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दिव्यांग स्टूडेंट्स के लिए मसीहा बने मुक्तसर के अनंत, 500 से ज्यादा दृष्टिहीनों की कर चुके हैं मदद

आंखों में रोशनी नहीं तो क्या सपने देखना छोड़ दें। लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए एक रोशनी की जरूरत है। उसी जरूरत को पूरा करने में जुटे हैं पंजाब यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट अनंत।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Sun, 21 Apr 2019 02:40 PM (IST)Updated: Sun, 21 Apr 2019 02:40 PM (IST)
दिव्यांग स्टूडेंट्स के लिए मसीहा बने मुक्तसर के अनंत, 500 से ज्यादा दृष्टिहीनों की कर चुके हैं मदद
दिव्यांग स्टूडेंट्स के लिए मसीहा बने मुक्तसर के अनंत, 500 से ज्यादा दृष्टिहीनों की कर चुके हैं मदद

सुमेश ठाकुर, चंडीगढ़। आंखों में रोशनी नहीं तो क्या सपने देखना छोड़ दें। सपने हैं लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए एक रोशनी की जरूरत है। उसी जरूरत को पूरा करने में जुटे हैं पंजाब यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट अनंत। अनंत पंजाब के मुक्तसर जिले से हैं। पंजाब यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए उन्होंने उन लोगों की सहायता करने का जिम्मा उठाया है, जो आंखों से देख नहीं सकते। अनंत उनके लिए राइटर मुहैया कराते हैं। अनंत तीन सालों के भीतर 500 से भी ज्यादा दृष्टिहीन स्टूडेंट्स को फ्री में राइटर मुहैया करा चुके हैं। यह राइटर मुहैया कराने के लिए वे किसी से कोई फीस चार्ज नहीं करते, मात्र एक स्टूडेंट्स की अपील पर खुद ही उसके आसपास किसी को ढूंढ़ते हैं और उसे दृष्टिहीन स्टूडेंट का राइटर बनने के लिए प्रेरित करते हैं।

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प्रशासनिक ब्लॉक के बाहर रोते हुए मिला था एक दृष्टिहीन स्टूडेंट 

अनंत ने बताया कि बीए करने के बाद एमए हिंदी करने के लिए पंजाब यूनिवर्सिटी आए थे। उसी दौरान मुङो एक बार प्रशासनिक ब्लॉक के बाहर एक दृष्टिहीन स्टूडेंट रोते हुए मिला। पूछने पर पता चला कि वह एग्जाम देना चाहता था लेकिन डेटशीट पीयू प्रशासन ने वेबसाइट पर डाल दी थी। दृष्टिहीन होने के कारण वह वेबसाइट को देख नहीं पाया और पेपर देने से रह गया। वहीं से दिल पसीजा और उसके लिए पीयू प्रशासन से एग्जाम देने की परमिशन मांगी। परमिशन दिलाने के साथ खुद उसका राइटर भी बना और वह पास भी हो गया। उसके बाद ऐसे लोगों की मदद करना जुनून बन गया।

ऑडियो बुक्स भी कर चुके हैं रिकॉर्ड

दृष्टिहीनों के लिए कंप्यूटर में रिकॉर्डर आ गए हैं। जो बोलते हैं, लेकिन वह पढऩे वाले स्टूडेंट्स के लिए इतने लाभदायक नहीं हैं। उनसे पढ़ते हुए स्टूडेंट बहुत जल्दी उब जाता है। ऐसे में ऑडियो बुक्स का काम बहुत अहम है। अनंत दृष्टिहीन स्टूडेंट्स के लिए करीब 10 से भी ज्यादा बुक्स को फ्री में रिकॉर्ड कर चुके हैं और आगे भी काम जारी रखा हुआ है।

एनजीओ करती है खुद संपर्क, जरूरत के अनुसार करते हैं मदद

दृष्टिहीन के लिए कई एनजीओ काम करती हैं। एनजीओ खुद अनंत से संपर्क करती हैं। जिसके बाद अनंत पहले एनजीओ के साथ काम भी करते हैं और जिस भी स्टूडेंट को पढ़ाई में किसी प्रकार की परेशानी आ रही होती है, उसमें उन लोगों की सहायता करते हैं। अनंत बताते हैं कि सैकड़ों दिव्यांग पढ़ाई तो जैसे-तैसे कर लेते हैं, लेकिन जब उन्हें एग्जाम देना होता है, तो राइटर की जरूरत होती है। कई बार राइटर नहीं मिलने के कारण उन्हें पढ़ाई छोडऩी पड़ जाती है, लेकिन किसी के साथ ऐसा नहीं हो, उसके लिए मुहिम छेड़ी है। अनंत ने बताया कि दिव्यांग पास होने के बाद सर्टिफिकेट के लिए धक्के नहीं खाएं, इसके लिए भी वे स्वयं कार्यालयों के चक्कर काटकर उनकी मदद करते हैं।

गरीबी में पले बढ़े, पापा करते हैं अस्तबल में काम

अनंत के पिता घोड़ों के अस्तबल में काम करते हैं। जबकि माता बचपन से ही मानसिक रूप से दिव्यांग है। परिवार में पांच भाई और एक बहन है। जिसमें अनंत दूसरे नंबर पर आते हैं। सबसे बड़े भाई को भी रीढ़ की हड्डी में परेशानी है, जिसके कारण वह अब ईरिक्शा चलाकर गुजारा कर रहे हैं। जबकि बाकी छोटे हैं, जो पढ़ाई कर रहे हैं। अनंत ने बताया कि जीवन का मकसद लोगों की मदद करना है। हंिदूी से एमए के बाद अब सोशल वर्क में एमए कर रहा हूं। पीएचडी करने का लक्ष्य है। जितने भी लोगों को शिक्षा मुहैया करा सकूं, यही मेरी सफलता है। गरीबी कभी मकसद में आड़े नहीं आई।


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