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कोटकपूरा गोलीकांड मामले में पंजाब सरकार को झटका, हाई कोर्ट ने खारिज की जांच रिपोर्ट, नई SIT बनाने के आदेश

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट से पंजाब सरकार को बड़ा झटका लगा है। हाई कोर्ट ने कोटकपूरा गोलीकांड मामले में गठित एसआइटी की जांच रिपोर्ट खारिज करते हुए एसआइटी को भंग कर दिया है। नए सिरे से एसआइटी बनाने को कहा गया है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 09 Apr 2021 08:31 PM (IST)Updated: Sat, 10 Apr 2021 07:15 AM (IST)
कोटकपूरा गोलीकांड मामले में पंजाब सरकार को झटका, हाई कोर्ट ने खारिज की जांच रिपोर्ट, नई SIT बनाने के आदेश
कोटकपूरा फायरिंग केस में एसआइटी की जांच रिपोर्ट खारिज। सांकेतिक फोटो

जेएनएन, चंडीगढ़। बरगाड़ी बेअदबी मामले से जुड़े कोटकपूरा गोलीकांड केस में पंजाब सरकार को हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने शुक्रवार को स्पेशल जांच टीम (एसआइटी) की अभी तक की रिपोर्ट को खारिज कर दिया। कोर्ट ने पूरे मामले की दोबारा जांच के लिए नई एसआइटी बनाने के आदेश दिए हैं। साथ ही कहा है कि नई एसआइटी में आइजी कुंवर विजय प्रताप सिंह को शामिल नहीं किया जाएगा।

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गौरतलब है कि कुंवर विजय प्रताप एसआइटी के वरिष्ठ सदस्य हैं। वे इस मामले में नौ चालान पेश कर चुके हैं, जबकि आखिरी चालान अभी पेश किया जाना था। हाई कोर्ट के जस्टिस राजबीर सेहरावत ने यह आदेश इस मामले में फंसे इंस्पेक्टर गुरदीप सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए हैं।

क्या था याचिका में

इंस्पेक्टर गुरदीप सिंह ने सीनियर एडवोकेट आरएस चीमा के जरिए हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि कुंवर विजय प्रताप सिंह इस पूरे मामले की जांच राजनीतिक संरक्षण में कर रहे और उनका रवैया याचिकाकर्ता के प्रति भेदभावपूर्ण है। पहले जब याचिकाकर्ता ने इस मामले में दर्ज एफआइआर को रद करने की मांग पर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, तब भी कुंवर विजय प्रताप सिंह ने उन्हें यह याचिका वापस लेने की धमकी दी थी। लिहाजा याचिकाकर्ता ने इस मामले की जांच कर रही एसआइटी से कुंवर विजय प्रताप सिंह का नाम हटाए जाने की मांग की थी। इस पर हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार सहित डीजीपी से पूछा था कि वह बताएं कि क्या जांच कर रही एसआइटी में अब बदलाव किए जा सकते हैं या नहीं?

सरकार का जवाब

हाई कोर्ट के सवाल पर पंजाब सरकार और डीजीपी ने हाई कोर्ट में अपना जवाब सौंपते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता एक संगीन मामले में आरोपित है। वह कैसे जांच कर रही एसआइटी पर आरोप लगा सकता है। अगर इस तरह के आरोपों से एसआइटी में बदलाव किया गया तो इससे न सिर्फ जांच प्रभावित होगी बल्कि एसआइटी का मनोबल भी गिरेगा। इसके बाद कुंवर विजय प्रताप सिंह ने अपना जवाब दाखिल कर कहा था कि उन पर लगाए जा रहे सभी आरोप गलत हैं और वह पूरी निष्पक्षता, पारदर्शिता से जांच कर रहे हैं।

सुमेध सैनी व उमरानंगल ने भी दी थी चुनौती

पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह सैनी और आइजी परमराज सिंह उमरानंगल ने भी एसआइटी की जांच को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने अब सरकार की सभी दलीलों को खारिज करते हुए इस एसआइटी की अब तक की जांच को खारिज कर दिया और नए सिरे से मामले की जांच के लिए एसआइटी गठित करने के आदेश दिए हैं।

यह है मामला

फरीदकोट जिले के बरगाड़ी में श्री गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी के खिलाफ धरना दे रहे लोगों पर 14 अक्टूबर, 2015 को पुलिस ने फायरिंग कर दी थी। इसमें 25 से ज्यादा लोग जख्मी हो गए थे। पुलिस ने शिकायत दर्ज करवाई थी कि प्रदर्शनकारियों ने उन पर हमला किया, जिसमें कई पुलिस कर्मचारी घायल हुए थे, लेकिन जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की सिफारिशों के बाद गुरदीप सिंह पंढेर, हेड कांस्टेबल रछपाल सिंह, पूर्व विधायक मनतार सिंह बराड़ और अन्य अधिकारियों के खिलाफ एसआइटी ने मामला दर्ज किया था।

बाद में पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह सैनी को भी नामजद किया गया। इसी दिन बहिबलकलां में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की फायरिंग से दो युवकों की मौत हो गई थी। सभी मामले अलग-अलग दर्ज किए गए थे। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं की जांच सीबीआइ भी कर रही थी, जिसमें बाद में दोनों गोलीकांड वाले केस भी शामिल कर लिए गए, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सत्ता में आते ही जस्टिस रणजीत सिंह की अगुवाई में जांच आयोग गठित किया, जिसने एसआइटी की सिफारिश की।

इसलिए खारिज हुई जांच रिपोर्ट

  • 50 से अधिक पुलिसकर्मियों की चोटों को नजरअंदाज किया। याचिका में कहा गया है कि कुंवर विजय प्रताप की ओर से दर्ज की गई नई एफआइआर कानून के तय सिद्धांतों के खिलाफ है। एसआइटी ने पुरानी एफआइआर को पूरी तरह खारिज करते हुए 50 से अधिक पुलिसकॢमयों की चोटों को नजरअंदाज किया। एक जांच रिपोर्ट पर कुंवर ने उस समय हस्ताक्षर किए जब वे एसआइटी के सदस्य नहीं थे।
  • इंस्पेक्टर गुरदीप सिंह के वकील आरएस चीमा ने बताया कि मामला सात अगस्त, 2018 को दर्ज किया गया, जबकि घटना के दिन 14 अक्टूबर, 2015 को एक एफआइआर पहले ही दर्ज थी। तीन साल बाद नई एफआइआर दर्ज की गई।
  • 14 अक्टूबर, 2015 को जो मामला दर्ज किया गया वह एक आरोपित अजीत सिंह के बयान पर आधारित था, जिसने पिछले साल अगस्त में दिए बयान में कहा था कि उसने कभी किसी प्राधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज नहीं की। उसे पुलिस अधिकारियों ने कभी तलब नहीं किया।

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