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चंडीगढ़ के पद्मश्री लंगर बाबा नहीं रहे, चालीस वर्षों तक पीजीआइ के बाहर जारी रखा लंगर

पीजीआइ चंडीगढ़ के बाहर 40 वर्षो से मरीजों और उनके तीमारदारों के लिए लंगर लगाने वाले पद्मश्री लंगर बाबा ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 29 Nov 2021 11:47 PM (IST)Updated: Mon, 29 Nov 2021 11:47 PM (IST)
चंडीगढ़ के पद्मश्री लंगर बाबा नहीं रहे, चालीस वर्षों तक पीजीआइ के बाहर जारी रखा लंगर
चंडीगढ़ के पद्मश्री लंगर बाबा नहीं रहे, चालीस वर्षों तक पीजीआइ के बाहर जारी रखा लंगर

डा. सुमित सिंह श्योराण, चंडीगढ़

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पीजीआइ चंडीगढ़ के बाहर 40 वर्षो से मरीजों और उनके तीमारदारों के लिए लंगर लगाने वाले पद्मश्री लंगर बाबा ने दुनिया को अलविदा कह दिया। लंबे समय से कैंसर से पीड़ित जगदीश लाल आहूजा ने सोमवार सुबह पीजीआइ में ही अंतिम सांस ली। एक बेहद साधारण शख्शियत वाले जगदीश लाल आहूजा इतने खास थे कि उनके काम को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सराहा था। 85 साल के जगदीश आहूजा कभी चंडीगढ़ की सड़कों पर केले की रेहड़ी लगाते थे। कड़ी मेहनत से कोठियां भी बनाई, लेकिन उसके बाद पीजीआइ के बाहर भूखे और जरूरतमंद लोगों के लिए लंगर शुरू किया और उसे जारी रखने के लिए करोड़ों की प्रापर्टी भी बेच दी। मौसम और हालात कैसे भी हुए हों, लेकिन जगदीश आहूजा के लंगर का क्रम कभी नहीं टूटा। 25 जनवरी 2020 को भारत सरकार ने लंगर बाबा के जज्बे से प्रभावित होकर उन्हें पद्मश्री के लिए चुना था। पद्मश्री के लिए चुने जाने वाले लंगर बाबा शहर के पहले आम आदमी थे। अवार्ड की घोषणा पर लंगर बाबा ने कहा था अरे .. एक रेहड़ी वाले को पद्मश्री दे दिया। जगदीश आहूजा गरीबों के मसीहा थे, गरीब और जरूरतमंद बच्चों के लिए खाने से लेकर कपड़े और पढ़ाई तक का इंतजाम करते थे। सोमवार दोपहर बाद चंडीगढ़ में आहूजा का अंतिम संस्कार कर दिया गया।

अगले हफ्ते घर पर मिलना था पद्मश्री

जगदीश लाल आहूजा को आठ नवंबर को राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री ग्रहण करने के लिए निमंत्रण मिला था, लेकिन तबीयत खराब होने के कारण वह कार्यक्रम में नहीं जा सके और उन्हें पीजीआइ में भर्ती होना पड़ा। उनके साथ 26 वर्षो से काम करने वाले धर्मबीर ने बताया कि अगले हफ्ते दिल्ली से अधिकारी बाबा को पद्मश्री देने के लिए घर आने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही वह हमारा साथ छोड़ गए। उनके सेवा भाव के लिए जगदीश आहूजा को चंडीगढ़ प्रशासन से दो बार स्टेट अवार्ड और विभिन्न संस्थानों द्वारा कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है। बाबा की अंतिम इच्छा, लंगर जारी रहे

पद्मश्री जगदीश आहूजा काफी समय से कैंसर से जूझ रहे थे। उनका पीजीआइ में ही इलाज चल रहा था। पद्मश्री की घोषणा के समय उन्होंने सरकार से मांग की थी कि उनके दुनिया से जाने के बाद भी लंगर जारी रह सके, ऐसे में उनका टैक्स माफ कर दिया जाए। मामले में यूटी प्रशासन और भारत सरकार से भी आग्रह किया, लेकिन किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की। धर्मबीर के अनुसार बाबा की अंतिम इच्छा थी कि पीजीआइ के बाहर लंगर कभी बंद नहीं होना चाहिए, लेकिन बाबा का सपना पूरा होगा या नहीं वह अभी कुछ नहीं कर सकते। लंगर तैयार करने वाले संदीप के अनुसार फिलहाल एक महीने का राशन है, लेकिन उसके बाद क्या होगा यह हमें नहीं पता। बेटे गिरिश आहूजा ने कहा कि वह पूरी कोशिश करेंगे कि पिता के लंगर को पहले की तरह जारी रख सकें।


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