एक लीटर से कम की प्लास्टिक बोतल बंद
किसी भी मीटिंग, कांफ्रेंस या अन्य कार्यक्रम में आपको पानी की प्लास्टिक वाली बोतल दिखाई नहीं देगी।
बलवान करिवाल, चंडीगढ़ : किसी भी मीटिंग, कांफ्रेंस या अन्य कार्यक्रम में आपको पानी की प्लास्टिक वाली बोतल दिखाई नहीं देगी। बोतल होगी भी तो वह 1 लीटर से ऊपर की ही होगी। इससे छोटी बोतल मिलने पर कार्रवाई होगी। यूटी प्रशासन एक लीटर से कम मात्रा की पानी की बोतल बंद करने जा रहा है। इसके लिए चंडीगढ़ पॉल्यूशन कंट्रोल कमेटी (सीपीसीसी) ने सभी डिपार्टमेंट को सर्कुलर भी जारी कर हिदायत दे दी है। कुछ डिपार्टमेंट तो पहले से ही इसे फॉलो भी करने लगे हैं। गवर्नमेंट डिपार्टमेंट ही नहीं प्राइवेट संस्थानों को भी इन नियमों को पालन करना अनिवार्य होगा। इस साल पर्यावरण बचाने के लिए थीम प्लास्टिक को ना है। इसी को देखते हुए प्लास्टिक को कम करने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है।
इससे पहले महाराष्ट्र सरकार एक लीटर से कम की पानी की बोतल बंद कर चुकी है। जिसके बाद से प्लास्टिक वेस्ट काफी कम हो गया है। इसी मॉडल को अपनाने यूटी प्रशासन अपना रहा है। दरअसल हर मीटिंग, कांफ्रेंस और सामाजिक कार्यक्रम में अब पानी पिलाने का ट्रेंड बदल गया है। पानी गिलास में सर्व करने की बजाए पहले से टेबल पर बोतल रख दी जाती हैं। बोतल भी 250 या 500 मिलीलीटर की होती है। जिससे बर्बादी सबसे ज्यादा होती है। एक बोतल खुलते ही वेस्ट हो जाती है। जिससे प्लास्टिक वेस्ट जेनरेट होता है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने तीन साल पहले चंडीगढ़ में प्लास्टिक बैन करने के आदेश जारी किए थे। बावजूद इसके तीन साल बाद भी यह हर मार्केट में आसानी से देखा जा सकता है। कुछ दिन बाद जब प्रशासन जागता है तो पॉलीथिन की चेकिंग कर एक दो चालान कर दिए जाते हैं, उसके कुछ दिन बाद फिर वही हाल रहता है। नगर निगम ने नियम किया लागू
स्वच्छता ही सेवा अभियान की नोडल एजेंसी नगर निगम है। एमसी ही स्वच्छता सर्वेक्षण में शहर की स्टार रैंकिंग पर काम कर रही है। ऐसे में सबसे पहले एमसी ने ही प्लास्टिक वेस्ट कम करने का फैसला लिया है। इसकी शुरुआत हो चुकी है। एमसी ने अपने सभी कार्यक्रमों हाउस मीटिंग में प्लास्टिक की बोतल बैन कर दी हैं। अब किसी काउंसलर या अधिकारी की टेबल पर प्लास्टिक की बोतल नहीं दिखेगी। ऐसे आदेश भी जारी कर दिए गए हैं। बोतल की जगह कांच के गिलास से पानी परोसा जाने लगा है। प्लास्टिक से फ्यूल बनेगा
शहर से रोजाना 540 टन गारबेज निकलता है। जिसमें 60 टन से अधिक केवल प्लास्टिक होता है। यह दूसरे कचरे के साथ मिक्स होता है जिस कारण इसकी प्रोसेसिंग भी नहीं हो पाती। सेग्रीगेशन के बाद इसको प्रोसेस करना आसान हो जाएगा। सेग्रीगेशन शुरू करने के साथ प्लास्टिक से फ्यूल बनाने का प्लांट भी लगाया जा रहा है। जहां अलग होकर आने वाली प्लास्टिक को प्रोसेस कर फ्यूल में बदला जाएगा। निगम के इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए नाबार्ड 10 करोड़ रुपये भी देने को तैयार हो गया है। डड्डूमाजरा स्थित डंपिंग ग्राउंड में ही यह प्रोजेक्ट पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत लगाया जाएगा। सहज सफाई केंद्र को मटीरियल रिकवरी फैसिलिटी सेंटर पर आने वाले कचरे को सेग्रीगेट कर प्लास्टिक अलग निकाला जाएगा। बचे कचरे में में 90 टन कंस्ट्रक्शन और डिमोलिशन वेस्ट होता है। इसके लिए अलग प्लांट लगाया जा रहा है। जिससे इस वेस्ट के पेवर ब्लॉक बनेंगे। 120 टन होर्टिकल्चर वेस्ट निकलता है। इस वेस्ट की कंपोस्टिंग के लिए 70 पार्क में गड्ढे बनाकर की जा रही है। 400 पार्क में और ऐसा करने की तैयारी है। 110 टन गीला वेस्ट निकलता है। जिसमें किचन वेस्ट मुख्य है। इसे जेपी प्रोसेसिंग प्लांट से प्रोसेस कराया जाएगा। 150 टन ऐसा है जिसकी रिसाइक्लिंग हो सकेगी। 1 जनवरी से डडूमाजरा में नहीं गिरेगी कोई ट्रॉली
डड्डूमाजरा डंपिंग ग्राउंड पर कुल 5 लाख टन कचरा जमा है। इस पूरे कचरे को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत प्रोसेस कर डंपिंग यार्ड खत्म किया जा रहा है। इसकी प्रोसेसिंग के लिए कंपनियों से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट मांगे गए थे। 8 कंपनियों ने इसके लिए आवेदन किया है। तीन महीने में कोई एक चयनित कंपनी काम शुरू कर देगी। 1 जनवरी के बाद डंपिंग ग्राउंड पर कोई ट्रॉली कचरे की नहीं गिरेगी। पुराना गारबेज भी प्रोसेसिंग के बाद खत्म कर दिया जाएगा। फिर कभी भविष्य में डंपिंग यार्ड बनेगा ही नहीं।