जब विदेशी यंत्र से निकली भारतीय धुनें, दर्शकों ने किया तालियों से अभिनंदन
कलाकार नीर रंजन अपने हवाईन गिटार को जैसे ही लोगों के समझ लेकर पहुंचे तो दर्शकों ने उनके इस विलक्षण प्रतिभा का तालियों से स्वागत करके अभिनंदन किया।
By Edited By: Published: Wed, 15 May 2019 02:25 AM (IST)Updated: Wed, 15 May 2019 02:31 AM (IST)
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। विदेशी यंत्र, जिस पर देश के पुराने सुरों ने समा बांधा। कलाकार नीर रंजन, अपने हवाईन गिटार को जैसे ही लोगों के समझ लेकर पहुंचे, तो दर्शकों ने उनके इस विलक्षण प्रतिभा का तालियों से स्वागत करके अभिनंदन किया। प्राचीन कला केंद्र की 258 वीं मासिक बैठक में नीर रंजन प्रस्तुति देने पहुंचे, उनके साथ चंडीगढ़ के तबला वादक अविरभाव भी शामिल हुए।
नील ने कहा कि वाद्य यंत्र बेशक वेस्टर्न है, मगर इसमें धुनें भारतीय ही सुनाई जाएंगी। ये माहौल मुझे कोई और धुन पेश ही नहीं करने देगा। कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने राग मधुवंती में निबद्ध आलाप से की। इसके उपरांत उन्होंने तीन ताल में निबद्ध मसीतखानी और रजतखानी गत का सूंदर प्रदर्शन किया। नील ने हवाईन गिटार में ठुमरी भी सुनाई। चर्चित ठुमरी मोहे पनघट पे नन्द लाल छेड़ गयो रे को सुनाया, तो लोगों ने उन्हें इसे फिर सुनाने का आग्रह किया। क्लासिकल से ही मिला वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट नील ने कहा कि उन्होंने अपनी शिक्षा दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही की। इसमें संगीत शिरोमणि के दौरान भारतीय क्लासिकल म्यूजिक को सीखा। इसमें कई भारतीय वाद्य यंत्रों को सुना और उनकी खासियत को जाना। इसके बाद मैंने पहली बार हवाईन गिटार को सुना, तो मुझे लगा कि इसमें मैं अपनी एक अलग छाप छोड़ सकता हूं। मैंने भारतीय रागों को इसमें प्रस्तुत किया, तो एक अलग ही जादू मिला। ऐसे में मैं इस जादू को पिछले कई वर्षों से लोगों में बांट रहा हूं। मेरा उद्देश्य है कि अपनी भारतीय संस्कृति को ज्यादा से ज्यादा देशों तक लेकर जाऊं। ऐसे में इस इंस्ट्रूमेंट के साथ विदेशों में कई प्रस्तुति दी। जिससे की वहां के लोग भी हमारी संस्कृति से रूबरू हुए। मेरे कई शिष्य तो विदेशी भी बने, जो इसी इंस्ट्रूमेंट पर भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखना चाहते हैं। मुझे लगता है कि अगर हम अपनी संस्कृति की मार्के¨टग बेहतर रूप से करें, तो हम पूरे विश्व में अपने संगीत को सभी तक पहुंचा सकते हैं। ये संगीत है, तो इसको लोगों तक पहुंचाने का काम भी नई सोच के साथ हो सकता है। जिसमें युवा कलाकार बहुत कुछ कर सकते हैं।
नील ने कहा कि वाद्य यंत्र बेशक वेस्टर्न है, मगर इसमें धुनें भारतीय ही सुनाई जाएंगी। ये माहौल मुझे कोई और धुन पेश ही नहीं करने देगा। कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने राग मधुवंती में निबद्ध आलाप से की। इसके उपरांत उन्होंने तीन ताल में निबद्ध मसीतखानी और रजतखानी गत का सूंदर प्रदर्शन किया। नील ने हवाईन गिटार में ठुमरी भी सुनाई। चर्चित ठुमरी मोहे पनघट पे नन्द लाल छेड़ गयो रे को सुनाया, तो लोगों ने उन्हें इसे फिर सुनाने का आग्रह किया। क्लासिकल से ही मिला वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट नील ने कहा कि उन्होंने अपनी शिक्षा दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही की। इसमें संगीत शिरोमणि के दौरान भारतीय क्लासिकल म्यूजिक को सीखा। इसमें कई भारतीय वाद्य यंत्रों को सुना और उनकी खासियत को जाना। इसके बाद मैंने पहली बार हवाईन गिटार को सुना, तो मुझे लगा कि इसमें मैं अपनी एक अलग छाप छोड़ सकता हूं। मैंने भारतीय रागों को इसमें प्रस्तुत किया, तो एक अलग ही जादू मिला। ऐसे में मैं इस जादू को पिछले कई वर्षों से लोगों में बांट रहा हूं। मेरा उद्देश्य है कि अपनी भारतीय संस्कृति को ज्यादा से ज्यादा देशों तक लेकर जाऊं। ऐसे में इस इंस्ट्रूमेंट के साथ विदेशों में कई प्रस्तुति दी। जिससे की वहां के लोग भी हमारी संस्कृति से रूबरू हुए। मेरे कई शिष्य तो विदेशी भी बने, जो इसी इंस्ट्रूमेंट पर भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखना चाहते हैं। मुझे लगता है कि अगर हम अपनी संस्कृति की मार्के¨टग बेहतर रूप से करें, तो हम पूरे विश्व में अपने संगीत को सभी तक पहुंचा सकते हैं। ये संगीत है, तो इसको लोगों तक पहुंचाने का काम भी नई सोच के साथ हो सकता है। जिसमें युवा कलाकार बहुत कुछ कर सकते हैं।
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