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दिल्ली-लाहौर बस सेवा अटल बिहारी वाजपेयी की ही देन

दिल्ली-लाहौर के बीच चलने वाली बस अटल बिहारी वाजपेयी की ही देन है। सितंबर 1999 में न्यूयार्क में अटल जी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच मीटिंग हुई थी।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 08:41 PM (IST)Updated: Sat, 18 Aug 2018 08:44 PM (IST)
दिल्ली-लाहौर बस सेवा अटल बिहारी वाजपेयी की ही देन
दिल्ली-लाहौर बस सेवा अटल बिहारी वाजपेयी की ही देन

जेएनएन, चंडीगढ़। दिल्ली-लाहौर के बीच चलने वाली बस तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ही देन है। सितंबर 1999 में न्यूयार्क में अटल जी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच मीटिंग हुई थी। इस मीटिंग में बस चलाने का सुझाव अटल जी ने ही दिया था जिससे दोनों देशों के लोग सीमा पार स्थित रिश्तेदारियों में आसानी से पहुंच सकें। यह बस आज भी दोनों देशों के बीच चल रही है।

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बठिंडा रिफाइनरी से मिला पंजाब को फायदा

बात चाहे बठिंडा में रिफाइनरी स्थापित करने की हो या फिर पाकिस्तान के साथ बने गतिरोध को तोडऩे की, वाजपेयी जी हमेशा आगे बढ़कर यह काम करते रहे जिसका फायदा पंजाब को मिला।

विरासत-ए-खालसा के लिए दिए 300 करोड़

वाजपेयी जी से अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बहुत अच्छे संबंध थे। इसी वजह से 1999 में जब खालसा पंथ का 300वां स्थापना दिवस मनाने की बात आई तो न केवल प्रधानमंत्री वाजपेयी इन समारोहों में शामिल हुए बल्कि 300 करोड़ रुपये देने का भी ऐलान किया। श्री आनंदपुर साहिब में विरासत-ए-खालसा बनाने का ऐलान भी इसी समारोह में हुआ था।

अकाली दल बना था पहला सहयोगी

वाजपेयी जी जब 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो सरकार बनाने के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में उनका सबसे पहला सहयोगी शिरोमणि अकाली दल बना था। बादल ने दिल्ली जाकर उन्हें बिना शर्त समर्थन का वादा किया था। यह अलग बात है कि अटल जी सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाए और सरकार मात्र 13 दिन में गिर गई। 1998 में जब फिर से चुनाव हुए तो अकाली दल ने अपने छह सांसदों के साथ समर्थन दिया। यह सरकार भी मात्र 13 माह चली। 1999 में फिर से 5 सांसदों के साथ अकाली दल ने समर्थन दिया था।

वाजपेयी व बादल का बना गठजोड़ कायम

एक दौर था जब दूसरी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी के साथ जाने को तैयार नहीं होती थीं लेकिन अकाली दल ने इस गतिरोध को तोड़ा और बिना शर्त समर्थन देकर पहल की। उसके बाद कई पार्टियां और साथ आईं लेकिन वाजपेयी व बादल का बना गठजोड़ आज भी कायम है।

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