PGI चंडीगढ़ में यूपी के सहारनपुर की 11 छात्राओं का हुआ इलाज, एक स्कूल की 13 स्टूडेंट्स हुई थी बीमार
पीजीआइ निदेशक प्रोफेसर विवेक लाल ने बताया कि पीजीआइ में भर्ती सभी 11 छात्राओं का सफल इलाज कर दिया गया है सभी छात्राओं का स्वास्थ्य अब सामान्य है। इनमें से एक छात्रा को ज्यादा तबीयत खराब होने पर 4 जुलाई को पीजीआइ में इलाज के लिए लाया गया था।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में बीते दो जुलाई को दूषित खाना खाने से 13 स्कूल छात्राओं को इलाज के लिए चंडीगढ़ लाया गया था। इन 13 में से 11 छात्राओं को पीजीआइ और दो छात्राओं को जीएमएसएच-16 में इलाज के लिए भर्ती किया गया था।
पीजीआइ निदेशक प्रोफेसर विवेक लाल ने बताया कि पीजीआइ में भर्ती सभी 11 छात्राओं का सफल इलाज कर दिया गया है, सभी छात्राओं का स्वास्थ्य अब सामान्य है। इनमें से एक छात्रा को ज्यादा तबीयत खराब होने पर 4 जुलाई को पीजीआइ में इलाज के लिए लाया गया था। सभी छात्राएं एक ही स्कूल की थी और पीजीआइ में उपचार के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई।
एडवांस पीडियाट्रिक सेंटर के आइसीयू में इस छात्रा को भर्ती कर डाक्टरों द्वारा तुरंत छात्रा को इंजेक्शन और वेंटिलेटर के साथ स्थिर कर दिया। दूषित खाना खाने की वजह से छात्रा को मुख्य रूप से हृदय और गुर्दे की समस्या आने लगी थी। इससे छात्रा का हृदय या गुर्दा फेल भी हो सकता था। ऐसे में छात्रा को आर्गेन स्पोर्ट की जरूरत थी। उसकी खराब किडनी के लिए सामान्य हेमोडायलिसिस नहीं किया जा सकता था, क्योंकि वह गंभीर रूप से बीमार थी और उसका दिल पर्याप्त रूप से पंप नहीं कर रहा था।
पीजीआइ के डाक्टरों ने छात्रा का डायलिसिस थेरेपी का एक नया और सुरक्षित तरीका अपनाया, जिसे कंटीन्यूअस रीनल रिप्लेसमेंट थेरेपी (सीआरआरटी) कहा जाता है। इस तकनीक से इलाज करने पर छात्रा रिकवर करने लगी। इसके बाद उसकी दवाएं धीरे-धीरे कम हो गईं और उसे वेंटिलेटर से हटा दिया गया।
प्रोफेसर लाल ने बताया समय पर सीआरआरटी ने छात्रा की जान बचाई। उन्नत बाल रोग केंद्र पीजीआइ चंडीगढ़ में बाल चिकित्सा आइसीयू गंभीर रूप से बीमार बच्चों के लिए सीआरआरटी का उपयोग शुरू करने वाली संस्थान की पहली इकाइयों में से एक है। सीआरआरटी उन बीमार बच्चों में दिया जाता है जिनके अंग खराब हो जाते हैं लेकिन सामान्य हेमोडायलिसिस को सहन करने में असमर्थ होते हैं। 10 में से तीन लड़कियों को भी पीआईसीयू में इलाज किया गया था, जिन्हें खराब काम करने वाले दिल की सामान्य समस्याएं थीं और कुछ हद तक गुर्दे की शिथिलता का भी पीआईसीयू में इलाज किया गया था, लेकिन उन्हें किसी डायलिसिस की आवश्यकता नहीं थी।