Move to Jagran APP

गेहूं व धान पर एमएसपी के कारण पंजाब के किसानों ने दाल व तिलहन की खेती से मोड़ा मुंह

पंजाब में दाल ओर तिलहन दूसरे राज्‍यों से मंगाना पड़ रहा है या आयात करना पड़ रहा है। इसका बड़ा कारण किसानों के दलहन और तिलहन की खेती से दूरी बनाना ह‍ै। किसान धान और गेहूं की फसलों के एमएसपी के कारण दाल व तिलहन से मुंह मोड़ रहे हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 05 Oct 2020 10:03 PM (IST)Updated: Tue, 06 Oct 2020 06:32 AM (IST)
गेहूं व धान पर एमएसपी के कारण पंजाब के किसानों ने दाल व तिलहन की खेती से मोड़ा मुंह
पंजाब में किसान दलहल व तिलहन की खेती से मुेह मोड़ रहे हैं।

चंडीगढ़, [ इन्‍द्रप्रीत सिंह]। पंजाब में दाल और तिलहन अन्‍य राज्‍यों से मंगवाना पड़ रहा है या आयात करना पड़ रहा है। इसका कारण किसानों के दलहन और तिलहन की खेती से मुंह मोड़ना है। राज्‍य के किसानों का रुझान मुख्‍य रूप से गेहूं और धान की खेती की ओर ही है। इस कारण किसानों काे फसल विविधता के लिए प्रेरित करने के सभी प्रयास विफल हो रहे हैं। धान और गेहूं की फसल पर न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) मिलने की वजह से किसान दलहन और तिलहन की खेती से दूर रहते हैं।

loksabha election banner

पंजाब के लिए 30 हजार टन दाल की जाती है विदेश से आयात

धान के लगातार बढ़ रहे रकबे के कारण जहां सरकार पर 6500 करोड़ रुपये बिजली सब्सिडी का बोझ बढ़ा दिया है वहीं भूमिगत जल की समस्या भी बढ़ती जा रही है। इस समस्या से निपटने के लिए कानून तो बनाए जा रहे हैं लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं हो रहा है। पंजाब के किसान दाल और तिलहन की खेती करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे।

राज्य में हर साल 30 हजार टन से ज्यादा दालों की जरूरत है और इसकी आपूर्ति दूसरे देशों से आयात से की जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि धान और गेहूं की तरह दालों और तिलहन के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय होने के बावजूद इनकी तय मूल्य पर खरीद की गारंटी न होने के कारण किसानों ने इससे मुंह मोड़ लिया है। व जानते हैं कि धान और गेहूं की फसल को मंडी में समर्थन मूल्य पर बिक ही जाएगी।

सिसी समय थी 26 फसलें, अब छह रह गईं

हरित क्रांति के आने से पहले पंजाब में 26 तरह की फसलें उगाई जाती थीं, इनकी संख्या अब छह रह गई है। सबसे बुरी हालत दालों और तिलहन को लेकर है। तेल बीजों के नाम पर अब केवल सरसों ही रह गई है। सूरजमुखी, मूंगफली आदि फसलें तो इतिहास बनती जा रही हैं। दालों की खेती करने वाले अब चंद ही किसान बचे हैं। इन फसलों का उचित मंडीकरण न होने के कारण ऐसा हुआ।

मूलभूत ढांचा उपलब्ध लेकिन प्रयासों की कमी

कृषि नीतियों के विशेषज्ञ दविंदर शर्मा बताते है कि कर्नाटक ने रागी को प्रमोट कर 540 रुपये प्रति क्विंटल, तुअर दाल पर 460 रुपये प्रति क्विंटल बोनस देकर किसानों को 15 से 22 हजार रुपये की अतिरिक्त आय दी। आंध्र प्रदेश सरकार ने भी मौसंबी, केले और हल्दी का एमएसपी तय किया। इसी तरह उड़ीसा सरकार ने भी दाल व तिलहन को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए। अगर यह राज्य ऐसा कर सकते हैं तो पंजाब क्यों नहीं कर सकता। यहां दालों व तिलहन खरीद से लेकर उसे प्रोसेस करने व बेचने के लिए मार्कफैड और पनसप जैसे संस्थान हैं।

अगर पंजाब सरकार केंद्रीय भूजल बोर्ड की ओर से क्रिटिकल डार्क जोन घोषित किए गए ब्लाकों में दालों व तिलहन को प्रमोट कर दे तो बिजली सब्सिडी का पैसा मार्कफैड को उपलब्ध करवाया जा सकता है। इससे मार्कफैड दालों को 5750 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद कर लोगों को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवा सकता है।

मौजूदा समय में मंडियों में जो थोड़ी बहुत दाल आती है वह 3500 रुपये प्रति क्विंटल पर भी नहीं बिकती, जबकि बाजार में किसी भी दाल की कीमत 110 रुपये प्रति किलो से कम नहीं। जहां किसान घाटे में हैं वहीं उपभोक्ताओं को भी नुकसान हो रहा है। केंद्र सरकार भी दालों के आयात पर विदेशी मुद्रा खर्च करती है। उनका कहना है कि सरकार को दाल और तिलहन की खेती को प्रमोट करना चाहिए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.