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मा तुझे सलाम

बच्चों को काबिल बनाना हर अभिभावक का योगदान खास होता है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 11 May 2019 10:06 PM (IST)Updated: Sat, 11 May 2019 10:06 PM (IST)
मा तुझे सलाम
मा तुझे सलाम

डॉ. सुमित सिंह श्योराण, चंडीगढ़ : बच्चों को काबिल बनाना और उन्हें मंजिल तक पहुंचाने में बेशक हर अभिभावक का योगदान खास होता है। सामान्य बच्चों के लिए यह सब कुछ कर पाना आसान होता है, लेकिन अगर बात किसी दिव्याग बच्चे की हो तो यह एक बड़े चैलेंज से कम नहीं है। लेकिन एक मा के जज्बे ने अपनी दिव्याग बेटी को इस काबिल बनाया कि वह आज अपने पैरों पर खुद खड़ी हो गई हैं। ऐसी मा लाखों को लिए प्रेरणास्त्रोत से कम नहीं है। पंजाब यूनिवर्सिटी स्थित एसी जोशी लाइब्रेरी से चीफ लाइब्रेरियन के पद से रिटायर डॉ. रश्मि यादव ने जिंदगी के हर सुख-दुख को भूल दिव्याग बेटी को काबिल बनाकर समाज के लिए एक मिसाल पैदा की हैं। जन्म से ही दिव्याग (सुनने में असमर्थ) बेटी अनु यादव आज देश के मल्टीनेशनल बैंक में ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं। बेटी की इस सफलता में मा रश्मि का योगदान अमूल्य है। बेटी की सफलता तक मा रश्मि यादव एक मजबूत ढाल बनकर खड़ी रहीं। मदर्स डे के मौके पर दैनिक जागरण ने शहर की इस खास मा रश्मि यादव से बेटी अनु को काबिल बनाने से जुड़े अनुभवों को साझा किया। जब पता चला बेटी नहीं सुन सकती, हिल गया पूरा परिवार

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रश्मि बताती हैं कि बेटी अनु जब 7-8 महीने की थी, दादी को लगा कि बच्ची सुन नहीं सकती। डॉक्टर के पास गए तो पता चला अनु पूरी तरह से डैफ है। पूरे परिवार पर मानों मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन मा रश्मि ने बेटी की जिंदगी आत्मनिर्भर बनाने के लिए कड़ा फैसला लिया। तीन साल की बच्ची को चेन्नई स्थित एक डैफ स्कूल में दाखिल करवाया। 14 साल तक रश्मि यादव ने बेटी के लिए कड़ी मेहनत की। बेटी अनु ने 12वीं क्लास अच्छे अंकों के साथ पास कर ली। 2009 में अनु को चंडीगढ़ जीसीजी-11 कॉलेज में बीए में दाखिला मिल गया। मा रश्मि बताती हैं कि बेटी के लिए पहले खुद पढ़ना पड़ता और फिर उसकी समरी तैयार करनी पड़ती। बेटी ने भी बीए की डिग्री हासिल कर मा के जज्बे को जिंदा रखा। रश्मी ने बताया कि बेटी को डीएवी कॉलेज एमए सोशोलॉजी में दाखिल मिल गया। उन्होंने बताया कि मास्टर डिग्री करने वाली बेटी अनु पहली डैफ स्टूडेंट है। बेटी बनीं ऑफिसर तो मा का सपना हुआ पूरा

मा रश्मि की कड़ी मेहनत और बेटी के प्रति प्यार ही था कि कड़ी मुश्किलों के बावजूद उन्होंने बेटी को उसकी मंजिल तक पहुंचाया। 26 साल की अनु यादव अब देश के नामी बैंक में ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं। जिनकी ड्यूटी आजकल मनीमाजरा स्थित ब्राच में है। रश्मि ने बताया कि बैंक द्वारा सिर्फ चार दिव्यागों का चयन किया गया, जिसमें उनकी बेटी अकेली लड़की का चयन हुआ। बेटी को इस लायक बनाने में मा के साथ पिता मनजीत सिंह यादव का भी बड़ा योगदान है, जिन्होंने बेटी के लिए अच्छी खासी नौकरी तक छोड़ दी। अनु की बड़ी बहन डॉ. स्वाति सोलन में और बड़ा भाई आदित्य शातनू अमेरिका में माइक्रोसॉफ्ट में नौकरी करता है। दोनों ही छोटी बहन अनु का पूरा ख्याल रखते हैं। मा कहती हैं कि वह अपनी बेटी की शादी भी धूमधाम से करेंगे। रश्मि मूल रूप से हरियाणा के रोहतक और उनके पति रेवाड़ी जिले के निवासी हैं। दिव्यागता को छुपाने की जरूरत नहीं, बदलें समाज की सोच

दैनिक जागरण से बातचीत में रश्मि यादव ने कहा कि उन्होंने कभी भी बेटी की दिव्यागता को समाज से छुपाया नहीं। हर शादी समारोह में बेटी को लेकर जाते थे। रश्मि का कहना है कि आज भी पेरेंट्स स्पेशल बच्चों को समाज के सामने लाने से हिचकते हैं, लोगों को ऐसी सोच को बदलना होगा, स्पेशल बच्चे सच में स्पेशल होते हैं। उन्होंने कहा कि बेटी अनु बहुत ही अच्छा खाना बनाती हैं और कंप्यूटर की काफी नॉलेज रखती है। मा रश्मि कहती हैं कि सरकार दिव्यागों को लेकर काफी उदासीन है। काबिल होते हुए भी ऐसे युवाओं को नौकरी से वंचित रखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि दिव्यागों के लिए 3 फीसद कोटा तो है, लेकिन लिखित परीक्षा और अन्य कड़े नियमों के कारण इसका लाभ नहीं मिल पाता। साथ ही उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ में स्पेशल बच्चों के स्पेशल टीचर और स्कूल होने चाहिए।

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