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विपरीत परिस्थितियों में भी नहीं मानी हार, आज दूसरों के लिए मिसाल

सुमेश ठाकुर, चंडीगढ़ : इंसान का शरीर उसकी रीढ़ पर निर्भर करता है। यदि रीढ़ की हड्डी

By JagranEdited By: Published: Wed, 07 Nov 2018 10:53 AM (IST)Updated: Wed, 07 Nov 2018 10:53 AM (IST)
विपरीत परिस्थितियों में भी नहीं मानी हार, आज दूसरों के लिए मिसाल
विपरीत परिस्थितियों में भी नहीं मानी हार, आज दूसरों के लिए मिसाल

सुमेश ठाकुर, चंडीगढ़ : इंसान का शरीर उसकी रीढ़ पर निर्भर करता है। यदि रीढ़ की हड्डी एक बार टूट जाए, तो जिंदगी नरक बन जाती है, लेकिन इस धारणा को गलत साबित किया है शहर में रहने वाली भावना और कौशल्या ने। दोनों हिम्मत से दूसरों को सीख दे रहे हैं कि इंसान के अंदर हौसला हो, तो रीढ़ टूटने के बाद भी वह एक अच्छी जिंदगी जी सकता है और बेहतरीन काम करके दूसरों के लिए मिसाल बन सकता है। चंडीगढ़ स्पाइन रिहेब सेंटर सेक्टर-28 में रहने वाली 24 वर्षीय भावना और 35 वर्षीय कौशल्या दूसरों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी हुई हैं। दोनों की रीढ़ की हड्डी टूट चुकी है और उसके बाद भी दोनों अपना जीवन चलाने के साथ-साथ दूसरों के लिए भी काम कर रही हैं। नर्स बनने का सपना पूरा करके ही मानीं

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सेंटर में रहने वाली भावना पंजाब के फिरोजपुर जिले के कडमा गाव की रहने वाली हैं। बारहवीं पास करने के बाद पहले एएनएम और उसके बाद जीएनएम का कोर्स किया। जीएनएम पूरा होने के बाद मोहाली के आइवीवाइ अस्पताल से स्टाफ नर्स के तौर पर काम करने का मौका मिला। फिरोजपुर से भावना कैब से मोहाली आ रही थी। पंजाब के रामपुराफूल के पास एक्सीडेंट हो गया, जिसमें भावना की रीढ़ की हड्डी पर चोट आई। सिर की चोट तो ठीक हो गई, लेकिन रीढ़ की टूटी हड्डी भावना को अपाहिज बना गई। भावना ने रीढ़ की हड्डी टूटने के बाद भी हौसला नहीं छोड़ा और सेक्टर-28 स्थित रिहेब सेंटर पर थैरेपी कराने के लिए पहुंचीं। तीन माह की थैरेपी के बाद भावना आज ठीक हैं और वह व्हीलचेयर पर रहते हुए भी अपने जैसे बीसियों मरीजों की देखरेख कर रही हैं। माता-पिता का सपना था : आत्मनिर्भर बने भावना

भावना ने बताया कि पापा टेलर हैं, जबकि मम्मी आगनबाड़ी वर्कर के तौर पर काम करती हैं। परिवार में चार भाई-बहन हैं, जिसमें भावना दूसरे नंबर पर हैं। भावना से छोटा एक भाई मानसिक तौर पर कमजोर है, घर की स्थिति ठीक नहीं थी। पापा ने किसी तरह से एएनएम और जीएनएम कराई थी। उसके बाद अब घर बैठना मेरे लिए मंजूर नहीं था, क्योंकि मम्मी-पापा का सपना था कि मैं आत्मनिर्भर बनूं। इसी कारण से रिहेब सेंटर में दूसरों की सेवा में जुटी हुई हूं। कौशल्या ने बारह साल खुद लड़ी लड़ाई, आज कर रहीं नौकरी

भावना की तरह ही रिहेब सेंटर में कौशल्या भी रहती हैं। कौशल्या हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के देवठी मझागाव की रहने वाली हैं। शादी के दो साल बाद बेटा हुआ। बेटा मात्र दस महीने का था, उस समय घास काटते हुए पहाड़ से गिर गई। पति ने घर में रखने से इन्कार कर दिया और दूसरी शादी कर ली। कौशल्या बारह सालों तक अपने मायके में रही। गाव के आर्मी से सेवानिवृत्त प्रेम सिंह ठाकुर भी अपाहिज हैं, जिसके कारण वे मोहाली के रिहेब सेंटर में रहते है। प्रेम ठाकुर कौशल्या को चंडीगढ़ के रिहेब सेंटर में ले आए, जहा पर आज कौशल्या खुद का इलाज कराने के साथ-साथ सुपरविजन का काम करती हैं। इस काम के लिए उन्हें पैसे भी मिलते हैं। कौशल्या ने बताया कि रीढ़ की हड्डी टूटने का अर्थ कभी भी जीवन का अंत नहीं होता।


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