। डा. धर्मेंद्र ने कहा कि जिस तरह से पिछले 12 साल से उन्हें झूठे वायदे कर समय बर्बाद किया गया अब भी वैसा ही हो रहा है। रेट तय करने के लिए अभी तक मीटिंग तक नहीं बुलाई गई। एडवाइजर मनोज परिदा से भी इसकी शिकायत की जा चुकी है।
तीन गुणा रेट में दिए जाने लगे थे फ्लैट
2008 में यह स्कीम निकली जिसका ड्रा 2010 में हुआ। ड्रा में 3930 इंप्लाइज के नाम निकले। इंप्लाइज से फ्लैट का 25 फीसद जमा भी करा लिया। लेकिन 2012 में स्कीम को रद कर दिया गया। दोबारा से स्कीम में फ्लैट के रेट कलेक्टर रेट के हिसाब से तय किए गए। जिसके बाद पहले जो वन बीएचके फ्लैट 13 लाख का था वह बढ़कर 50 लाख का हो गया। 24 लाख का दो बेड रूम फ्लैट 1.64 करोड़, 3 बेड रूम फ्लैट 2 करोड़ 8 लाख हो गया। यह पहले 34 लाख का था।
हाई कोर्ट ने दिए हैं रेट तय करने के आदेश
इस स्कीम का केस पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में चल रहा है। हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए थे कि वह पीटिशनर्स और यूटी प्रशासन के अधिकारियों से संयुक्त मीटिंग कर हल निकाले। ऐसा नहीं हुआ तो अधिकारियों की जिम्मेदारी तय कर फैसला लिया जाएगा। इसके बाद ही केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में मीटिंग हुई थी। अब अगली मीटिंग रेट तय होने के बाद दोबारा होगी।
इस तरह तय होनी है कीमत
पहला तरीका
अभी तक प्रशासन स्कीम में इस्तेमाल होने वाली पूरी जमीन की कीमत को फ्लैट कंस्ट्रक्शन में जोड़ रेट तय कर रहा था। लेकिन अब सिर्फ उसी जमीन की कीमत इंप्लाइज के फ्लैट में जुड़ेगी जितनी पर फ्लैट बनेंगे। रोड, पार्क जैसे ओपन एरिया की कीमत नहीं जुड़ेगी। पहला यही विकल्प एडवाइजर परिदा ने मीटिंग में बताया था।
दूसरा तरीका
प्रशासन ने दूसरा तरीका 40 एकड़ जमीन पर एक ही जगह 11 मंजिला ईमारत बनाकर सभी इंप्लाइज को एक साथ फ्लैैट देने का प्रस्ताव रखा था। बिल्डिंग हाइट बढ़ने से जमीन कम लगेगी और फ्लैट रेट पहले जितने नहीं रहेंगे। हालांकि यह फार्मुला इंप्लाइज को मंजूर नहीं है। वह मीटिंग मेंं ही इस पर आपत्ति जता चुके हैं। रेट इस फार्मुले पर भी तय किए जाएंगे।
तीसरा तरीका
पूर्व प्रशासक कप्तान सिंह सोलंकी के कार्यकाल में 7920 रुपये प्रति वर्ग गज वाले पुराने रेट पर 10% ब्याज के साथ फ्लैट की कीमत तय करने का प्रस्ताव था। इसी को अपनाया जाए। इस पर भी इंप्लाइज ने आपत्ति जता दी थी।
चौथा तरीका
मीटिंग में चौथा फार्मुला खुद इंप्लाइज ने सुझाया था उन्होंने कहा था कि प्रशासन केवल बिल्डिंग का ढांचा तैयार कर उन्हें सौंप दे। इंप्लाइज अपनी मर्जी से अंदर फर्नीशिंग करा लेंगे। गृह सचिव ने इस तरीके से भी फ्लैट के रेट तय करने के निर्देश जारी किए थे। इसमें प्रशासन बिल्डिंग तैयार कर एक वॉशरूम बना एक दरवाजा लगा दे देगा। अंदर टाइल, फिटिंग इंप्लाइज अपने हिसाब से कर लेंगे।