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अपने ही विधायकों और मंत्रियों के आचरण से आहत सीएम भगवंत मान..इन्हीं का हाथ है मुझको बुरा बनाने में!

एक छोटी सी घटना कहकर अनदेखा करने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं विधायकों या मंत्रियों के तर्क बेशक कुछ भी हों लेकिन इस बात से कतई इन्कार नहीं किया जा सकता कि मुख्यमंत्री भगवंत मान की चिंता उचित है और उनके नेताओं का व्यवहार अनुचित।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 10 Aug 2022 08:42 AM (IST)Updated: Wed, 10 Aug 2022 08:42 AM (IST)
अपने ही विधायकों और मंत्रियों के आचरण से आहत सीएम भगवंत मान..इन्हीं का हाथ है मुझको बुरा बनाने में!
अपने ही विधायकों और मंत्रियों के आचरण से आहत मुख्यमंत्री भगवंत मान।

 चंडीगढ़, अमित शर्मा। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान आजकल बेहद चिंतित हैं। उनकी इस चिंता की वजह राज्य सरकार की लोकलुभावन नीतियों के चलते सरकार पर बढ़ता वित्तीय बोझ नहीं है। दरअसल भगवंत मान आज स्वयं उन्हीं व्यंग्यात्मक लहजे से बेहद चोटिल महसूस कर रहे हैं, जो कभी उनके अचूक हथियार हुआ करते थे। इसी चिंता में डूबे मुख्यमंत्री ने बीते बुधवार को पार्टी विधायकों और मंत्रियों की एक विशेष मीटिंग बुलाकर उन्हें उचित-अनुचित व्यवहार का पाठ पढ़ाया। मीटिंग के बाद कुछ चुनिंदा करीबी अफसरों से बातचीत में वह राहत इंदौरी साहब की इन पंक्तियों को दोहराते सुनाई दिए, ये चंद लोग जो बस्ती में सबसे अच्छे हैं, इन्हीं का हाथ है मुझको बुरा बनाने में।’

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उनकी चिंता वाजिब है और विचारणीय भी। इसी वर्ष मार्च में उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से जिस तरह कई बार पार्टी के मंत्रियों, विधायकों और कार्यकर्ताओं की सार्वजनिक हरकतों एवं वक्तव्यों ने सरकार की किरकिरी करवाई है, उसका सीधा असर भगवंत मान की छवि पर पड़ा है। भगवंत मान को एक अनुभवहीन और बेबस मुख्यमंत्री जैसे आलोचनात्मक विशेषणों का भी सामना करना पड़ रहा है। मार्च में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के तुरंत बाद से शुरू हुई ऐसी छोटी-बड़ी घटनाओं का यह सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। राज्य में आए दिन किसी न किसी जिले से ऐसे वीडियो या तस्वीरें लगातार वायरल हो रही हैं। कभी अमृतसर में आप कार्यकर्ता वहां के सर्किट हाउस में घुसने के लिए सुरक्षाकर्मियों के साथ गाली गलौच कर उन्हें सरेआम धमकाते दिखते हैं तो कभी होशियारपुर से पार्टी विधायक करमबीर सिंह घुम्मन टोल प्लाजा पर बूम बैरियर तोड़ कर अपनी गाड़ी निकलवाने का प्रयास करते कैमरा में कैद हो जाते हैं। लुधियाना से वायरल हुए एक वीडियो में आप की महिला विधायक राजिंदर कौर नशा तस्करों को पकड़ने गई एक आइपीएस अफसर से इसलिए तकरार करती दिखती हैं, क्योंकि उनके इलाके में दबिश से पहले पुलिस ने उन्हें सूचित नहीं किया था।

उनका विवाद अभी ठंडा भी नहीं होता है कि जालंधर में एक अन्य आप विधायक शीतल अंगुराल का डीसी दफ्तर में हल्लाबोल एक ऐसे बड़े विवाद का विषय बनता है कि मामला शांत करने के लिए विधायक महोदय सार्वजनिक माफी मांगने को मजबूर हो जाते हैं। इससे पहले कि लगातार बढ़ती ऐसी घटनाओं से अपनी और सरकार के बिगड़ती छवि को लेकर चिंतित मुख्यमंत्री कोई हल निकाल पाते, उनकी कैबिनेट में सेहत मंत्री चेतन सिंह जौड़ामाजरा की ओर से विख्यात सर्जन और बाबा फरीद मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति डा. राज बहादुर से अनुचित व्यवहार का वायरल वीडियो रही सही कसर पूरी कर देता है। मंत्री के व्यवहार से आहत कुलपति समेत कई अन्य सरकारी चिकित्सा संस्थानों के प्रमुखों ने सरकार को अपने त्यागपत्र भिजवा तक दिए। ऐसे में विपक्ष का एकजुट होकर मान सरकार पर हमलावर होना स्वाभाविक था ही, लेकिन मान कैबिनेट के ही एक अन्य मंत्री फौजा सिंह सरारी द्वारा सेहत मंत्री-वीसी प्रकरण को शर्मनाक और निंदनीय बताते हुए वीसी के हक में खड़े होते ही कैबिनेट और पार्टी में वैचारिक मतभेद भी सामने नजर आने लगे। पानी सिर के ऊपर आता देख चिंतित भगवंत मान ने तुरंत विधायकों की एक आपातकालीन बैठक बुलाई। उसमें उन्होंने सरकार की लोक-हितैषी योजनाओं को आम जन तक पहुंचाने की नसीहत देते हुए तमाम विधायकों को अपने सार्वजनिक व्यवहार में विनम्रता और संयम बरतने की अपील दोहराई।

यही अपील उन्होंने पांच महीने पहले विधायक दल का नेता चुने जाने के तुरंत बाद नव निर्वाचित 91 विधायकों की पहली बैठक को संबोधित करते हुए की थी। तब मान ने कहा था, मेरी आप सभी (नवनिर्वाचित विधायकों) से अपील है कि अहंकार न करें। चूंकि हमने राजनीति में बदलाव का वादा किया है, सो याद रहे कि हमें सभी का सम्मान करना है। उनका भी जिन्होंने हमें वोट नहीं दिया। यह सरकार पंजाबियों ने बनाई है। हमें सबके काम करवाने हैं। न किसी को बेइज्जत करना है और न ही पर्चो (पुलिस केस) की राजनीति करनी है। सरकार बनने के शुरुआती हफ्तों तक इस अपील का असर रहा, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता यह अपील भूला दी गई। भगवंत मान सरकार के संबंध में यह बात विडंबनापूर्ण तो लग सकती है, पर है बिल्कुल सच कि अपने कार्यकाल के पांच महीनों में जब-जब मुख्यमंत्री ने किसी बड़े और अहम फैसले की घोषणा कर राजनीतिक बढ़त हासिल करने का प्रयास किया, तब-तब पार्टी विधायकों या मंत्रियों की अनियंत्रित और असंवेदनशील हरकतें महत्वपूर्ण घोषणाओं के प्रसार के लिए अपनाए तमाम सरकारी प्रचार बंदोबस्तों पर भारी पड़ी हैं।

[राज्य संपादक, पंजाब]


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