एंबुलेंस को रास्ता नहीं देने और स्लो ड्राइविंग करने पर कटेगा चालान
एंबुलेंस को रास्ता नहीं देना या उसके सामने स्लो ड्राइविंग महंगी पड़ेगी। ऐसा करने पर ट्रैफिक पुलिस इन चालकों के चालान करेगी।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : एंबुलेंस को रास्ता नहीं देना या उसके सामने स्लो ड्राइविंग महंगी पड़ेगी। ऐसा करने पर ट्रैफिक पुलिस इन चालकों के चालान करेगी। इसके लिए सड़कों पर लगे कैमरों का सहारा लिया जाएगा। इसके अलावा एंबुलेंस में डैश बोर्ड भी अनिवार्य किया जा रहा है। स्टेट रोड सेफ्टी काउंसिल की बुधवार को एडवाइजर परिमल राय की चेयरमैनशिप में हुई मीटिंग में यह फैसला लिया गया। एंबुलेंस के लिए ग्रीन कॉरीडोर बनाने के लिए इस फॉर्मुले पर काम होगा। सभी वी-2 रोड पर इसी माध्यम से अलग लेन बनेगी। एंबुलेंस के रास्ते में बाधा बनने, साइड नहीं देने या स्लो ड्राइविंग करने वालों पर सख्ती बरतने के आदेश ट्रैफिक पुलिस को दे दिए गए हैं। एडवाइजर ने सभी एंबुलेंस में डैश बोर्ड जल्द इंस्टॉल कराने के आदेश दिए हैं। एंबुलेंस में डैशबोर्ड कैमरा जल्द इंस्टॉल करने के आदेश
एंबुलेंस के अंदर डैशबोर्ड कैमरा जल्द से जल्द इंस्टॉल कराने का फैसला इस मीटिंग में लिया गया। एडवाइजर ने इस मामले में तेजी लाने के लिए कहा। इस डैशबोर्ड से इमरजेंसी में बेड की उपलब्धता और स्पेशलिटी बेड, क्षमता और ओक्यूपेंसी टेबल दिखेगी। जिससे ड्राइवर यह अंदाजा लगा सकता है कि मरीज को किस अस्पताल में पहुंचाना उचित होगा। अधिकतर एंबुलेंस का आना-जाना मध्य और दक्षिण मार्ग से रहता है। लेकिन इन दोनों ही मार्गो पर ट्रैफिक अधिक होने के कारण जाम की स्थिति रहती है। सुबह और शाम को पीक ऑवर्स में तो स्थिति और भी खराब रहती है। जिस कारण रोजाना एंबुलेंस भी जाम में फंसती रहती है। ट्रैफिक सिग्नल पर भी पांच से 10 मिनट तक अमूमन एंबुलेंस को लग जाते हैं। जिससे कई मरीजों को इलाज मिलने में देरी हो जाती है। चंडीगढ़ हेल्थ और एजुकेशन हब के तौर पर विकसित हो रहा है। पीजीआइ, जीएमसीएच-32 और जीएमएसएच-16 जैसे बड़े हेल्थ इंस्टीट्यूट होने से यहां ट्राईसिटी ही नहीं दूर दराज के मरीज भी स्वास्थ्य लाभ के लिए आते हैं। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू एंड कश्मीर के साथ उत्तराखंड और बिहार के मरीज भी आते हैं। अलग-अलग जगहों से रोजाना 1 हजार से अधिक एंबुलेंस चंडीगढ़ में दाखिल होती हैं। स्कूल बसों में सीट बेल्ट के लिए लिखेंगे स्कूलों को
स्कूल बसों में सामने वाली सीटों पर बैठने वाले बच्चों का सीट बेल्ट पहनना अनिवार्य होगा। यह सुनिश्चित करना बस चालक और अटेंडेंट का काम होगा। सीट बेल्ट लगाने के लिए स्कूलों को लिखा जाएगा। इसमें यह भी देखना होगा कि सीट बेल्ट लोकल या कामचलाऊ न हो, जिससे यह सही तरीके से काम न कर सके। इसमें सभी तरह की बारीकियों को पहले देखना होगा। बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए स्कूलों को इस पर अपनी रिपोर्ट देनी होगी। सेंट्रल मोटर व्हीकल्स रूल्स-1989 के रूल 138 के तहत इसे अनिवार्य किया जा रहा है। अकसर स्कूल बसों में बच्चों को ड्राइवर के साथ लगती कंडक्टर सीटों पर बैठाकर ले जाया जाता है। दुर्घटना की स्थिति में बच्चे संभल नहीं पाते। रेड क्लॉजर स्टॉप साइन अभी नहीं
स्कूल बसों के रुकने पर रेड क्लॉजर स्टॉप साइन दिखाने को मीटिंग में रिस्की बताया गया। अधिकारियों ने कहा कि ऐसा विदेशों में होता है। इसे लागू करने पर बच्चे और ड्राइवर निश्चित तो हो जाएंगे, लेकिन कई बार कोई तेजी से ड्राइव करते आ सकता है। इसे लागू करने से पहले जागरूकता जरूरी है। इसी तरह से सभी वी-6 रोड पर स्पीड लिमिट कम करने के प्रस्ताव को भी फिलहाल टाल दिया गया। मीटिंग में कुछ सदस्यों ने कहा कि सेक्टरों के बीच रोड पर पहले ही दोनों साइड कारें पार्क होती हैं, जिस कारण स्पीड पहले ही कम होती है। अभी इन रोड पर स्पीड लिमिट 35 है, जिसे 25 किमी. प्रति घंटा करने का प्रस्ताव था। सभी चयनित ब्लैक स्पॉट पर इंजीनिय¨रग डिपार्टमेंट से एक्शन टेकन रिपोर्ट मांगी गई है। कैशलेस ट्रीटमेंट के लिए अभी इंतजार
एक्सीडेंट की स्थिति में रजिस्टिर्ड नर्सिग होम और प्राइवेट अस्पतालों में कैशलेस ट्रीटमेंट के लिए पहले सभी नियमों को देखा जाएगा। उसके बाद यह सुविधा शुरू होगी। दिल्ली में यह सुविधा पहले से मिल रही है। पैदल चलने वाले होंगे और सुरक्षित
एडवाइजर परिमल राय ने कहा कि शहर को पैदल चलने वालों के लिए और सुरक्षित बनाया जाए। इसके लिए सड़कों पर जैबरा क्रॉसिंग और लाइनों की सही से मार्किंग की जाए। पैदल यात्रियों के निकलने के लिए ऑटो ट्रैफिक सिग्नल लगाए जाएं। जिससे वह बटन प्रेस कर सुविधानुसार रोड क्रॉस कर सकें। सेक्टर-16 अस्पताल के सामने और सुखना लेक पर ऐसे ही सिग्नल लगे हैं।