दो साल बाद पंजाब में बदले समीकरण, आज के ही दिन टूटा था SAD-BJP गठबंधन, आज ही भाजपा कार्यालय में कैप्टन की एंट्री
पंजाब में शिअद-भाजपा गठबंधन दो वर्ष पूर्व आज के ही दिन टूटा था। तब कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस में थे और किसान आंदोलन के हितैषी थे। आज वही कैप्टन भाजपा के साथ हैं और अकाली दल भाजपा से अलग हो चुका है।
आनलाइन डेस्क, चंडीगढ़। कहते हैं न, राजनीति में न कोई स्थायी मित्र होता है और न स्थायी शत्रु। राजनीति की शतरंज की चाल बड़ी टेढ़ी होती है। यह शह और मात का खेल है। आज से ठीक दो वर्ष पहले पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी का 24 साल पुराना गठबंधन टूट गया था। यह गठबंधन कृषि कानूनों के कारण टूटा था।
कृषि कानूनों के सबसे बड़े विरोधी तत्कालीन सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह सिंह माने जाते थे। किसान आंदोलन के दौरान कैप्टन किसानों के सबसे बड़े हितैषी के रूप में नजर आए। किसानों के विरोध प्रदर्शन में उनकी बड़ी भूमिका रही। किसानों के विरोध प्रदर्शन में पार्टी की किरकिरी होती देख अकाली दल ने भाजपा से अपना 24 वर्ष पुराना गठबंधन तोड़ दिया था। आज शिअद-भाजपा भले ही कृषि कानूनों के कारण अलग हो गए हों, लेकिन अब ठीक दो वर्ष बाद भाजपा को कैप्टन अमरिंदर सिंह का साथ मिल गया है।
यह भी संयोग है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब भाजपा कार्यालय में उसी दिन पहुंचे जब से ठीक दो वर्ष पहले अकाली दल भाजपा से अलग हुआ था। अब भाजपा को कैप्टन से पंजाब में बड़ी उम्मीदें हैं। कैप्टन की पकड़ सिख व हिंदू दोनों मतदाताओं पर समान रूप से है। इसके अलावा वह शहर के साथ-साथ गांवों के नेता भी माने जाते हैं।
1998 में बना था शिअद-भाजपा गठबंधन
पंजाब में शिअद-भाजपा गठबंधन को दोनों दलों के नेता नाखून मांस का रिश्ता बताते थे। दोनों दलों का 1997 में गठबंधन हुआ था। 1998 में लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का गठन हुआ था। तब अटल बिहारी वाजपेयी (दिवंगत प्रधानमंत्री) ने कई दलों से समर्थन जुटाया। अधिकांश पार्टियों ने साथ आने से मना कर दिया था, लेकिन प्रकाश सिंह बादल पूरी तरह अटल बिहारी वाजपेयी के साथ डटे रहे।
कृषि कानूनों के कारण हुए रास्ते अलग-अलग
कृषि कानूनों के कारण नाखून-मांस का रिश्ता अलग-अलग हुआ। इस गठबंधन के टूटने से पंजाब में हिंदू और सिखों के बीच राजनीतिक रूप से बना हुआ सामाजिक ताना बाना बुरी तरह से टूटा। इसका खामियाजा दोनों दलों ने विधानसभा चुनाव में भुगता। शिअद 3 व भाजपा 2 सीटों पर सिमटकर रह गई।
कई बार हुआ था मनमुटाव, पर रिश्ते रहे थे कायम
गठबंधन के दौरान शिअद-भाजपा में कई बार मनमुटाव हुआ, लेकिन रिश्ते हमेशा कायम रहे। वर्षी 2007 में पंजाब में उपमुख्यमंत्री बनाने को लेकर गठबंधन के बीच मतभेद उभरे, लेकिन प्रकाश सिंह बादल ने गठबंधन टूटने नहीं दिया।
ये थे गठबंधन टूटने के कारण
- जब शिअद-भाजपा का गठबंधन टूटा तब राज्य में कृषि कानूनों को लेकर जबरदस्त विरोध था। किसान शिअद-भाजपा नेताओं को घेर रहे थे। अकाली दल का मूल वोटबैंक गांवों में था। गांवों में किसानों के बीच खिसकती सियासी जमीन बचाने के लिए अकाली दल ने भाजपा से गठबंधन तोड़ा।
- शिअद-भाजपा का गठबंधन होने से विपक्षी दल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी लगातार अकाली दल को घेर रहे थे। तत्कालीन सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह कृषि कानूनों के लिए शिअद को भी जिम्मेदार मानते थे। शिअद राजनीतिक रूप से भी भारी दबाव में थी।
- 2014 में अकाली दल बेअदबी घटनाओं के कारण निशाने पर थी। इस कारण उसे विधानसभा चुनावों में बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। अब कृषि कानूनों के कारण शिअद घिर गई थी। सियासी जमीन न खिसके इसके लिए शिअद ने नाखून-मांस का रिश्ता तोड़ दिया।