हाई कोर्ट ने कहा- पत्नी की फोन कॉल रिकॉर्ड करना निजता का हनन, पति कोे इसका अधिकार नहीं
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पति-पत्नी के विवाद का कारण विवाद की वजह बने मोबाइल पर बड़ी बात कही है। हाई कोर्ट ने कहा कि पत्नी का फोन कॉल रिकार्ड करना निजता का हनन है।
चंडीगढ़, जेएनएन। आजकल अक्सर दंपतियों के बीच कलह का कारण बन रहे मोबाइल फोन पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने बड़ी बात की है। हाई कोर्ट ने पति द्वारा अपनी पत्नी के कॉल रिकॉर्ड करने को निजता का हनन बताया है। कोर्ट ने कहा है कि विवाह के बाद किसी पति या पत्नी का निजता का अधिकार छिन नहीं जाता। शादी से किसी पति को अपनी पत्नी की निजी बातों को रिकॉर्ड करने का अधिकार नहीं मिल जाता।
हाई कोर्ट ने कहा- शादी के बाद छिन नहीं जाता निजता का अधिकार
हाई कोर्ट ने यह फैसला एक हैबियस कॉर्पस (बंदी प्रत्यक्षीकरण) याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। याचिकाकर्ता महिला ने अपनी चार वर्षीय बेटी की कस्टडी दिए जाने की मांग करते हुए कहा था कि पति ने बेटी को अपने पास रखा हुआ है। इतनी छोटी उम्र की बच्ची की कस्टडी पिता के पास होना अवैध है। दूसरी तरफ पति ने पत्नी के पुराने व्यवहार को कारण बताते हुए बेटी की कस्टडी मांं को दिए जाने का विरोध किया था। अदालत में अपनी पत्नी के साथ फोन पर हुई बातचीत के दस्तावेज भी पेश किए थे।
पति-पत्नी के बीच हुई बातचीत के विवरण में न जाते हुए जस्टिस अरुण मोंगा ने अपने आदेशों में कहा कि पतनी की जानकारी के बिना पति द्वारा उसकी बात को रिकॉर्ड करना निश्चित तौर पर निजता का हनन है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। प्रतिवादी ने पहले पत्नी को ऐसी बातों में फंसाया जिसे बाद में उसे जिद्दी और गुस्सैल साबित करके शर्मिंदा करने के लिए प्रमाण के तौर पर प्रयोग किया जा सके।
जस्टिस मोंगा ने कहा कि चुपके से किया गया प्रतिवादी का यह व्यवहार उनके इस दावे को मजबूत नहीं करता कि बच्ची की देखभाल उनके पास बेहतर हो सकती है। पांच साल से कम उम्र की होने के चलते सिर्फ मां बच्चे की प्राकृतिक आवश्यकताओं को बेहतर समझ सकती है।
चार वर्षीय बच्ची की कस्टडी मां को दिया
बच्ची की कस्टडी याचिकाकर्ता मां को दिए जाने का आदेश देते हुए कोर्ट ने कहा कि पिता को भी अपनी बच्ची से मिलने की छूट होगी। जस्टिस मोंगा ने कहा कि अदालत के आदेश सिर्फ इस हैबियस कॉर्पस याचिका पर दिए गए हैैं। इन आदेशों का दोनों पक्षों के बीच अदालत में विचाराधीन कस्टडी याचिका पर कोई असर नहीं होगा।
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