पिंजौर एविएशन क्लब ने मुकदमा खारिज करने को दी याचिका, याची ने मांगे हैं 98.70 करोड़ Chandigarh News
याचिका में मुख्य फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर पर आरोप है कि उनकी देरी के कारण 20 साल के अंतराल के बाद 2018 में सीपीएल मिलने पर उन्हें कमर्शियल पायलट के रूप में नौकरी नहीं मिल सकी।
जेएनएन, चंडीगढ़। एक कमर्शियल पायलट लाइसेंस (सीपीएल) धारक व्यक्ति ने उड्डयन मंत्रालय, महानिदेशक नागरिक उड्डयन (डीजीसीए), हरियाणा उड्डयन विभाग के खिलाफ जिला अदालत में 98.70 करोड़ रुपये का हर्जाना मुकदमा दायर किया था। जिस पर पिंजौर एविएशन क्लब ने खारिज करने के लिए याचिका दायर की है। कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने आप ही अनुमान लगाकर हर्जाना राशि तय कर दी है जबकि यह अदालत द्वारा तय की जा सकती है। इसलिए शिकायतकर्ता की याचिका को खारिज किया जाए। वहीं, अदालत ने अब शिकायतकर्ता लखबीर सिंह को पिंजौर एविएशन क्लब की याचिका पर आठ नवंबर तक जवाब देने के लिए कहा है।
मोहाली के रहने वाले हैं लखबीर
मोहाली निवासी लखबीर सिंह ने हरियाणा के पिंजौर में इंस्टीट्यूट ऑफ सिविल एविएशन और इंस्टीट्यूट के पूर्व मुख्य फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर पर आरोप लगाते हुए याचिका दायर की थी कि उनकी देरी के कारण 20 साल के अंतराल के बाद 2018 में सीपीएल मिलने पर उन्हें कमर्शियल पायलट के रूप में नौकरी नहीं मिल सकी। इसलिए अदालत में हर्जाना मुकदमा दायर किया। लखबीर ने अपनी याचिका में कहा है कि 13 सितंबर 1999 को दायर याचिका पर सुनवाई के बाद उन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्देशों की पालना करते हुए 18 अप्रैल 2018 को डीजीसीए द्वारा वाणिज्यिक पायलट लाइसेंस (सीपीएल) जारी किया गया था। 26 मई 1995 को सलाहकार नागरिक उड्डयन हरियाणा द्वारा जारी विज्ञापन के बाद निजी पायलट लाइसेंस और वाणिज्यिक पायलट लाइसेंस पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए हरियाणा अधिवास उम्मीदवारों में आवेदन भरा था।
पक्षपात के कारण किया गया भेदभाव
इसके लिए उन्हें 250 घंटे उड़ान प्रशिक्षण और अन्य एग्जाम पास करना था। इस प्रकार उन्हें उडऩ प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए प्रायोजित उम्मीदवार के रूप में पिंजौर एविएशन क्लब में प्रवेश मिला और तीन वर्षों के भीतर उनका उड़ान प्रशिक्षण पूरा होना था। हालांकि पिंजौर एविएशन क्लब, संस्थान के पूर्व मुख्य उड़ान प्रशिक्षक ने सिंह को नुकसान पहुंचाने के लिए जान-बूझकर उड़ान प्रशिक्षण में देरी की। सिंह ने आरोप लगाया कि सभी एग्जाम पास करने के बाद भी हरियाणा फ्लाइंग कोटा उन्हें नहीं दिया गया। इस वजह से उड़ान प्रशिक्षण में देरी हुई।
न्यायालय के आदेशों के बाद दी गई प्रशिक्षण पूरा होने की अनुमति
आरोप लगाया कि तत्कालीन प्रमुख फ्लाइंग प्रशिक्षक ने प्रशिक्षुओं को फ्लाइंग आवर्स आवंटित करते हुए भाई-भतीजावाद और पक्षपात का सहारा लिया जिसके कारण उन्हें जान-बूझकर हरियाणा फ्लाइंग कोटा नहीं दिया गया। जबकि कई उम्मीदवार फर्जी दस्तावेजों और अधिवास के आधार पर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे। सिंह ने कहा कि 1997 में एक सिविल रिट याचिका और 1999 में एक अवमानना याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के बाद उन्हें 1999 में 250 घंटे की अपनी संपूर्ण उड़ान प्रशिक्षण पूरा करने की अनुमति दी गई थी। लेकिन उस समय उनके दो पेपरों की वैधता खत्म हो चुकी थी। जिस कारण यचिकाकर्ता को डीजीसीए ने सीपीएल जारी करने से मना कर दिया था। सिंह ने फिर 1999 में उच्च न्यायालय में एक नई याचिका दायर की जिसमें डीजीसीए के उस आदेश को चुनौती दी गई। उच्च न्यायालय का आदेश 2010 में उनके पक्ष में आया जिसने डीजीसीए को 13 सितंबर 1999 से आठ सप्ताह के भीतर सीपीएल देने का निर्देश दिया।
डीजीसीए ने भी दायर की थी अपील
हालांकि, डीजीसीए ने 2011 में उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर की जिसे 2013 में खारिज कर दिया गया। सिंह को फिर से सीपीएल नहीं दिया गया था, इसलिए उन्होंने 2014 में डीजीसीए के खिलाफ उच्च न्यायालय में 2010 के आदेश की अवमानना दर्ज की जिसमें डीजीसीए ने ङ्क्षसह को कहा कि यदि वह सभी परीक्षाओं को फिर से पास करता है और कौशल परीक्षा को पास करता है तो उन्हें सीपीएल प्रदान किया जाएगा। वर्ष 2017 में परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सिंह ने लाइसेंस प्राप्त करने के लिए अपना पेपर दिया और 42 वर्ष की आयु में 2018 में उन्होंने लाइसेंस प्राप्त किया।
देरी के कारण भविष्य खराब होने का दिया हवाला
लखबीर ने आरोप लगाया कि लाइसेंस देरी से मिलने के कारण, उन्हें इस अवधि में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उनके पास चंडीगढ़ के पास एक गांव में खराब स्थिति में अपने परिवार के साथ रहने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। उन्होंने कहा कि कोई 65 वर्ष की आयु तक पायलट के रूप में काम कर सकता है और उसकी वर्तमान आयु 43 वर्ष है। अब वह किसी भी एयरलाइन में नौकरी पाने के लिए ओवरएज हो गए हैं। इस तरह से संबंधित अधिकारियों द्वारा उनका भविष्य खराब कर दिया गया है। क्योंकि वह वर्तमान में प्रति माह 40,000 रुपये कमा रहे हैं, जबकि उनके सहयोगियों ने 1999 में डीजीसीए से अपने सीपीएल मिलने के बाद विभिन्न एयरलाइनों में पायलट के रूप में काम किया और आठ से दस लाख रुपये प्रति माह कमा रहे हैं।
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