Rose Festival: चलने में हैं असमर्थ, फिर भी फूलों की खूबसूरती निहारने पहुंची 80 साल की जया रानी
80 वर्षीय जया रानी। चलने में असमर्थ हैं। फिर भी रोज फेस्टिवल की खूबसूरती निहारने पहुंचीं हैं।
चंडीगढ़, [शंकर सिंह]। 80 वर्षीय जया रानी। चलने में असमर्थ हैं। फिर भी रोज फेस्टिवल की खूबसूरती निहारने पहुंचीं हैं। बात करने पर कहा कि यहां आकर जिंदगी की खूबसूरती पता चलती है। लोग और फूलों के बीच फर्क पता नहीं लगता। ऐसा लगता है कि जैसे पूरा जीवन ही फूलों से भर गया है। अपनी मुस्कुराहट के साथ जया कुछ इसी अंदाज में बात करती हैं। शनिवार को वह अपनी पोती तन्वी के साथ पहुंचीं। उन्होंने कहा कि चलने में असमर्थ हूं, फिर भी यहां आना तो बनता ही है। याद नहीं पिछली बार कब आई थी। पर ये जरूर याद है कि शहर में फूलों को उत्सव मनाया जाता है, जिसमें पूरा शहर शामिल होता है। जया की तरह ही कई लोग अपनी पुरानी यादें लेकर फेस्टिवल में पहुंचे।
84 के बाद आज यहां आया हूं
फेस्टिवल में फूलों की जानकारी ले रहे पूर्व नेवी ऑफिसर देविंद्र राय ने कहा कि यहां 1984 में आखिरी बार आया था। उसके बाद ऐसा कभी मौका नहीं बना कि अपने शहर की खूबसूरती को देख सकूं। नेवी में जॉब करते हुए, वक्त कम लगता है। मगर अच्छा लगा कि यहां शहीद जवानों के लिए अमर जवान ज्योति बनाई गई। जहां लोगों को अहसास हो रहा है कि आर्मी का जीवन कैसा होता है। इस बार हालांकि फूल कम हैं, पहले जब मैं आता था तो फूल ज्यादा होते थे। मगर लगता है कि इन दिनों मौसम ठीक नहीं। अब रिटायर हो गया हूं, तो यकीनन हर साल यहां इस फेस्टिवल को मनाने आउंगा।
शहर और नई पीढ़ी को इन फूलों के साथ बड़े होते देख रहा हूं
पंजाब स्टेट वेयर हाउस से रिटायर्ड देविंद्र राय भी अपने परिवार के साथ फेस्टिवल में पहुंचे। बोले कि सन 1974 से इस फेस्टिवल में आ रहा हूं। यहां आकर अच्छा अहसास होता है कि हम इस शहर से जुड़े हैं। अब गार्डन काफी बदल गया है। यहां आसपास निर्माण और बिल्डिंग बन गई हैं। फूलों की संख्या हालांकि कम है। मगर फिर भी यहां नई पीढ़ी के साथ आता हूं, तो ऐसा लग रहा है कि फूल भी बड़े हो चुके हैं। अपने पोते पोतियों के साथ यहां आना काफी सुखद लगता है।