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कर्म से बनाओ पहचान, श्रंगार की न पड़े जरूरत

तुम्हें किसी प्रकार के श्रंगार की जरूरत न पड़े।

By JagranEdited By: Published: Sun, 29 Sep 2019 08:17 PM (IST)Updated: Sun, 29 Sep 2019 08:17 PM (IST)
कर्म से बनाओ पहचान, श्रंगार की न पड़े जरूरत
कर्म से बनाओ पहचान, श्रंगार की न पड़े जरूरत

सुमेश ठाकुर, चंडीगढ़ : मेरे पिता सरकारी नौकरी करते थे। वे हमेशा कहते थे कि खुद को ऐसे तैयार करो कि तुम्हें किसी प्रकार के श्रंगार की जरूरत न पड़े। तुम्हें लोगों को अपने बारे में बताना नहीं पड़े। तुम्हारे कर्मो से तुम्हारी पहचान हो। यह अनुभव पंजाब यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिएशन (पुटा) की प्रेसिडेंट प्रो. राजेश गिल ने दैनिक जागरण संवाददाता से साझे किए। प्रो. राजेश गिल बीते तीन साल से पुटा की प्रेसिडेंट हैं। उन्होंने बताया कि मैं बचपन से ही पापा के काफी नजदीक थी। पापा की बातों का असर भी मेरे ऊपर बहुत ज्यादा था। जिसके कारण मैंने पहले स्कूल और उसके बाद कॉलेज में होने वाली गतिविधियों में अपनी अलग पहचान बना रखी थी। मैं बहुत ज्यादा कार्यक्रमों में भाग लेती थी और स्कूल-कॉलेज को बेहतर पोजीशन पर रखती थी। यही कारण था कि मुझे हमेशा दूसरे स्टूडेंट्स से अलग ट्रीट मिलता था। मैंने पापा के कहने के अनुसार पहचान बनाई हुई थी। पढ़ाई ही नहीं, मातृत्व भी देता है अध्यापक

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प्रो. राजेश गिल ने बताया कि पापा की नसीहत के अलावा एक अन्य बात मुझे हमेशा याद आती है मेरे टीचर की। मेरी टीचर की बेटी भी मेरे साथ पढ़ती थी। कोई भी ईवेंट होता तो वह मुझे अपनी बेटी से पहले मुझे आगे करतीं। मैं स्पो‌र्ट्स एक्टिविटी के लिए जाती थी तो भी वह टीचर मेरे साथ जाती थी। उनसे मुझे शिक्षा मिली कि टीचर का काम सिर्फ पढ़ाई कराना नहीं होता बल्कि मां का प्यार और सुरक्षा भी होता है। पढ़ाई तो किताबों से भी हो जाती है लेकिन प्यार और सुरक्षा करने के लिए टीचर होते हैं।


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