बढ़ती डीजल की कीमतों ने निकाला मध्यम वर्ग का तेल, 23 दिनों मे 10 रुपये रेट बढ़ा
पंजाब में डीजल की कीमतों में वृद्धि ने मध्यम वर्ग का बुरा हाल कर दिया है। राज्य में 23 दिनों में डीजल की कीमतों में 10 रुपये की वृद्धि हो चुकी है।
चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। पिछले 23 दिनों में डीजल के दाम में दस रुपये से ज्यादा की वृद्धि ने मध्यम वर्ग का तेल निकाल दिया है। पहले कोरोना के चलते दुकानदारों ने हर चीज का यह कहते हुए रेट बढ़ा दिया कि पीछे से माल नहीं आ रहा है, लेकिन अब पिछले एक महीने से सभी चीजों को लाने व भेजने के लिए ट्रांसपोर्टेशन शुरू हो गई है। इसके बावजूद वस्तुओं के दाम में कमी आने की बजाय इसमें बढ़ोतरी हो रही है। अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए सबसे कारगर माना जाने वाला कंस्ट्रक्शन सेक्टर इन बढ़ते दामों से बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
कंस्ट्रक्शन का काम सर्वाधिक प्रभावित, लेबर, सीमेंट, रेत-बजरी के दाम बीस फीसद बढ़े
खासतौर पर उन लोगों की मुश्किलें काफी बढ़ गई हैं, जिनका कंस्ट्रक्शन का काम कोरोना के कारण लगे कर्फ्यू के चलते अधर में लटक गया था। 24 मई के बाद जब से कफ्र्यू में ढील दी गई है, तब से काम तो शुरू हो गया है, लेकिन पहले लेबर संकट व अब डीजल के बढ़ते दाम रेट को नीचे नहीं आने दे रहे हैं।
अनलॉक में भी दुकानदारों का एक ही बहाना, पीछे से माल नहीं आ रहा
मोहाली के खरड़ में अपना घर बना रहे जसवंत सिंह ने बताया कि 25 मार्च को उनके घर का स्लैब पडऩा था, रेत व सीमेंट को छोड़कर सारा सामान मंगवा लिया, लेकिन 24 मार्च को पंजाब में कर्फ्यू लग गया। जब दो महीने बाद कर्फ्यू में ढील मिली तो लेबर जा चुकी थी और स्थानीय लेबर को लेकर काम शुरू किया। सीमेंट की 350 रुपये वाली बोरी का रेट 400 रुपये, रेत का ट्रक 11 हजार से 13500 रुपये में मिला।
उन्होंने कहा कि लेबर का रेट भी 400 से 500 रुपये हो गया। रेत व बजरी ट्रांसपोर्ट करने वाले सिमरन सिंह की दलील है कि डीजल दस रुपये प्रति लीटर बढ़ गया है। ड्राइवर मिल नहीं रहे हैं और जो मिल रहे हैं वह मनमाने रेट मांग रहे हैं। ऐसे में हमारे पास रेट बढ़ाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।
नहीं मिल रहे कुशल कारीगर, ईंट भी हुई महंगी
मोहाली के गुरु तेग बहादुर कॉलोनी में स्थानीय निकाय विभाग में काम करने वाले नरेश कुमार भी काम शुरू नहीं कर पा रहे हैं। वह इंतजार कर रहे हैं कि कब रेत, बजरी के रेट कम हों, लेकिन उन्हें पता चला है कि अब ईंट का रेट भी 6 हजार रुपये को पार कर गया है। कोरोना से पहले यह 5500 रुपये प्रति हजार में मिल रही थी।
उन्होंने बताया कि यही हाल टाइलों, टाइल लगाने वाले मिस्त्री के रेट का भी है। टाइल्स लगाने का काम चूंकि बिहार के कुशल श्रमिक ही करते हैं, इसलिए इनकी भारी मांग है, जो पूरी नहीं हो रही है। चंडीगढ़ के इर्द-गिर्द जितना कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है, उसमें टाइल्स लगाने वाले मिस्त्रियों की कमी सबसे ज्यादा है। यही नहीं, बिजली और सेनेटरी का सामान भी कोरोना काल के मुकाबले बीस फीसद महंगा बिक रहा है।
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