चार साल से फीस के साथ आपात फंड फीस ले रहे स्कूल, लेकिन नहीं किया इस्तेमाल
निजी स्कूलों में चार साल से आपात फंड के नाम पर फीस की वसूली हो रही है। अभिभावकों से इसके नाम पर अब तक मोटी रकम वसूली गई है लेकिन इसका उपयोग आपात प्रबंधन के लिए नहीं किया।
चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने प्राइवेट स्कूलों को पूरी फीस व फंड वसूलने का आदेश देकर अभिभावकों को झटका दे दिया, लेकिन कमाल की बात यह है कि निजी स्कूलों की फीस निर्धारित करने के लिए हाई कोर्ट की ओर से बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट तीन सालों से अदालत में धूल फांक रही है। इतना ही नहीं संकट काल के लिए बनाए गए आपात फंड का भी स्कूलों ने चार साल से इस्तेमाल नहीं किया है। ये स्कूल चार साल से आपात फंड के नाम पर फीस वसूल रहे हैं, लेकिन इसका आपात स्थिति से निपटने की व्यवस्था करने में इसतेमाल नहीं किया है। वे अब तक इस कोष के नाम पर विद्यार्थियाें व अभिभावकों से माेटी रकम वसूल चुके हैं।
जस्टिस अमरदत्त की अगुवाई वाली कमेटी ने 2016 और 2017 में बनाई थी रिपोर्ट
कमेटी ने 12 वॉल्यूम में 5500 पन्नों की रिपोर्ट का सार शिक्षा विभाग को भी सौंपा था। शिक्षा विभाग ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। कमेटी ने जिन स्कूलों पर जुर्माना व फीस रिफंड के ऑर्डर दिए थे वे फिर से इन सिफारिशों के खिलाफ अदालत पहुंच गए। मामला अभी भी अदालत में ही लटका है।
4500 स्कूलों की जांच करके 12 वॉल्यूम में दी थी 5500 पेज की रिपोर्ट
हाईकोर्ट की कमेटी के मेंबर रहे बाबा फरीद मेडिकल यूनिवर्सिटी के पूर्व रजिस्ट्रार डॉ. प्यारा लाल गर्ग ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहा, 'जब हमने सभी स्कूलों के खर्चों का आकलन किया तो स्कूल को संकटकाल के लिए उनके द्वारा किए जाने वाले कुल खर्च का पांच से 15 फीसद फीस में जोड़ लेने की अनुमति दी थी। पिछले चार सालों से सभी प्राइवेट स्कूल ऐसा कर रहे हैं। इस फंड में लाखों रुपये स्कूलों के पास हैं। मुझे यह समझ नहीं आता कि जब कोरोना के कारण स्कूलों पर संकट आया तो अपने अध्यापकों को इस फंड से वेतन देने में क्या दिक्कत है।'
स्कूलों को संकट काल में पांच से 15 फीसद तक खर्च फीस में शामिल करने की थी अनुमति
शिक्षा मंत्री विजय इंद्र सिंगला को तो इस रिपोर्ट के बारे में कुछ पता भी नहीं है। तब सवाल यह उठता है कि आखिर 4500 स्कूलों का तीन साल के खर्च व आमदनी का जो डाटा जांच करके रिपोर्ट तैयार की गई थी उसका फायदा क्या हुआ?
कोविड-19 के चलते सरकार ने ट््यूशन फीस का 70 फीसद लेने की स्कूलों को छूट देने के मामले में इंडीपेंडेंट स्कूल एसोसिएशन ने याचिका दायर कर दी जिस पर हाईकोर्ट ने मंगलवार को फैसला दिया लेकिन रोचक तथ्य यह रहा कि इस दौरान हुई बहस में 2016 और 2017 में अलग-अलग समय के दौरान जस्टिस अमरदत्त के नेतृत्व में बनी फीस निर्धारण कमेटी ने रिपोर्ट दी।
फीस रिफंड का भी था प्रावधान
रिपोर्ट में स्कूलों की ओर से अतिरिक्त फीस लेने के मामले में फीस रिफंड करने की सिफारिश की थी। वहीं, फीस निर्धारण के मापदंड भी तय किए थे। डॉ. प्यारा लाल गर्ग ने हैरानी जताई कि हाईकोर्ट में राज्य के एक-एक निजी स्कूल का सारा आंकड़ा पड़ा है, जिसमें उनकी आमदनी, खर्च व सरप्लस मनी के बारे में पूरी जानकारी है, लेकिन न तो किसी अभिभावक ने इस रिपोर्ट का कोई जिक्र किया और न ही सरकार ने।
डॉ. गर्ग ने बताया कि कमेटी ने निजी स्कूलों के खर्च का अध्ययन किया तो पाया कि इन स्कूलों ने बूट, वर्दी, किताबों, बिल्डिंग, कंप्यूटर व पता नहीं किन-किन खर्च को दिखाते हुए अभिभावकों से मोटी फीस वूसली है। जिस स्कूल का भी हमें लगा कि पैसा ज्यादा लिया गया है, हमने रिफंड के ऑर्डर किए, लेकिन स्कूल इस फैसले के खिलाफ अदालत में चले गए। हमने 5500 पन्नों की रिपोर्ट का सार पंजाब शिक्षा विभाग को भी दिया, जिन्होंने स्कूल शिक्षा बोर्ड की वेबसाइट पर इसे डाला लेकिन अब वहां से हटा लिया है।
प्राइवेट व सहायता प्राप्त स्कूलों में 33.50 लाख बच्चे
पंजाब में कुल 56 लाख बच्चे पढ़ते हैं। इनमें से 33.50 लाख बच्चे प्राइवेट व सहायता प्राप्त स्कूलों में, जबकि 22.5 लाख बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। डॉ. गर्ग बताते हैं कि अगर खर्च से ज्यादा आमदनी है तो स्कूल इस पैसे को किसी अन्य इंस्टीट्यूट में नहीं लगा सकते। उन्हें अतिरिक्त फंड स्कूल के खाते में ही रखना होगा। अगर हाईकोर्ट में सरकार की ओर से निर्धारित ट्यूशन फीस का 70 फीसद लेने के केस के खिलाफ अभिभावक यह दलील देते कि कमेटी रिपोर्ट का सारा डाटा उनके पास है तो हाईकोर्ट को पूरी फीस वसूलने के आदेश न देने पड़ते।
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