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    पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों में लाेग पाकिस्तानी ताल सुनने को मजबूर

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Sun, 23 Jul 2017 12:09 PM (IST)

    पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्र में लाेग पाकिस्‍तानी र‍ेडियो सुनने को मजबूर हैं। भारत के आकाशवाणी के कार्यक्रमों को सुनने से इस क्षेत्र के लोग आज भी वंचित हैं।

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    पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों में लाेग पाकिस्तानी ताल सुनने को मजबूर

    चंडीगढ़, [मनोज त्रिपाठी]। जरा सोचिए कि आप इंडो-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे फिरोजपुर जिले में अपनी कार से जा रहे हों और कार में बज रहे रेडियो पर अचानक पाकिस्तानी बाजार का प्रचार शुरू हो जाए। एक बारगी आपको भी लगेगा कि कहीं आप पाकिस्तान तो नहीं पहुंच गए। आकाशवाणी के आज 90 साल पूरे होने के बाद भी पंजाब की भारत-पाकिस्‍तान सीमा के क्षेत्र में जुड़े कई जिलों में आज भी लोग पाकिस्तानी रेडियो सुनने को मजबूर हैं।

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    सीमावर्ती जिलों के लोग पाकिस्तानी रेडियो सुनने को मजबूर

    फिरोजपुर से लेकर मोगा तक आज भी भारतीय रेडियो चैनलों की बजाय पाकिस्तानी रेडियो चैनलों के प्रोग्राम स्पष्ट तौर पर सुनाई देते हैं। बाजार पाकिस्तान में है, लेकिन उनका रेडियो पर प्रचार भारत में किया जा रहा है। भारतीय गीतों के दम पर फलफूल रहे पाकिस्तानी रेडियो चैनलों ने भारतीय रेडियो चैनलों की कम पहुंच का जमकर लाभ उठाया है। मुंबई से 90 साल पहले शुरू हुआ आकाशवाणी का सफर 1650 किलोमीटर इंडो-पाक सीमा पर बसे फिरोजपुर तक का सफर अभी पूरा नहीं हो  पाया है।

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    भारतीय गीतों के दम पर फलफूल रहा पाकिस्तानी रेडियो चैनल

    उधर, पाकिस्तानी सरकार ने सीमा से 21 किलोमीटर दूर स्थित कसूर में कुछ साल पहले रेडियो स्टेशन खुलवा दिया है। इसके चलते सीमावर्ती जिलों में आज भी कसूर रेडियो  स्टेशन के जरिए प्रसारित हो रहे विभिन्न एफएम रेडियो चैनलों पर पाकिस्तानी बाजार के हाल से लेकर सरहद पार की खबरें और भारतीय गीत सुनाई देते हैं।

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    ये है रेडियो पाकिस्तान और अब आप सुनिए...

    ये है पाकिस्तान रेडियो और अब आप सुनिए...ऐसी आवाज आज भी सीमवर्ती जिलों में रेडियो पर सुनाई देती है। फिरोजपुर से लेकर मोगा, फिरोजपुर से लेकर धर्मकोट, फिरोजपुर से लेकर फाजिल्का तक की करीब 60 किलोमीटर तक के दायरे में सीमा से लगे इलाकों में पाकिस्तानी रेडियो ही स्पष्ट तौर पर सुनाई देता है।

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    बीते पांच सालों में तेजी के साथ विकसित हुए भारतीय रेडियो बाजार में एफएम चैनलों की पहुंच भी सरहदी इलाकों में नहीं बन पाई है। हालांकि आकाशवाणी के स्वर को सरहदी इलाकों तक पहुंचाने के लिए दो साल पहले फाजिल्का में रेडियो स्टेशन का उद्घाटन भी केन्द्रीय मंत्री विजय सांपला कर चुके हैं। उन्होंने इस मुद्दे को भी सरकार के सामने भी उठाया है कि सरहदी इलाकों तक एफएम चैनलों की पहुंच बनाई जाए, लेकिन फिलहाल अभी तक यह संभव नहीं हो सका है।

    95 फीसदी भारतीय गीतों पर निर्भर हैं पाक रेडियो

    पाकिस्तानी रेडियो पर प्रसारित होने वाले गीतों के कार्यक्रमों में भारतीय गाने ही सुनाई देते हैं। साथ ही नई रिलीज हुई भारतीय फिल्मों के ट्रेलर से लेकर गीतों व गजलों के जरिए पाकिस्तानी रेडियो की रोजाना सजने वाली दुकान के कद्रदान मजबूरी में सरहदी इलाके के लोग बन रहे हैं।

    फिरोजपुर निवासी प्रदीप कहते हैं कि बचपन से ही वह पाकिस्तानी रेडियो सुनते आ रहे हैं। कई सालों पहले रेडियो की आवाज स्पष्ट आती थी, लेकिन धीरे-धीरे कम होती गई। दूसरी तरफ पाकिस्तानी रेडियो की फ्रिक्वेंसी न चाहते हुए भी भारतीय रेडियो की फ्रिक्वेंसी सेट करते-करते सेट हो जाती है।

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    लता मंगेशकर और जगजीत सिंह हैं सबसे फेवरेट

    पाकिस्तानी रेडियो पर सुनाए जाने वाले पुराने गीतों में ज्यादातर गीत लता मंगेशकर के होते हैं तो गजलों में जगजीत की गजलें। कसूर स्टेशन से प्रसारित होने वाले आधा दर्जन एफएम चैनलों ने दोनों गीतकारों व गजलकारों के लिए अलग-अलग से समय सेट कर रखा है।