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खिलाड़ियों को कोचिंग नहीं, जुनून और जज्बा बनाता है चैंपियन : मिल्खा सिंह

मिल्खा सिंह ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के अधिकारी कई दिनों से उनके संपर्क में थे, उन्होंने हाल ही उन्हें अपनी सहमति दी है। खेल और खिलाड़ियों को लेकर उन्होंने खुलकर बात की।

By Ankit KumarEdited By: Published: Sat, 12 Aug 2017 11:39 AM (IST)Updated: Sat, 12 Aug 2017 11:39 AM (IST)
खिलाड़ियों को कोचिंग नहीं, जुनून और जज्बा बनाता है चैंपियन : मिल्खा सिंह
खिलाड़ियों को कोचिंग नहीं, जुनून और जज्बा बनाता है चैंपियन : मिल्खा सिंह

चंडीगढ़, [विकास शर्मा]। फ्लाइंग सिख पद्मश्री मिल्खा सिंह दुनिया के ऐसे खिलाडिय़ों में से एक हैं जोकि सालों से देश-दुनिया के खिलाडिय़ों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने हुए हैं। वक्त के साथ मिल्खा सिंह शारीरिक तौर पर जरूर कमजोर हुए हैं लेकिन उनके मजबूत इरादे और हौसले आज भी वैसे ही हैं जैसे 60 के दशक में थे। वल्र्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की तरफ से गुडविल अंबेसेडर बनाए जाने के बाद पद्मश्री मिल्खा सिंह ने दैनिक जागरण से शुक्रवार को खास बातचीत की। उन्होंने बताया कि मेरे पास फिटनेस का एक ही मंत्र है, ज्यादा से ज्यादा दौड़ो-भागो। आप जितने ज्यादा भागोगे डॉक्टर से उतने ही दूर रहोगे।

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एशियन देशों में जाकर करेंगे युवाओं को प्रेरित

मिल्खा सिंह ने बताया कि  डब्ल्यूएचओ के अधिकारी कई दिनों से उनके संपर्क में थे, हाल ही मैं मैंने उन्हें अपनी सहमति दी है। उन्हें जानकारी मिली है कि उन्हें एशियन देशों में जहां भी डब्ल्यूएचओ के ऑफिस हैं, वहां जाकर युवाओं को फिटनेस के लिए जागरूक करना है, ताकि युवा डॉक्टर और दवाइयों से दूर रह सकें।

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मेरी फिटनेस से सबक लें युवा

मिल्खा सिंह ने बताया कि मेरी उम्र 87 के पार है, मैं अभी भी अपनी फिटनेस को लेकर खासा जागरूक रहता हूं, रोजाना गोल्फ क्लब में जाता हूं, हफ्ते में दो दिन जॉगिंग करता हूं और एक्सरसाइज करने के लिए घर में ही मैंने जिम बना रखा है। जहां रोज एक दो घंटे हल्की एक्सरसाइज करता हूं। युवा अगर एक बार मैदान में जाने की आदत डाल लें, तो उनकी आगे वाली पीढिय़ां भी सुधर जाएंगी।

फ्लाइंग सिख का खेल सफर

मिल्खा सिंह ने 1958 के एशियाई खेलों में 200 व 400 मीटर में स्वर्ण पदक, 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक, 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता है। साल 1960 में जब मिल्खा ने पाकिस्तान प्रसिद्ध धावक अब्दुल बासित को पाकिस्तान में हराया तो जनरल अयूब खान ने उन्हें फ्लाइंग सिख का नाम दिया था। रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह चौथे स्थान पर रहे।

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जज्बे से तैयार होते हैं खिलाड़ी

मिल्खा सिंह ने बताया कि हमारे जमाने में न तो ग्र्राउंड थे और न ही अनुभवी कोच थे। हम नंगे पांव दौड़े,  बावजूद इसके हमने अपनी मेहनत से शानदार प्रदर्शन किया लेकिन अब इंडिया में तमात तरह की सुविधा हैं, फिर भी खिलाड़ी मेडल नहीं जीत पा रहे हैं। जिससे खेल प्रेमियों को निराशा होती है।

ऐसे सुधरेगा खेल का स्तर

मिल्खा के अनुसार इंडिया में खेल का स्तर तभी सुधर सकता है। जब खेल से जुड़े विभागों और एसोसिएशन पर नेताओं के बजाय खिलाडिय़ों को कमान सौंपी जाएगी। इस समय प्रधानमंत्री के पास राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जैसे इंटरनेशनल खिलाड़ी हैं तो अन्य किसी को खेल मंत्रालय सौंपने के क्या मायने हैं। गोपीचंद जैसे खिलाडिय़ों ने देश को बहुत कुछ दिया है। इसलिए ऐसे समर्पित खिलाडिय़ों को और जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। मैंने कई बार खेल संबंधित सलाह अलग-अलग सरकारों को दी लेकिन जमीनी स्तर पर इन सलाहों का कोई असर नहीं दिखता है।

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बॉलीवुड के कई लोग हैं संपर्क में 

भाग मिल्खा भाग की कामयाबी के बाद कई बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं ने मेरे आगे के जीवन पर फिल्म बनाने के लिए उनसे अनुमति मांगी थी लेकिन अभी मैंने किसी को फिल्म बनाने की अनुमति नहीं दी है। यकीनन अच्छा प्रस्ताव मिलने पर वह फिल्म बनाने की अनुमति देंगे। 

मेहनत से ही मिलती है कामयाबी 

खिलाडिय़ों के लिए सफलता का एक ही मंत्र है कि वह कड़ी मेहनत करें तभी उन्हें कामयाबी मिलेगी। जो खिलाड़ी जीतते हैं यकीनन वह हारने वाले खिलाड़ी से ज्यादा मेहनत करते हैं। 

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खेल को समर्पित है पूरा परिवार

मिल्खा सिंह की पत्नी निर्मल कौर पूर्व भारतीय महिला वालीबॉल कप्तान  रह चुकी है। उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है। बेटा जीव मिल्खा सिंह एक मशहूर गोल्फ  खिलाड़ी है। भारत सरकार मिल्खा सिंह और उनके बेटे जीव मिल्खा सिंह को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित कर चुकी है। मिल्खा सिंह की बेटी सोनिया ने उनकी आत्मकथा द रेस ऑफ माई लाइफ लिखी है।


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