...तो इस कारण खेलों में हरियाणा का है जलवा और पंजाब हुआ फिसड्डी
पंजाब कभी देश में खेलों का सिरमौर था, लेकिन सरकारी उपेक्षा के कारण वह पिछड़ता जा रहा है। छोटा भाई हरियाणा खेल के मैदान में अपना जलवा दिखा रहा हैऔर बड़ा भाई पंजाब दिशा भटक गया है।
जेएनएन, चंडीगढ़। खेल के मैदान में छोटा भाई हरियाणा ने अपना जलवा कायम कर रखा है और बड़ा भाई पंजाब लगातार फिसड्डी साबित हो रहा है। देश को अनेक बड़े खिलाड़ी देने वाले पंजाब में एक दशक से खेलों का स्तर लगातार गिर रहा है। चिंता की बता यह है कि इसमें सुधार के संकेत भी नजर नहीं आ रहे। हाल ही में हुई कॉमनवेल्थ गेम्स में हरियाणा के खिलाडि़यों ने शानदार प्रदर्शन से इतिहास रच दिया और सात स्वर्ण सहित 22 पदक जीते। दूसरी ओर पंजाब के खिलाडियों के हिस्से में आए दो सिल्वर व एक कांस्य पदक ही आए।
पंजाब की न कोई खेल नीति और न सरकार का इस ओर ध्यान
वास्तव में यह परिणाम ज्यादा हैरान भी नहीं करता। राज्य में सरकार की खेलों में दखलंदाजी और लापरवाही का नतीजा करीब दो दशक बाद सामने आ रहा है। खेल और खिलाडियों के लिए न कोई राह है आैर न राह दिखाने वाला। सरकार की खेलों के प्रति गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य की कोई अपनी खेल नीति तक नहीं है। यही हाल खिलाडियों के लिए सुविधाओं का है।
हरियाणा ने खेल और खिलाड़ियों के लिए बनाया माहौल
अगर कॉमनवेल्थ गेम्स की ही बात करें तो पंजाब के खिलाडियों ने 2014 में नौ पदक जीते थे और इस बार यह संख्या तीन मेडल तक सिमट गया। इस बार प्रदीप सिंह, विकास ठाकुर व नवजोत कौर ने सिल्वर व दो ब्रॉन्ज मेडल दिलवा कर पंजाब की साख तो बचा ली, लेकिन बिना सुविधाओं के पंजाब में खेलों का विकास कब तक होगा यह अहम सवाल है। प्रश्न है कि इस हालत में पंजाब की साख कब तक बचेगी।
खिलाड़ी उदासीनता के शिकार
फूड बास्केट ऑफ इंडिया व मैनचेस्टर ऑफ इंडिया के नाम से प्रसिद्धि पाने वाले पंजाब ने कभी देश में खेलों में राज किया था। 1968 का एक दौर वह भी था, जब मेक्सिको ओलंपिक में भेजे गए भारतीय खिलाड़ियों के 25 सदस्यीय दल में 13 खिलाड़ी पंजाब से थे। हॉकी व एथलेटिक्स के सहारे खेलों में पंजाब का दबदबा कायम करने वाले पंजाब के खिलाड़ी आज सरकार की उदासीनता के चलते दूसरे राज्यों या देशों से खेलने को प्राथमिकता दे रहे हैं। पंजाब ने खेल के मामले में एक समय ऐसा भी देखा है, जब हरियाणा के खिलाड़ियों में पंजाब से खेलने को लेकर होड़ लगी रहती थी।
90 के दशक में हरियाणा के आमिर सिंह जैसे खिलाड़ियों ने पंजाब से खेला और पुलिस में इंस्पेक्टर के पद पर नौकरी हासिल की। हरियाणा ने वर्ष 2000 में बनाई नई खेल नीति खेलों में लगातार पिछड़ने के बाद हरियाणा सरकार ने 2000 में गंभीरता दिखाई और नई खेल पॉलिसी बनाकर हरियाणा में खेल को प्रमोट करना शुरू किया। आज नतीजा सबके सामने है।
न खेल नीति और न दिख रहा जज्बा
