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PU President Kanupriya बाेली-मेरी जीत ने लड़कियों को नई सोच और हौसला दिया, बुलंद हुई आवाज

स्टूडेंट फॉर सोसायटी (एसएफएस) छात्र संगठन नेता कनुप्रिया ने पंजाब यूनिवर्सिटी छात्र काउंसिल में पहली बार प्रेसिडेंट पद पर जीत हासिल कर बड़ा उलटफेर किया था।

By Vipin KumarEdited By: Published: Fri, 31 May 2019 01:38 PM (IST)Updated: Fri, 31 May 2019 05:50 PM (IST)
PU President Kanupriya बाेली-मेरी जीत ने लड़कियों को नई सोच और हौसला दिया, बुलंद हुई आवाज
PU President Kanupriya बाेली-मेरी जीत ने लड़कियों को नई सोच और हौसला दिया, बुलंद हुई आवाज

चंडीगढ़, [डॉ. सुमित सिंह श्योराण]। 7 सितंबर 2018 का दिन पंजाब यूनिवर्सिटी के इतिहास में हमेशा याद रहेगा। जब एक साधारण लड़की ने असंभव को मुमकिन कर दिखाया। स्टूडेंट फॉर सोसायटी (एसएफएस) छात्र संगठन नेता कनुप्रिया ने पंजाब यूनिवर्सिटी छात्र काउंसिल में पहली बार प्रेसिडेंट पद पर जीत हासिल कर यह उलटफेर किया था। नेतृत्व प्रतिभा की धनी कनुप्रिया न सिर्फ प्रेसिडेंट बनीं, बल्कि यूनिवर्सिटी में लड़कियों की बुलंद आवाज बनीं। Girls हॉस्टलर को पहली बार 24 घंटे आजादी दिलाने से लेकर प्रशासनिक सिस्टम को दुरुस्त करने में कनुप्रिया का विशेष योगदान रहा। कनुप्रिया की इस कामयाबी ने कैंपस की सैकड़ों छात्राओं के लिए पीयू की राजनीति के दरवाजे खोल दिए। प्रेसिडेंट चुने जाने पर कनुप्रिया ने कहा था, तालों में बंद करने से बेटियों की सुरक्षा नहीं होगी। शुक्रवार काे पीयू स्टूडेंट काउंसिल का कार्यकाल खत्म हो गया। कनुप्रिया से उनके पूरे कार्यकाल की चुनौतियों और दूसरे अनुभवों को लेकर दैनिक जागरण ने विशेष बातचीत की। पेश हैं कुछ खास अंश ..

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पीयू स्टूडेंट काउंसिल प्रेसिडेंट के तौर पर कार्यकाल कैसा रहा?


कनुप्रिया के पहली बार प्रेसिडेंट बनने पर जश्न मनाते छात्र।

पहली बार प्रेसिडेंट बनने पर कामकाज को समझने में थोड़ा समय जरूर लगा, लेकिन इस दोरान बहुत कुछ नया सीखने को मिला। मैंने हर स्टूडेंट्स जिसमें लड़की हो या लड़का, सभी तक पहुंचने की कोशिश भी की और मैं इसमें काफी हद तक कामयाब भी रही। मेरी बड़ी उपलब्धि सही मायनों में कैंपस के स्टूडेंट्स का भरोसा जीतना रहा। जिसके दम पर ही पंजाब यूनिवर्सिटी कैंपस में पहली बार लड़कियों को हॉस्टल में सही मायनों में आजादी मिली। 

