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Punjab financial crisis: बड़ी इंडस्ट्री खा रही बिजली सब्सिडी का दो तिहाई हिस्सा

Punjab financial crisis पंजाब का खजाना इस समय संकट के दौर से गुजर रहा है। इस दौर में यदि बड़ी इंडस्ट्री की बिजली सब्सिडी बंद हो जाए तो 1140 करोड़ रुपये बच जाएंगे।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 02 Jan 2020 11:26 AM (IST)Updated: Fri, 03 Jan 2020 08:34 AM (IST)
Punjab financial crisis: बड़ी इंडस्ट्री खा रही बिजली सब्सिडी का दो तिहाई हिस्सा
Punjab financial crisis: बड़ी इंडस्ट्री खा रही बिजली सब्सिडी का दो तिहाई हिस्सा

चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। Punjab financial crisis: पंजाब का खजाना इस समय संकट के दौर से गुजर रहा है। उसको संकट से निकालने के लिए भी केवल बैठकें ही हो रही हैं, फैसला नहीं लिया जा रहा। वित्तमंत्री मनप्रीत बादल के आग्रह पर ही मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने आवास पर बैठक बुलाते हुए सभी विभागों से खर्चे कम करने और आमदनी के स्रोत बढ़ाने के उपाय बताने के लिए कहा। जब वित्त विभाग ने इस पर अपनी रिपोर्ट तैयार करके दी तो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कोई फैसला नहीं लिया।

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दो सप्ताह पहले वित्त विभाग ने उद्योगों को दी जा रही बिजली सब्सिडी पर सवाल उठाया और कहा कि सब्सिडी की जरूरत केवल छोटी इंडस्ट्री को है। वहीं सरकार की ओर से 1500 करोड़ की सालाना सब्सिडी में से दो तिहाई यानी 1140 करोड़ रुपये की सब्सिडी 8316 यूनिट्स को ही दी जा रही है। सबसे छोटी इंडस्ट्री को 1500 करोड़ रुपये में से मात्र 138 करोड़ ही मिलते हैं, जबकि इनकी गिनती 99444 बनती है। इसी तरह मीडियम दर्जे की इंडस्ट्री को 175 करोड़ रुपये की सब्सिडी मिलती है, जबकि उनकी गिनती 31499 है। ऐसे में अगर मीडियम और स्मॉल स्केल इंडस्ट्री दोनों को जोड़ लिया जाए तो सब्सिडी 313 करोड़ रुपये ही बनती है, जबकि गिनती 1,30,943 यूनिटस बनती है।

वित्त विभाग का मानना है कि बड़ी इंडस्ट्रीज अपने उत्पादन के कारण टिक सकती हैं। उन्होंने अपना ज्यादातर हिस्सा सोलर, को-जेनेरेशन आदि से भी चलाया हुआ है। वहीं छोटी इंडस्ट्री पूरी तरह से सरकारी सब्सिडी पर ही टिक पाएगी। उन्होंने कहा कि बड़ी इंडस्ट्री को सब्सिडी बंद करने से सरकार के लगभग 1100 करोड़ रुपये बचेंगे। बताया जाता है कि इस मीटिंग में मुख्यमंत्री ने वित्त विभाग के सुझाव पर कोई फैसला नहीं लिया। उधर, केंद्र सरकार द्वारा जीएसटी की क्षतिपूर्ति राशि न दिए जाने से वित्त विभाग अपने खर्चे में कटौती करने के बारे में सोच रहा है।

कैप्टन सरकार ने सत्ता में आने से पहले इंडस्ट्री को पांच रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली देने का वादा किया था। इस फैसले को लागू करने से सरकार पर सालाना 1500 करोड़ रुपये का बोझ पड़ा है। एक विभागीय अधिकारी का कहना है कि इसका लाभ केवल बड़ी इंडस्ट्री को ही मिल रहा है, जबकि सरकार को सहायता केवल छोटे और मध्यम दर्जे की इंडस्ट्री को करनी चाहिए।

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