खेलों को लेकर पंजाब व हरियाणा के सरकारें कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हाल ही में संपन्न हुए कॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर हरियाणा सरकार ने स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के लिए 1.5 करोड़, रजत पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के लिए 75 लाख व कांस्य पदक जीतने वाले खिलाड़ी के लिए 50 लाख और ए ग्रेड की नौकरी का ऐलान कर दिया। लेकिन पंजाब सरकार इस बाबत घोषणा ही नहीं कर पाई।
अस्थिरता और खराब आर्थिक हालात के चलते पंजाब सरकार दो दशक से खेलों को लगातार नजरअंदाज कर रही है। पिछली सरकार ने खेलों को प्रमोट करने के नाम पर स्पोर्ट्स किटें वितरित कर युवाओं के वोट बैंक को कैश करने की कोशिश की तो छह-सात खिलाड़ियों को पुलिस में डीएसपी के पद पर नौकरी देकर अपनी पीठ थपथपा ली, लेकिन वह भी 10 साल के इंतजार के बाद। कांग्रेस सरकार ने खेलों की दशा व दिशा सुधारने के लिए तमाम वादे किए, लेकिन एक साल बीतने के बाद भी नई खेल नीति तक सरकार नहीं बना पाई।
महाराष्ट्र से खेलीं हिना, ऑस्ट्रेलिया से खेली रुपिंदर
इस बार कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतने वाली हिना सिद्धू पंजाब से हैं, लेकिन उन्होंने पंजाब से खेलने की बजाय महाराष्ट्र से खेलना बेहतर समझा और पंजाब के हिस्से का गोल्ड महाराष्ट्र की झोली में डाल दिया। खेल विभाग की तरफ से किसी ने इस बात पर ध्यान दिया कि हिना पंजाब की बजाय महाराष्ट्र से क्यों खेलने जा रही हैं। गेम्स खत्म होने के बाद खेल विभाग या सरकार की तरफ से इसे गंभीरता से लेकर हिना सिद्धू की घर वापसी के लिए भी कोई प्रयास नहीं किया गया। दूसरा ताजा उदाहरण तरनतारन की रूपिंदर कौर का है। रूपिंदर ने ऑस्ट्रेलिया की तरफ से कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग लिया।
बुनियादी ढांचे पर ही ध्यान नहीं
कहते हैं पूत के पाव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं। अच्छे खिलाड़ियों व उनकी खेल प्रतिभा के बारे में पता लगाने का सबसे बेहतर जरिया स्कूल गेम्स हैं। कभी स्कूल गेम्स में टॉप पर रहने वाला पंजाब अब यहा भी काफी पीछे चला गया है और पंजाब की जगह हरियाणा ने ली है। बीते साल हुए 'खेलो इंडिया' स्कूल गेम्स में हरियाणा ने 102 मेडल (38 गोल्ड, 26 सिल्वर व 38 ब्रॉन्ज) के साथ टॉप पर रहा तो पंजाब 35 (10 गोल्ड, 5 सिल्वर व 20 ब्रॉन्ज ) मेडल के साथ टॉप थ्री में भी जगह नहीं बना पाया।
हरियाणा: 440 स्पोर्ट्स नर्सरी खोलीं, पंजाब का नहीं ध्यान
हरियाणा ने 2000 में नई खेल नीति बनाई। सरकार ने खेलों को लेकर पूरी गंभीरता दिखाई। हरियाणा में स्पोर्ट्स नर्सरी खोली गई। 440 स्पोर्ट्स नर्सरी के जरिए हरियाणा ने 10 खेलों को बढ़ावा दिया। अब 680 और स्पोर्ट्स नर्सरी खोलकर हरियाणा कुश्ती व बॉक्सिंग के अलावा 25 खेलों में अपना दबदबा कायम करना चाहता है। पहले सरकार खिलाड़ियों को नौकरी व नकद इनामी राशि नहीं देती थी। अब 50 लाख से लेकर 1.5 करोड़ नकद व ए ग्रेड की नौकरी दी जा रही है।
