पुलिस अफसरों में तेज हुई पावर गेम
-ड्रग्स के मामले में अब बड़े अधिकारियों की साख दाव पर -एसटीएफ बनी बड़े अधिकारियों के लिए
-ड्रग्स के मामले में अब बड़े अधिकारियों की साख दाव पर
-एसटीएफ बनी बड़े अधिकारियों के लिए परेशानी
---
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़: सूबे में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही पावर को लेकर पुलिस अधिकारियों में शुरू हुए घमासान में अब नशे के किंग पिन भी उलझ चुके हैं। नशा व पावर के उपयोग व दुरुपयोग के आरोपों में घिरे पुलिस के बड़े अधिकारी खुलकर बोलने से गुरेज कर रहे हैं, लेकिन कोशिश की जा रही है कि अब मामले को ठंडा कैसे किया जाए। शुक्रवार को डीजीपी एस चट्टोपाध्याय ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में डीजीपी सुरेश अरोड़ा व डीजीपी दिनकर गुप्ता पर लगाए गए संगीन आरोपों के बाद पुलिस अफसरों की शीत युद्ध तेज हो गया है।
मामले की नींव करीब 8 माह पहले उस समय पड़ी थी, जब स्पेशल टास्क फोर्स ने एडीजीपी हरप्रीत सिंह सिद्धू की अगुवाई में इंस्पेक्टर इंदरजीत को नशा तस्करी के मामले में गिरफ्तार किया था। काग्रेस सत्ता में आने से पहले खुद आरोप लगाती थी कि अकाली-भाजपा सरकार के 10 साल के कार्यकाल में पंजाब नशे के दलदल में धंस चुका है। इसके लिए अकालियों व भाजपाइयों के साथ-साथ पंजाब पुलिस भी जिम्मेवार है। एसटीएफ ने नशे के खिलाफ पूरे पंजाब में अभियान की शुरुआत की तो कुछ दिनों बाद ही इंदरजीत हत्थे चढ़ गया। एसटीएफ ने नशा तस्करों के 19 केसों की पड़ताल की तो मामला खुला कि ज्यादातर केसों में इंदरजीत ने ही नशा तस्करों को पकड़ा था। उसी ने जाच की थी और भारी मात्रा में नशीले पदार्थो की रिकवरी भी हुई थी, लेकिन बाद में कानूनी दाव पेंच में ढिलाई बरत कर नशा तस्करों को छोड़ दिया गया था। इसके बाद इंदरजीत को गिरफ्तार किया गया, तो उसके पास से भी काफी मात्रा में नशीले पदार्थ व असलहा बरामद हुआ था।
पड़ताल के बाद मामले के तार मोगा के एसएसपी से जुड़ते दिखाई दिए। वजह थी कि इंदरजीत ने मोगा एसएसपी राजजीत के साथ काफी समय काम किया था। उनसे एसटीएफ ने पूछताछ भी की थी। एसटीएफ ने अपनी जाच रिपोर्ट तैयार की और इंदरजीत मामले में अदालत में चार्ज शीट पेश करने की तैयारी थी कि राजजीत ने सरकार से गुहार लगाई कि उन्हें एसटीएफ फंसाना चाहती है।
जिस समय इंदरजीत की गिरफ्तारी हुई थी, उसी समय से पुलिस के कई अधिकारी खेमों में बंट गए थे। धीरे-धीरे एसटीएफ को बॉर्डर इलाकों का प्रभार देकर सरकार ने और मजबूत कर दिया। बाद में धार्मिक नेताओं की हत्याओं को हल करवा कर डीजीपी कार्यालय ने सरकार से दोबारा पावर हासिल की और डीजीपी कार्यालय का दबदबा एक बार फिर से कायम हो गया। इसी बीच अमृतसर में हाई प्रोफाइल इंदरजीत चड्ढा आत्महत्या काड हो गया। इस मामले में डीजीपी एस चट्टोपाध्याय की भूमिका पर सवालिया निशान लगा दिया गया। जवाब में चट्टोपाध्याय ने पुलिस की जाच में शामिल होने की बजाय अदालत की शरण ले ली। अदालत ने उनके खिलाफ जाच पर रोक लगा दी है। क्योंकि मोगा एसएसपी की माग पर अदालत की ओर से गठित जाच कमेटी को चट्टोपाध्याय हेड कर रहे हैं। समय रहते सरकार खत्म करवा सकती थी विवाद
मोगा एसएसपी राजजीत सिंह ने सबसे पहले सरकार को पत्र लिखकर माग की थी कि एसटीएफ से उन्हें बचाया जाए। नशे के मामले में एसटीएफ उन्हें निजी कारणों से फंसाना चाहती है। अगर उसी समय सरकार ने मामले को गंभीरता से लेकर विवाद का हल निकाल लिया होता, तो आज तीन डीजीपी की साख दाव पर न लगती। सरकार का लापरवाही भरा रुख देखने के बाद राजजीत ने अदालत की शरण ली थी। डीजीपी की कुर्सी भी लड़ाई की वजह
डीजीपी सुरेश अरोड़ा सितंबर में रिटायर हो रहे हैं। नतीजतन डीजीपी बनने को लेकर कई अधिकारियों में करीब एक साल से शीत युद्ध चल रहा है। सूबे में काग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि जिस प्रकार मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मुख्य सचिव सर्वेश कौशल को हटाकर करन अवतार सिंह को मुख्य सचिव बनाया था, उसी प्रकार डीजीपी सुरेश अरोड़ा को भी हटाया जाएगा। कैप्टन ने अरोड़ा को न हटाकर उस समय तो मामले को संभाल लिया था, लेकिन अब उनकी रिटायरमेंट नजदीक आने के साथ ही उनकी कुर्सी को लेकर पुलिस अधिकारियों में पावर की जंग तेज होती जा रही है।