सुखबीर बादल और मजीठिया पर कसा शिकंजा, हाईकोर्ट में होना होगा पेश
पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल आैर पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया पर मानहानि मामले में शिकंजा कस गया है। दोनों को इस मामले में हाई कोर्ट में पेश होना होगा।
चंडीगढ़, जेएनएन। पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल और विधायक बिक्रम सिंह मजीठिया पर मानहानि के मामले में शिकंजा कस गया है। उन पर यह केस शिकंजा बहिबल कलां गोलीकांड और श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के मामलों की जांच करने वाले जस्टिस रंजीत सिंह आयोग के खिलाफ अभद्र टिप्पणियां करने के आरोप में चल रहा है। दोनों को 11 जुलाई को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में पेश होना होगा।
हाईकोर्ट में सोमवार को सुनवाई शुरू होते ही सुखबीर व मजीठिया की गैर मौजूदगी पर टिप्पणी करते हुए जस्टिस अमित रावल ने कहा कि पेशी से छूट हासिल करने के लिए व्यक्ति को स्वयं अदालत में आना चाहिए। जस्टिस रावल ने नाराजगी जताते हुए कहा कि दोनों प्रतिवादियों को स्वयं पेश होकर जमानत हासिल करनी होगी। इस पर सुखबीर और मजीठिया की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट आरएस चीमा ने अदालत को बताया कि आपराधिक शिकायत में अधिकतम सजा की अवधि दो वर्ष से कम है इसलिए इसका ट्रायल एक समन केस की तरह होना चाहिए और सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत ऐसे मामले में अदालत आरोपी को पहली पेशी से भी छूट दे सकती है।
चीमा की दलील का विरोध करते हुए जस्टिस रंजीत सिंह के वकील सीनियर एडवोकेट एपीएस देओल ने कहा कि कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट के सेक्शन 10 के तहत इस आपराधिक शिकायत के ट्रायल को वारंट केस की तरह सुना जाना चाहिए और वारंट केस में आरोपी की निजी पेशी अदालत में आवश्यक है।
सुनवाई के बाद अपने आदेशों में जस्टिस रावल ने स्पष्ट किया कि ऐसे प्रतिष्ठित लोगों के देश छोड़कर जाने की आशंका नहीं है, इसलिए आज की पेशी से छूट दी जाती है। इसके बाद उन्होंने दोनों को अगली सुनवाई पर 11 जुलाई को अदालत में पेश होने का आदेश दिया।
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यह था मामला
गौरतलब है कि पंजाब सरकार ने गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं और बहिबल कलां गोलीकांड की जांच के लिए गठित जस्टिस रंजीत सिंह आयोग का गठन किया था। शिकायत के अनुसार, सुखबीर सिंह बादल ने 23 अगस्त, 2018 को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए जांच आयोग के खिलाफ अशोभनीय टिप्प्णी की थी।
आरोप है कि इसके अलावा सुखबीर व मजीठिया ने 27 अगस्त को पंजाब विधानसभा के बाहर प्रदर्शन के दौरान जस्टिस रंजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट को 5 रुपये की कीमत के योग्य बताया था। जस्टिस रंजीत सिंह ने कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट, 1952 की धारा 10ए के तहत दायर की गई इस शिकायत में कहा था कि इन दोनों नेताओं के बयान उनके नेतृत्व में गठित किए गए जांच आयोग को बदनाम करने की भावना से ग्रसित थे।