पंजाब: आठ साल से नहीं बने 200 जिम
पंजाब में हरियाणा का उलटा हो रहा है। स्पोर्ट्स नर्सरी के नाम पर 200 जिम खोलने की सरकार की योजना आठ वर्षो से सिरे ही नहीं चढ़ सकी है। हॉकी का मक्का कहलाने वाले जालंधर के संसारपुर का दौरा करके देखा जा सकता है कि एक अदद अच्छी टर्फ का इंतजाम भी पंजाब सरकार नहीं कर पाई है। पिछली सरकार के कार्यकाल में हॉकी खिलाड़ी से विधायक बने पद्मश्री परगट सिंह ने तमाम कोशिशें करके पंजाब के छह हॉकी मैदानों को पुरानी टर्फ से सजाकर खिलाड़ियों को कुछ सुविधाएं जरूर दीं, लेकिन सरकारी स्तर पर जिस खेल के लिए पंजाब जाना जाता था, उसी की अनदेखी की गई।
नई खेल नीति के इंतजार में पंजाब के खिलाड़ी
पिछली सरकार ने खानापूर्ति कर अपना कार्यकाल पूरा कर लिया, तो नई सरकार अभी तक वादों व घोषणाओं को झुनझुना खिलाड़ियों को दे रही है। योग्य कोच, अच्छे खेल मैदान, खिलाड़ियों की अच्छी ट्रेनिंग, खिलाड़ियों की डाइट, नकद इनाम व नौकरी के मामले में सरकार का स्टैंड ही क्लियर नहीं है। मीडिया ट्रायल होने के बाद सरकार जरूर जागती है और खानापूर्ति करके अपनी पीठ थपथपा लेती है।
खेल को बढ़ावा व सुधार होगा लक्ष्य: राणा
पंजाब के नए खेल मंत्री राणा गुरमीत सिंह सोढी का कहना है कि किसी भी देश का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्टैंडर्ड ओलंपिक व कॉमनवेल्थ गेम्स जैसी प्रतियोगिताओं में आने वाले पदकों से भी तय होता है। इस बार भी कॉमनवेल्थ गेम्स में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ियों ने काफी शानदार प्रदर्शन किया है। पंजाब में भी खेल सुधार व खेलों को बढ़ावा दिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के वादे को पूरा करने की सरकार भरसक कोशिश कर रही है। आने वाले समय में इसके अच्छे परिणाम भी दिखाई देंगे। खिलाड़ियों की समस्याओं व उनसे किए गए तमाम वादों व सुविधाओं को देने के लिए राज्य सरकार वचनबद्ध है। पंजाब में खेलों के विकास के लिए नए सिरे से पॉलिसी बनाई जाएगी और उसे लागू किया जाएगा। पंजाब के युवाओं को नशे के दलदल से बाहर निकालने में खेलों की भूमिका सबसे ज्यादा है। कोच, खेल मैदान, डाइट व अच्छी सुविधाओं के लिए अब खिलाड़ियों को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
क्या कहते हैं खिलाड़ी
हरियाणा की तर्ज पर सम्मान व सुविधाएं नहीं : नवजोत कौर
एशियन चैंपियनशिप की गोल्ड विजेता तरनतारन की नवजोत कौर का कहना है कि मुझे पंजाबी होने का गर्व है, लेकिन इस बात का मलाल है कि प्रदेश में खिलाड़ियों को हरियाणा की तर्ज पर सम्मान और सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। अगर पंजाब में खिलाड़ी अपना भविष्य सुरक्षित समझते हो तो राज्य खेलों में हरियाणा से पीछे न होता। हरियाणा में नेश्नल खेलते ही सरकार खिलाड़ियों को आर्थिक मदद व ऐसी सुविधाएं देती है कि वह खेलों पर पूरी तरह केंद्रित हो जाते हैं।
