याचना नहीं अब रण होगा..
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़:याचना नहीं अब रण होगा.. जंजीर बढ़ा बाध मुझे, हा-हा दुर्योधन बाध मुझे। इन्हीं पंक्तियों के साथ टैगोर थियेटर का मिनी थिएटर गूंज उठा। कार्यक्रम था कवि रामधारी सिंह दिनकर के 111वें जन्मदिवस पर कवि संगोष्ठी का।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़:याचना नहीं अब रण होगा.. जंजीर बढ़ा बाध मुझे, हा-हा दुर्योधन बाध मुझे। इन्हीं पंक्तियों के साथ टैगोर थियेटर का मिनी थिएटर गूंज उठा। कार्यक्रम था कवि रामधारी सिंह दिनकर के 111वें जन्मदिवस पर कवि संगोष्ठी का। जिसे नोर्थ कल्चर जोन पटियाला की तरफ से आयोजित किया गया था। कवि संगोष्ठी ने चंडीगढ़ के अलावा ट्राइसिटी के विभिन्न कवियों ने भाग लिया और रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखी गई कविताओं को विशेष तौर पर पेश किया गया।
क्षमा शोभति उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो
कवि संगोष्ठी में करीब 30 कवियों ने भाग लिया। सभी ने रामधारी सिंह दिनकर की अलग-अलग कविताओं को पेश किया। इस मौके पर लेखक व कवि अजय राणा क्षमा शोभति उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो,उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत सरल हो को पेश किया। कविता के जरिए अजय राणा ने रामधारी सिंह दिनकर के व्यंग्यात्मक जीवन का परिचय दिया। उन्होंने कविता से ही रामधारी की सोच को पेश।
कुंती-कर्ण के संवाद में बाधा समा
कवि संगोष्ठी के अंत में कुंती कर्ण का शानदार संवाद आयोजित किया गया। जिसमें श्रीकृष्ण कुंती का कुरूक्षेत्र युद्ध से पहले कर्ण के पास भेजता है कि ताकि वह पाडवों पर अस्त्र न उठाएं। जब कुंती कर्ण के पास पहुंचती है तो कर्ण कुंती की कोई बात नहीं मानता और उसे वहा से जाने के लिए बोल देता है। कुंती लोक लज्जा की दुहाई देती है लेकिन कर्ण उसे नकार देता है और कुंती को मा मनाने से इंकार कर देता है। संवाद के अंत में कुंती कर्ण को गले लगती है। जैसे ही मा-बेटा आपस में मिलते है तो कर्ण का गुस्सा शात हो जाता है और वह मा को आश्वासन देता है कि वह अर्जुन को छोडक़र किसी पर हथियार नही उठाएगा।