दिल्ली में भाजपा से गठबंधन टूटने पर पंजाब में कांग्रेस के निशाने पर आया शिअद
पंजाब कांग्रेस ने दिल्ली में भाजपा और शिअद का गठबंधन टूटने पर अकाली दल को निशाने पर लिया है।
चंडीगढ़, जेएनएन। पंजाब कांंग्रेस ने शिरोमणि अकाली दल पर हमला किया है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने Delhi Assembly Election 2020 में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के बीच गठजोड़ टूटने को लेकर हमला किया।
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने शिरोमणि अकाली दल द्वारा नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के मुद्दे पर भाजपा के साथ मतभेदों के कारण दिल्ली विधानसभा चुनाव न लड़ने के दावे को हास्यप्रद करार दिया है। इसके साथ ही उन्होंने अकालियों को इस असंवैधानिक कानून के संबंध में अपनी ईमानदारी सिद्ध करने के लिए केंद्र के साथ गठजोड़ तोडऩे की चुनौती दी है, क्योंकि संसद के दोनों सदनों में इस बिल को पास करने के समय अकाली भी समर्थन पक्ष के साथ थे।
मुख्यमंत्री ने कहा, 'आप सीधा और स्पष्ट फैसला क्यों नहीं लेते और लोगों को यह क्यों नहीं बताते कि आप विभाजनकारी और विनाशकारी कानून सीएए के खिलाफ सचमुच खड़े हो।' उन्होंने केंद्रीय मंत्रीमंडल में शामिल अकाली मंत्रियों को विवादित कानून पर लिए स्टैंड के हक में उतरने के लिए तुरंत इस्तीफा देने के लिए कहा क्योंकि इस कानून के खिलाफ समाज के समूह वर्गों में राष्ट्रीय स्तर पर रोष पाया जा रहा है।
कैप्टन अमरिंदर ने अकालियों को पूछा, 'यदि आपको सीएए मुस्लिम विरोधी लगता था तो फिर आपने राज्यसभा और लोकसभा में इस कानून के हक में मेज क्यों थपथपाई?' उन्होंने कहा कि संसद में अकालियों द्वारा इस कानून की खुलकर की गई हिमायत रिकॉर्ड का हिस्सा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हरियाणा के बाद दिल्ली दूसरा राज्य है जहां अकाली दल ने अपने हिस्सेदार भारतीय जनता पार्टी के साथ न चलने का फैसला लिया है लेकिन अकालियों द्वारा दिल्ली चुनाव सीएए पर मतभेद होने के कारण न लडऩे का किया दावा बेहूदा और अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि दिल्ली चुनाव में से बाहर निकलना स्पष्ट तौर पर अकाली दल की मजबूरी थी क्योंकि इनको इस बात का भलीभांति एहसास है कि जमीनी स्तर पर उसे कोई समर्थन नहीं है और राष्ट्रीय राजधानी में यह एक भी सीट नहीं जीत सकते।
कैप्टन ने कहा कि इसमें कोई हैरानी नहीं है कि शिरोमणि अकाली दल की हालत बहुत नाज़ुक है और पंजाब में भी वह जमीनी आधार खो चुके हैं। जहां उसका मज़बूत आधार समझा जाता था। उन्होंने कहा कि अकाली दल अंदरूनी लड़ाई का सामना कर रहा है और पार्टी टूटने की कगार पर खड़ी है।
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भाजपा अकाली दल के वर्तमान लीडरशिप को मानने लगी बोझ : जाखड़
पंजाब कांग्रेस के प्रधान सुनील जाखड़ ने दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल के बीच समझौता टूटने के बाद अकाली दल पर हमला तेज कर दिया है। जाखड़ ने इससे पहले अकाली दल की केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर से इस्तीफा मांगा था। सुनील जाखड़ ने कहा कि अकाली दल के वर्तमान लीडरशिप को भाजपा बोझ मानने लगी है। इसी कारण हरियाणा के बाद अब दिल्ली में भी दोनों पार्टियों का गठबंधन टूट गया है। अब बारी पंजाब की है।
जाखड़ ने कहा, पहले बादल परिवार के विरोध के बावजूद भाजपा ने अकाली दल के वरिष्ठ नेता सुखदेव सिंह ढींढसा को पद्म भूषण से नवाजा, हरियाणा में दोनों पार्टी का समझौता टूट गया। सुखदेव सिंह ढींढसा ने पार्टी से बगावत कर दी। ढींढसा ने जब सुखबीर से पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा मांगा उस मौके पर भाजपा के नेता भी उस समारोह का हिस्सा थे।
d `अब दिल्ली में अकाली दल से समझौता तोड़ कर साफ कर दिया है कि वह वर्तमान लीडरशिप उनके लिए बोझ है। क्योंकि इस लीडरशिप के हाथ ड्रग्स और बेअदबी की घटनाओं से सने हुए है।
जाखड़ ने इस बात को मानने से इंकार किया कि भाजपा अकाली दल से मुक्ति पाना चाहती है। उन्होंने कहा, दरअसल अकाली दल की वर्तमान लीडरशिप में जो घुटन टकसाली अकाली महसूस कर रहे है, वही, भाजपा वरिष्ठ नेता भी महसूस कर रही है। भाजपा ने दिल्ली में नाता तोड़ कर स्थिति साफ कर दी है। अब बारी अकाली दल के टकसाली नेताओं की है। क्योंकि ढींढसा और रणजीत सिंह ब्रह्मïपुरा जैसे नेता पहले ही अकाली दल से पल्ला झाड़ चुके है। अब प्रेम सिंह चंदूमाजरा, बलविंदर सिंह भुंदड़, तोता सिंह जैसे टकसाली नेताओं को फैसला लेना होगा।
जाखड़ ने कहा, अगर अकाली दल में जल्द ही लीडरशिप में बदलाव नहीं होता है तो जो कहानी हरियाणा में शुरू हुई, दिल्ली में लागू हुई, उसे पंजाब में भी दोहराया जा सकता है। वहीं, जाखड़ ने अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल की चुप्पी पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, अकाली दल ने बड़ी आसानी से मनजिंदर सिंह सिरसा को आगे करके कह दिया कि सीएए पर पार्टी के स्टैंड के कारण समझौता टूटा। हकीकत यह है कि सुखबीर बादल लोगों का सामना करने से घबरा रहे है। जिस प्रकार 2015 में बेअदबी कांड के बाद सुखबीर छुप गए थे और लोगों का समाना करने से घबरा रहे थे। वहीं, स्थिति आज भी है। जाखड़ ने कहा, बेहद हैरानीजनक है कि सुखबीर यह मान रहे है कि वह जो कहेंगे लोग उनकी मनगढ़ंत बातों को स्वीकार कर लेंगे। जिस सीएए पर उन्होंने और उनकी पत्नी ने लोक सभा में वोट किया। उस स्टैंड पर आज कैसे समझौता टूट सकता है।