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थेलैसेमिक बच्चों के लिए मैरो ट्रांसप्लांट तकनीक बनेगी वरदान, खत्म होगा खून बदलने का झंझट

मेजर थेलैसेमिक बच्चे जिन्हें हफ्ते में दो बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती है उनके लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट तकनीक वरदान साबित हो सकती है।

By Vipin KumarEdited By: Published: Sat, 06 Apr 2019 12:35 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 11:06 AM (IST)
थेलैसेमिक बच्चों के लिए मैरो ट्रांसप्लांट तकनीक बनेगी वरदान, खत्म होगा खून बदलने का झंझट
थेलैसेमिक बच्चों के लिए मैरो ट्रांसप्लांट तकनीक बनेगी वरदान, खत्म होगा खून बदलने का झंझट

जेएनएन, चंडीगढ़। मेजर थेलैसेमिक बच्चे जिन्हें हफ्ते में दो बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती है, उनके लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट तकनीक वरदान साबित हो सकती है। इसकी मदद से वह बच्चा सामान्य जीवन जी सकता है। थेलैसीमिया, ब्लड कैंसर और ऐसी ही अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज में इस तकनीक का सक्सेस रेट काफी अच्छा साबित हो रहा है।

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उत्तर भारत में इस तकनीक के प्रयोग से लगभग 150 बच्चों को नया जीवन मिल चुका है। भारत में बोन मैरो ट्रांसप्लांट की शुरुआत करने वाले हेमटोलॉजी के जनक पद्मश्री प्रो. मम्मन चांडी का कहना है कि इस तकनीक से इलाज कराने में एक बार में जितना खर्च आता है, उतना उस बच्चे के पूरे उम्र के इलाज पर आने वाले खर्च से कम है।

बस मैचिंग का बोन मैरो और बन गई बात

प्रो. मम्मन ने बताया कि मेजर थेलैसेमिक बच्चे में इसकी पहचान तीन माह के बाद हो जाती है। ऐसे में अगर उसमें बोन मैरो ट्रांसप्लांट 2 से 10 साल के बीच कर दिया जाए तो रिजल्ट बेहतर होते हैं। इसके लिए घर के किसी सदस्य या बाहर के डोनर जिसकी बोन मैरो उस बच्चे से मैच करती हो उससे ट्रांसप्लांट कर देते हैं। चंद दिनों में स्थिति बदलने लगती है। जिस बच्चे को जिंदा रहने के लिए हफ्ते में दो दिन ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती थी, वह सामान्य होने लगता है। वह बाकी बच्चों की तरह पढऩे, खेलने और अपने सारे काम करने लगता है। मौजूदा समय में देश में ऐसे लगभग 10 लाख बच्चे हैं। हर साल लगभग आठ से दस हजार मेजर थेलैसेमिक बच्चे जन्म ले रहे हैं।

मेजर थेलैसेमिक का कारण

थैलेसीमिया दो प्रकार का होता है। जब बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थेलैसीमिया होता है तब बच्चे में मेजर थेलैसीमिया हो सकता है। वहीं दूसरी स्थिति में मां-बाप में से एक के थेलैसेमिक होने पर बच्चे को खतरा नहीं हेता। प्रो. मम्मन ने बताया कि बोन मैरो के अलावा इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। इसमें शरीर में रेड ब्लड सेल का निर्माण नहीं होता। जिससे हीमोग्लोबिन नहीं बनता और मरीज को बार-बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन करना पड़ता है। ऐसे में अगर बच्चा लगातार बीमार रहता है या उसका चेहरा अचानक सूख जाए और वजन न बढ़े तो माता-पिता को सावधानी बरतते हुए डॉक्टरी परामर्श के साथ जांच जरूर करानी चाहिए।

जन्मकुंडली नहीं स्वास्थ्य कुंडली मिलवाएं

प्रो. मम्मन के अनुसार इस बीमारी से बचाव का सबसे महत्वपूर्ण और आसान तरीका है, शादी से पहले लड़का-लड़की के स्वास्थ्य कुंडली का मिलान कराना है। इसके माध्यम से शादी से पहले भावी पति-पत्नी यह जान सकेंगे कि उनका स्वास्थ्य एक-दूसरे के अनुकूल है या नहीं। स्वास्थ्य कुंडली में थेलैसीमिया के साथ ही एचआइवी और हेपेटाइटिस बी व सी, आरए फैक्टर की जांच होनी चाहिए। क्योंकि इन चंद जांचों की रिपोर्ट उनके बच्चे की जिंदगी बना या बिगाड़ सकती है।

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