बच्चों में फैल रही यह घातक बीमारी, जा सकती है आंखों की रोशनी, PGI चंडीगढ़ में अब तक आ चुके 1143 मरीज
बच्चों की बीमारियों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। छोटी से छोटी बीमारी भी बच्चों के लिए घातक साबित हो सकती है। उनमें से ऐसी की बीमारी है रेटिनोब्लास्टोमा। यह एक प्रकार का आंखों का कैंसर है ।
विशाल पाठक, चंडीगढ़। बच्चों की बीमारियों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। छोटी से छोटी बीमारी भी बच्चों के लिए घातक साबित हो सकती है। उनमें से ऐसी की बीमारी है रेटिनोब्लास्टोमा। यह एक प्रकार का आंखों का कैंसर है। रेटिनोब्लास्टोमा से पीड़ित बच्चे इस बीमारी के कारण अंधेपन का शिकार हो सकते हैं। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि बच्चों की आंखों में किसी भी प्रकार की दिक्कत या बीमारी को नजरंदाज न करें। समय पर इलाज ही इस प्रकार की गंभीर बीमारी से बच्चों को बचा सकता है। यह कहना है पीजीआइ चंडीगढ़ के एडवांस आइ सेंटर की प्राेफेसर उषा सिंह का।
प्रोफेसर उषा सिंह ने बताया कि रेटिनाब्लास्टोमा एक सामान्य प्रकार का आंखों का कैंसर है, जोकि छोटे बच्चों में होता है। यह एक आंख या दोनों आंखों में हो सकता है। यह वंशानुगत या छिटपुट हो सकता है। यह जीवन के लिए खतरा हो सकता है और साथ ही समय पर इलाज न करने पर आंखों की रोशनी जा सकती है। इसका पता व्हाइट रिफ्लेक्स देखकर लगाया जाता है। रेटिनोब्लास्टोमा का पता आंख में सफेद प्रतिवर्त पुतली जो प्रकाश से टकराने पर लाल के बजाय सफेद या पीली दिखती है। सामान्य भाषा में हम इसे बिल्ली की आंख की सफेद चमक, जो रात में दिखाई देती है, कह सकते हैं।
समय पर उपचार न मिलने से 60 फीसद बच्चों की आंखें हो जाती है खराब
प्रोफेसर उषा सिंह ने बताया देश में रेटिनोब्लास्टोमा से पीड़ित बच्चों के हर साल 1500 से दो हजार मामले सामने आते हैं। इनमें से अधिकांश बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से तालुक रखते हैं। आर्थिक रूप से कमजाेर परिवार से तालुक रखने की वजह से ऐसे बच्चों में 60 फीसद तक बीमारी पूरी तरह पनप चुकी होती है। बच्चों और उनके माता-पिता को इसके इलाज से जुड़ी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जागरूकता की कमी, देखभाल की खराब व्यवस्था, उपचार की उच्च लागत, बुनियादी ढांचे की कमी, स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी, अच्छे उपचार प्रोटोकॉल, गुणवत्ता वाली दवाओं की कमी, निदान और सहायक देखभाल के कारण है बच्चों में यह बीमारी पनप जाती है।
पीजीआइ में अब तक 1143 मरीज
पीजीआइ चंडीगढ़ में अब तक वर्ष 1999 से मार्च 2022 तक 1143 मरीज रेटिनोब्लास्टोमा (आरबी) से पीड़ित दर्ज किए जा चुके हैं। प्रोफेसर उषा सिंह ने बताया कि पीजीआइ में आरबी क्लिनिक वर्ष 1996 से संचालित की जा रही है। यह विभाग पूरे उत्तर भारत के लिए प्राथमिक रेफरल केंद्र है। यहां चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, यूपी के कुछ हिस्सों, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर राज्यों से मरीज इलाज के लिए आते हैं। यहां सभी रोगियों को सभी अत्याधुनिक उपचार प्रदान किया जाता है। जिसमें लेजर फोटोकैग्यूलेशन, क्रायोथेरेपी, इंट्राविट्रियल कीमोथेरेपी और ट्रांसप्यूपिलरी थर्मोथेरेपी शामिल हैं।
ऐसे लगा सकते हैं बीमारी का पता
ओपीडी में आने वाले मरीजों का रेटिनोब्लास्टोमा अल्ट्रा-सोनोग्राफी के जरिए और फंडस जांच के जरिए पता लगाया जाता है। इसके बाद मरीज का एमआरआइ और बोन मैरो बायोप्सी, सीएसएफ और पीईटी स्कैन कर पता लगाया जाता है।