घबराइए मत, दवा भी देंगे लेकिन पहले माला फेरकर राम-राम जपो
पीजीआई में लगातार बढ़ रही भीड़ पर काबू पाने के लिए डॉ. भंसाली ने एक नायाब तरीके को अपनाया है। यह मरीजों पर तेजी से असर भी कर रहा है।
चंडीगढ़(साजन शर्मा)। इलाज के लिए पीजीआइ के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग में जा रहे हैं, तो अपने साथ भगवान का नाम जपने वाली माला जरूर ले जाएं। यहां आपके सब्र के पैमाने का इम्तिहान लिया जाने वाला है। माला नहीं भी ले गए तो कोई बात नहीं। विभाग में डॉक्टर के कमरे में मौजूद असिस्टेंट आपको उपलब्ध करा देगा। अब आप सोच रहे होंगे कि डॉक्टर और माला का क्या रिश्ता है।
दरअसल पीजीआइ में बीते कुछ दिनों से न्यू ओपीडी में एंडोक्रायनोलॉजी विभाग के बाहर बैठे मरीजों पर एक प्रयोग चल रहा है। विभाग के हेड व संस्थान के डायरेक्टर की रेस में सबसे ऊपर चल रहे प्रो. अनिल भंसाली ने ही ये प्रयोग किया है। उन्होंने मरीजों को सब्र से इंतजार करने व खुद के कमरे में भी मरीजों की उमड़ने वाली भीड़ से खुद को बचाने के लिए ये नुक्ता निकाला है। हालांकि माला जपने के लिए किसी को विवश नहीं किया जाता। जो अपनी इच्छा से माला लेना चाहे, उसे थमा दी जाती है। सिख या अन्य धर्म के लोगों को बाध्य नहीं किया जाता। इस माला को लेकर आपको न्यू ओपीडी में चौथे फ्लोर पर मौजूद डॉ. अनिल भंसाली के कमरे के बाहर सब्र से बैठकर नाम जप करना होगा। सब्र से बारी का इंतजार कर रहे हैं, तो हो सकता है आपकी बारी जल्दी आ जाए, क्योंकि ऐसे मरीजों पर डाक्टर साहिब मेहरबान हो सकते हैं।
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चाहे रात के चाहे 12 बज जाएं, सबको देखकर ही जाऊंगा
डॉक्टर भंसाली न्यू ओपीडी में स्थित अपने कमरे में सुबह पहुंचते ही मरीजों को कह देते हैं कि चाहे रात के 12 भी बज जाएं, सब मरीजों को देखकर जाऊंगा, लेकिन इलाज के लिए सब्र से बैठकर इंतजार करना होगा। डॉक्टर की हिदायत के बाद आए कुछ नए मरीज व ऐसे मरीज व उनके परिजन, जिनकी बेचैन रहने की फितरत है, वे बार-बार डॉक्टर भंसाली के कमरे में झांकते हैं। तब डॉक्टर भंसाली अपने असिस्टेंट को थैला लाने का आदेश करते हैं। इस थैले में करीब 200 से 250 मालाएं हैं, जिन्हें डॉ. भंसाली ने बाकायदा बाजार से खरीदवाया है। इन्हें सबसे पहले इन बेचैन मरीजों को ही थमाया जाता है। फिर अन्य बैठे मरीजों को भी वह माला बांट दी जाती है और उन्हें आराम से बैठकर भगवान का नाम लेने को कहा जाता है। इस नुस्खे से कुछ फायदे भी हो रहे हैं।
मरीजों को ईश्वर की कृपा का हवाला देते हुए बताते हैं कि इसमें कहीं न कहीं मरीजों के बीमारी से पस्त हौसलों को मजबूत करने की भी सोच है। मरीजों व परिजनों को कहा जाता है कि डॉक्टर तो महज दवा देने वाला है। मरीज को दवा तो तभी लगेगी, जब ईश्वर की कृपा होगी।
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पीजीआइ मरीजों की भीड़ से परेशान
पीजीआइ लगातार संस्थान में बढ़ रही भीड़ से परेशान है। बीते साल की बात करें तो संस्थान में 24 लाख मरीजों ने ओपीडी में जांच कराई। बहुत से मरीज अस्पताल में इलाज को भर्ती भी हुए। मौजूदा इमरजेंसी व ट्रॉमा सेंटर में उपलब्ध स्पेस से चार-पांच गुणा मरीज हर समय मौजूद रहते हैं। इमरजेंसी में बीते दिनों पीजीआइ प्रशासन ने ट्राईऐज सिस्टम लागू किया, ताकि ज्यादा गंभीर किस्म के मरीज ही इमरजेंसी में दाखिल किए जाएं। पीजीआइ ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट को लेकर एक पायलेट प्रोजेक्ट पर काम भी कर रहा है, जिसमें यहां पेशेंट के रश को मैनेज करने के तरीके देखे जा रहे हैं। इस प्रोजेक्ट पर पीजीआइ करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है।
अपनी बारी के इंतजार में भजन भी हो जाता और धक्का-मुक्की भी नहीं होती1बीते दो साल से एंडोक्रायनोलॉजी विभाग में डॉ. अनिल भंसाली से शुगर व थायरायड का इलाज करा रहे सेक्टर-38 के सुरिंदर गर्ग का कहना है कि बीते कुछ दिनों से वह जा रहे हैं, तो उन्हें डॉक्टर साहिब की ओर से रश को मैनेज करने का यह नुक्ता बड़ा ही पसंद आया। एक तो इंतजार करते हुए भजन हो गया और दूसरा जो मरीजों की अफरातफरी रहती थी, उस पर भी अंकुश लग गया। अब डॉक्टर भंसाली के पास जब भी जाओ, तो मरीज बड़े अनुशासन में नजर आते हैं। किसी को माला जपने के लिए बाध्य नहीं किया जाता। जो स्वेच्छा से लेना चाहे, केवल उसको थमाई जाती है।
मरीज सब्र से करते हैं इंतजार
डॉ. अनिल भंसाली ने बताया कि पेशेंट हाथ में माला लेकर आराम से बैठ जाते हैं, जिससे इलाज के दौरान अफरातफरी का माहौल नहीं रहता। नुक्ता कारगर साबित हो रहा है। मरीज सब्र से अपनी बारी का इंतजार करते हैं।