पीयू काउंसिल प्रेसिडेंट रहते हुए कौन-कौन से काम किए
लड़कियों के लिए 24 घंटे हॉस्टल खोलने के लिए 48 दिन तक पीयू प्रशासन के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी, लेकिन उसमें आखिर स्टूडेंट्स की जीत हुई। पीयू के एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक में लटकने वाले कामों को स्ट्रीमलाइन करवाया गया। 25 हजार तक स्टूडेंट्स पर फाइन लगते थे, मेडिकल मामलों में बहुत हैरासमेंट होती थी, इन सब को ठीक किया गया। फिर भी कुछ काम ऐसे रह गए, जिन्हें प्रशासनिक इच्छा शक्ति के कारण पूरा नहीं किया जा सका। जिसमें नो व्हीकल जोन, हॉस्टल अलॉटमेंट में ट्रांसपेरेंसी और स्टूडेंट्स के लिए हेल्पलाइन शुरू करना शामिल है।

क्या उम्मीद है अगली बार कोई लड़की को फिर मौका मिलेगा?
मेरी जीत से नई शुरुआत हुई है। पीयू राजनीति में अब दूसरी लड़कियों की भी रूचि बढ़ेगी। वह भी काउंसिल में अपनी जगह क्लेम करेंगी। एसएफएस ने जो काम किया उसका भी लड़कियों को लाभ मिलेगा। 70 फीसद लड़कियां होने पर भी लड़की का प्रेसिडेंट नहीं बन पाना दुर्भाग्यपूर्ण है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। लड़कियां अब पीयू स्टूडेंट यूनियन को ज्वाइन करना चाहती हैं। काउंसिल में आने पर लड़कियों को बेहतर एक्सपोजर मिलेगा।

बीते साल भर में पीयू की रैंकिंग और एकेडिमक स्तर पर गिरावट क्यों आई है?
पीयू कैंपस वैसे तो पहले से ही राजनीति से प्रभावित रहा है। लेकिन बीते साल भर में पॉलिटिक्स एकेडिमक गतिविधियों पर भारी रही हैं, जिसका असर साफ तौर पर रहा है। पीयू के कई विभागों में शिक्षकों की भारी कमी है। पीएचडी स्कॉलर स्टूडेंट्स को पढ़ा रहे हैं। ऐसे में कैसे शैक्षणिक स्तर उठेगा। इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। 

पंजाब की बेटी कनुप्रिया ने किया कमाल
पंजाब में तरनतारन स्थित पट्टी निवासी कनुप्रिया पीयू में एमएससी जियोलॉजी विभाग की स्टूडेंट हैं। 23 वर्षीय कनुप्रिया ने एसएफएस संगठन के साथ मिलकर पीयू में प्रेसिडेंट का चुनाव लड़ा और पहली प्रेसिडेंट बनीं। मां चंद्रसूदा एएनएम और पिता पवन कुमार हाईवे इंडस्ट्री में कार्यरत हैं।

पीयू स्टूडेंट काउंसिल पर साल भर कैंपस में धरने और विरोध प्रदर्शन का आरोप लगता रहा है?
स्टूडेंट्स की दिक्कतों को प्रशासन के सामने रखना किसी भी तरीके से गलत नहीं है। यह सभी का अधिकार है। हमने कभी भी टारगेट कर कैंपस में धरने प्र्दशन नहीं किए। प्रशासन को हमेशा उनके बारे में पहले से अवगत कराया, जब स्टूडेंट्स की बात नहीं सुनी गई तभी ऐसा करना पड़ा। 

क्या भविष्य में राजनीति में जाने का विचार है?
जवाब-अभी मेरा पूरा फोकस पढ़ाई पर रहेगी। लेकिन राजनीति में जाने के रास्ते खुले हैं। मैं इस ओर काफी सकारात्मक हूं। मैं गांवों के बच्चों को लेकर कुछ प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर रही हूं। राजनीति में आगे भी मौका मिलेगा, तो जरूर चैलेंज को स्वीकार किया जाएगा। मेरा मानना है कि अन्य लड़कियों को भी राजनीति को सकारात्मक तौर पर देखना चाहिए। मेरी उपलब्धि बस इतनी है कि मैने लड़कियों की सोच को नई दिशा देने की कोशिश की।

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