नवजोत कौर का कहना है पंजाब में ऐसा नहीं है। पंजाब सरकार को चाहिए कि खेलों के लिए अलग बजट रखा जाए। प्रदेश में बहुत सारे खेल विंग बिना कोच के चल रहे हैं। आर्थिक तौर पर कमजोर परिवारों के बच्चों में खेलों के प्रति बहुत उत्साह है, लेकिन घर के हालात के चलते वह खेल नहीं पाते। सरकार को चाहिए कि नौकरियों में खिलाड़ियों का आरक्षण खुल कर बनाया जाए। स्कूल स्तर पर बच्चों को अच्छे अवसर व सुविधाएं दी जाएं।
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पंजाब में नहीं मिल रहा प्रोत्साहन : विकास ठाकुर
कॉमनवेल्थ के कांस्य विजेता लुधियाना के वेटलिफ्टर विकास ठाकुर का कहना है कि हरियाणा में खिलाड़ियों को मान सम्मान से लेकर इनामी राशि अच्छी मिल रही है, जोकि पंजाब में बेहद कम है। यहां प्रोत्साहन भी नहीं मिलता। समाचार पत्रों में खबरें लगने के बाद सरकारें जागती हैं, लेकिन फिर भी काम नहीं करतीं। पुरस्कार के रूप में पंजाब कॉमनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीतने वाले खिलाड़ी को छह लाख की राशि देता है, वहीं हरियाणा में यह इनामी राशि में 75 लाख रुपये है। हरियाणा की खेल नीति पंजाब की खेल नीति से बेहतर है। इसलिए पंजाब के अधिकतर खिलाड़ी हरियाणा की तरफ से खेल रहे हैं।
पंजाब में गिरावट का दौर शुरू हो चुका है
'' खेलों के समुचित विकास पर नजर दौड़ाएं, तो पंजाब अपने पड़ोसी राज्य हरियाणा से काफी पीछे है। पंजाब के युवा खिलाड़ी पंजाब वासी होने के बावजूद हरियाणा की तरफ से गेम्स में हिस्सा लेने को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसका मुख्य कारण हरियाणा सरकार का खेलों के विकास को तरजीह देना है। खेल के विकास के प्रति हमारी राज्य सरकार उचित ढंग से गंभीर ही नहीं है। राज्य में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। उनको निखारने की जरूरत है। पंजाब भी खेल प्रतिभाओं से भरा पड़ा है। केवल उन्हें सही ढंग से मौका देने की जरूरत है। स्कूल स्तर पर खिलाड़ियों को उनका खेलों के प्रति प्यार को देखते हुए प्रशिक्षित करने की पहल करनी होगी। मेरा मानना है कि ग्रास रूट पर सही ढंग से कोचिंग प्रदान करने के अभियान को युद्धस्तर पर शुरू करने की जरूरत है।
- गुरमेल सिंह, अर्जुन अवार्डी ओलंपियन (1980 के मास्को ओलंपिक में हॉकी की टीम के सदस्य)।
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हरियाणा और पंजाब की एक तुलना : कॉमनवेल्थ गेम्स
हरियाणा: (कुल- 22 पदक) नौ स्वर्ण, छह रजत, सात कांस्य पदक।
पंजाब: (कुल 3 मेडल) 2 सिल्वर, 1 कांस्य। शूटिंग में गोल्ड जीतने वाली पटियाला की हिना सिद्धू महाराष्ट्र से खेलीं। जेवेलिन में कांस्य जीतने वाली अमृतसर की नवजीत कौर हरियाणा से खेली।
इनामी राशि
हरियाणा - गाेल्ड मेडल विजेता: 1.5 करोड़ रुपये, सिल्वर मेडल विजेता: 75 लाख रुपये कांस्य पदक विजेता : 50 लाख रुपये (राशि के अलावा सरकारी नौकरी। कॉमनवेल्थ विजेताओं को हरियाणा राशि दे चुका है।)
-पंजाब ने अभी तक इनामी राशि घोषित ही नहीं की है।