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Change in Bihar: बिहार के सियासी बदलाव की पंजाब में भी गूंज, शिअद को दिखने लगा नया अवसर

Effect of Change in Punjab बिहार में हुए सियासी बदलाव की गूंज पंजाब में भी सुनाई दे रही है और इसका पंजाब की सियासत पर भी असर दिखने लगा है। बिहार के घटनाक्रम से शिरोमणि अकाली दल को अपने लिए नया अवसर दिखने लगा है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 10 Aug 2022 03:59 PM (IST)Updated: Wed, 10 Aug 2022 03:59 PM (IST)
Change in Bihar: बिहार के सियासी बदलाव की पंजाब में भी गूंज, शिअद को दिखने लगा नया अवसर
बिहार के सीएम नीतीश कुमार और शिअद प्रधान सुखबीर सिंह बादल। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़  , [कैलाश नाथ]। Effect of change in Bihar: बिहार में हुए सियासी बदलाव से पंजाब की राजनीतिक पर भी असर पड़ सकता है। इससे पंजाब की राजनीति में नए समीकरण की कोशिश शुरू हो सकती है। शिरोमणि अकाली दल का इस घटनाक्रम में नया अवसर दिखने लगा है।  

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 सदियों पुराना है बिहार और पंजाब का रिश्‍ता

दरअसल बिहार और पंजाब का नाता सदियों पुराना है। 10वें गुरु गुरु गोबिंद सिंह का जन्म बिहार में हुआ,  जिन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। तब से ही धार्मिक रूप से दोनों राज्यों का संबंध बना हुआ है। वहीं राजनीतिक व आर्थिक रूप से भी दोनों राज्य एक साथ जुड़े हुए है। बिहार वासियों की बड़ी आबादी पंजाब में रह कर वोट करती है।

फसल भले ही पंजाब की धरती पर बोया जाता हो लेकिन उसकी बिजाई करने वाले हाथ बिहार के लोगों के होते हैं। बिहार में एनडीए सरकार का टूटना और नीतीश कुमार द्वारा महागठबंधन की सरकार बनाने का भले ही पंजाब पर सीधा असर न हो लेकिन देश की सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल इस पूरे घटनाक्रम में अपने लिए आक्सीजन की तलाश में है।

क्षेत्रीय दलों के 2024 में गायब होने की बात करने वालों को मिला बड़ा संदेश : शिअद 

यही कारण है कि बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता व पूर्व कैबिनेट मंत्री डा. दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम ने उन ताकतों को एक मजबूत संदेश दे दिया है, जो यह समझते थे कि 2024 के लोक सभा चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियां गायब हो जाएंगी।

पंजाब में शिअद ने भाजपा से तोड़ा था गठबंधन

बिहार का घटनाक्रम शिरोमणि अकाली दल के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि शिअद पंजाब में एक मात्र एसी क्षेत्रीय पार्टी है जो सरकारे बनाती रही है और उनके संरक्षक प्रकाश सिंह बादल पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। जिस प्रकार से जनता दल यूनाइटे़ड (जेडीयू) ने भाजपा से नाता तोड़ा, उसी प्रकार से कृषि बिलों को लेकर शिरोमणि अकाली दल ने भारतीय जनता पार्टी से 25 वर्ष पुराना नाता तोड़ लिया था। हालांकि भाजपा से नाता तोड़ना शिरोमणि अकाली दल के लिए राजनीतिक रूप से घाटे भरा सौदा रहा।

2022 के चुनाव में शिअद के महज तीन विधायक ही चुनाव जीत सके। यहां तक की पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उनके पुत्र व शिअद के प्रधान सुखबीर बादल सरीखे हस्तियों को भी हार का मुंह देखना पड़ा। प्रकाश सिंह बादल ऐसे नेता थे जिन्होंने 11 बार लगातार विधान सभा का चुनाव जीता था। उन्हें अपने अंतिम चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा।

भले ही बिहार में हुए उठापटक से शिरोमणि अकाली दल के वोट बैंक पर सीधा कोई असर न पड़े लेकिन जिस प्रकार से बिहार में दो क्षेत्रीय पार्टियों ने मिलकर महागठबंधन की सरकार बनाई, उससे शिअद को बल मिला है। क्योंकि विधान सभा चुनाव में हार के बाद से शिअद लगातार राजनीतिक हाशिये पर आती जा रही है। पार्टी प्रधान सुखबीर बादल को न सिर्फ संगठनात्मक ढांचा भंग करना पड़ा बल्कि उनके खिलाफ लगातार लाबिंग हो रही थी।

वहीं, शिअद इसलिए भी उत्साहित नजर आ रही है क्योंकि बिहार के घटनाक्रम के बाद उनके नेता बिक्रम सिंह मजीठिया को भी हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। जोकि एडीपीएस के केस में पिछले पांच माह से पटियाला जेल में बंद थे। मजीठिया के जेल में होने के कारण सुखबीर बादल भी कमजोर नजर आ रहे थे। एसे में क्षेत्रीय पार्टियों के उभार से शिअद उत्साहित नजर आ रही है।


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