पंजाब में रोजाना सड़क हादसों में औसतन जाती है 12 की जान
देश भर में 415 लोग प्रतिदिन सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। जोकि पूरे देश में आतंकवाद के कारण होने वाली मौतों से काफी अधिक हैं।
जागरण संवाददाता, मोहाली :
देश भर में 415 लोग प्रतिदिन सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। जोकि पूरे देश में आतंकवाद के कारण होने वाली मौतों से काफी अधिक हैं। वहीं पंजाब की सड़कों पर होने वाले सड़क हादसों में हर रोज औसतन 12 लोग अपनी जान गंवाते हैं। ऐसी घटनाओं में सबसे अधिक मौत (86 प्रतिशत) पुरुषों की होती है, जोकि 25 से 35 आयु वर्ग के होते हैं। पंजाब में होने वाली मौतों में 14 प्रतिशत महिलाएं होती हैं। इन आंकड़ों का खुलासा ट्रैफिक एडवाइजर पंजाब नवदीप असीजा ने किया है। उन्होंने चंडीगढ़ ग्रुप ऑफ कॉलेजेज (सीजीसी), लांडरां में बुधवार को सड़क सुरक्षा अभियान के तहत आयोजित कार्यक्रम में इन आंकड़ों का जिक्र किया।
एनजीओ, ड्राइव स्मार्ट ड्राइव सेफ की ओर से आयोजित कार्यक्रम में सड़क हादसों में पीड़ितों की याद में एक शपथ समारोह और एक मिनट का मौन रखा गया। जागरूकता के लिए बनाई मानव श्रृंखला
इस मौके पर वॉकथन का आयोजन किया गया और इस अवसर पर एक मानव श्रृंखला भी बनाई गई। एडीजीपी ट्रैफिक पंजाब डॉ. एसएस चौहान कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे। चौहान ने कहा कि ''हमें सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए यातायात को लेकर लोगों की सोच को बदलने की आवश्यकता है। जापान के ट्रैफिक कल्चर से नसीहत लेने की दी सलाह
एडीजीपी ट्रैफिक पंजाब डॉ. एसएस चौहान ने कहा कि ''जापानियों ने ट्रैफिक कल्चर का पालन करते हुए और नियमों को तोड़ने की बजाय पूरी तरह से पालन करते हुए एक मिसाल कायम की है। इन सड़क हादसों में परिवार के प्रमुख आय कमाने वाले व्यक्ति की मौत के बाद शहरी क्षेत्रों में 70 प्रतिशत परिवार और ग्रामीण क्षेत्रों में 50 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं, जो कि इन सड़क हादसों का सबसे दुखद पहलू है। जिसके बारे में काफी कम बात होती है। सड़कों पर यात्रा करने के मामले में बढ़ती जा रही जोखिम : रमा शंकर
हेला इंडिया लाइटिग लिमिटेड के एमडी रमा शंकर पांडे ने कहा कि ''भारतीय सड़कों पर यात्रा करना बेहद जोखिम भरा है। प्रेसिडेंट, अराइव सेफ हरमन सिंह सिद्धू ने कहा कि सड़क हादसों में होने वाले जानलेवा हादसों के बढ़ते ग्राफ में कमी तक नहीं कर पाए हैं। इनमें अपनी जान खोने वाले लोगों की संख्या को 50 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य तो भूल ही जाएं। इसी से हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है।'' इस दौरान अन्य वक्ताओं ने अपने विचार रखे।