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पंजाब में विधायकों को बोर्ड व निगम के चेयरमैन बनाने पर फिर फंसा पेंच

पंजाब में कांग्रेस के विधायकों को बोर्ड व निगमों के चेयरमैन बनाने के मामले में फिर पेंच फंस गया है। कैप्‍टन अमरिंदर के इस पद को लाभ के पद से बाहर करने का अध्‍यादेश फंस गया है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 23 Jul 2018 09:21 AM (IST)Updated: Mon, 23 Jul 2018 08:50 PM (IST)
पंजाब में विधायकों को बोर्ड व निगम के चेयरमैन बनाने पर फिर फंसा पेंच
पंजाब में विधायकों को बोर्ड व निगम के चेयरमैन बनाने पर फिर फंसा पेंच

चंडीगढ़, [कैलाश नाथ]। पंजाब में कांग्रेस के विधायकों को बोर्ड और निेगमों का चेयरमैन बनाने के मामले में फिर से पेंच फंस गया है। विधायकों की अपेक्षाओं को देखते हुए पंजाब सरकार ने उन्हें लाभ के पद से बाहर करने का फैसला तो ले लिया, लेकिन इसे लेकर दुविधा बनी हुई है। राज्यपाल वीपी सिंह बदनौर ने अभी तक सरकार के इस फैसले पर मुहर नहीं लगाई है। इसे लेकर सरकार की चिंता बढ़ गई है। विधानसभा में तीन तिहाई बहुमत पंजाब सरकार के लिए परेशानी भी खड़ा कर रहा है।

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सरकार की दुविधा यह है कि अगर आने वाले विधानसभा सत्र में वह पंजाब स्टेट लेजिस्लेचर एक्ट-1952 की धारा 2 में किए संशोधन का बिल पास भी करवा लेती है, तो भी कहीं यह मामला राष्ट्रपति के पास न फंस जाए। पंजाब सरकार विधायकों को लेकर जो फैसला ले रही है, वह पूरे देश के विधायकों पर लागू हो सकता है। क्योंकि सभी राज्य पंजाब सरकार का अनुसरण कर सकते हैं।

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ऐसे में सरकार की चिंता यह भी है कि कहीं राष्ट्रपति इस पर मुहर लगाने से इन्कार न कर दें। ऐसी स्थिति में सरकार की खासी किरकिरी हो सकती है। वहीं, सरकार दोनों ही पक्षों पर विचार कर रही है। एक मत यह है कि इस पचड़े में पड़ा ही नहीं जाए और इस मुद्दे को यहीं पर बंद कर दिया जाए। यानी सरकार विधायकों को बोर्ड और कारपोरेशन से दूर रखे। 

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दूसरी तरफ एक पक्ष इसका हल निकालने में जुटा हुआ है। क्योंकि करीब एक दर्जन से ज्यादा विधायक इसी बात का इंतजार कर रहे हैं कि सरकार कब उन्हें चेयरमैन बनाएगी। क्योंकि विधानसभा में 77 विधायक होने के कारण सरकार कई वरिष्ठ विधायकों को महत्वपूर्ण पदों पर एडजस्ट नहीं कर पाई है।

रोष पैदा होने का भय

सरकार इस बात को अच्छी तरह से समझ रही है कि पार्टी में इस मुद्दे पर रोष पैदा हो सकता है। हालांकि, इस भय को देखते हुए मंत्रिमंडल ने पंजाब स्टेट लेजिस्लेचर एक्ट-1952 की धारा 2 में संशोधन कर एक्ट में नई श्रेणियों को जोड़ा है। सरकार ने कानून में नया सेक्शन-1 ए शामिल किया है।

इसमें 'जरूरी भत्ते', 'संवैधानिक संस्था' और 'असंवैधानिक' को परिभाषित किया है। सरकार की मंशा स्पष्ट थी कि विधायकों को चेयरमैन बनाकर कर पैदा हो रहे रोष को कम किया जा सके। सूत्रों के मुताबिक सरकार अब भी इस इस प्रयास में है कि लाभ के पद को लेकर राज्यपाल कैबिनेट के फैसले पर मुहर लगा दें।

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