लीज टू फ्री होल्ड प्रापर्टी कन्वर्जन की अड़चन हुई दूर, एमएचए के पास फाइल जमा
शहर की प्रापर्टी से जुड़े दो बड़े मुद्दों पर गृह मंत्रालय के अधिकारियों से विस्तृत चर्चा के बाद इनके हल होने का रास्ता साफ हो गया है।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : शहर की प्रापर्टी से जुड़े दो बड़े मुद्दों पर गृह मंत्रालय के अधिकारियों से विस्तृत चर्चा के बाद इनके हल होने का रास्ता साफ हो गया है। लीज टू फ्री होल्ड प्रापर्टी की कन्वर्जन अगले कुछ समय बाद शुरू भी हो जाएगी। दूसरा मामला बिल्डिग मिसयूज और वायलेशन की पैनल्टी तय करने का रहा। इन दोनों मामलों में अभी तक जो भी पेंच फंस रहे थे उन्हें मिनस्ट्रिी आफ होम अफेयर (एमएचए) से बार बार चर्चा के बाद दूर किया गया। अब कोई अड़चन मामले में नहीं बची है। प्रशासन के अधिकारियों ने दोनों मामलों पर एमएचए के अधिकारियों से चर्चा के बाद फाइल उन्हें सौंप दी है। अब प्रशासन ने दोनों मामलों पर प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। इन पर अंतिम निर्णय एमएचए लेगा। एमएचए इन मामलों पर दूसरे अर्बन प्लानिग डिपार्टमेंट और अन्य डिपार्टमेंट से भी चर्चा के बाद अंतिम फैसला लेगा। यूटी प्रशासन का काम पूरा
एमएचए के ज्वाइंट सेक्रेटरी के साथ चंडीगढ़ के इन मुद्दों पर चर्चा हुई। चंडीगढ़ से एडवाइजर धर्मपाल और ज्वाइंट सेक्रेटरी सौरभ अरोड़ा मीटिग में शामिल हुए। एडवाइजर धर्मपाल ने मामले पर पहले प्रेजेंटेशन दी। उन्होंने पुराने नियमों और प्रक्रिया की जानकारी दी और साथ ही मौजूदा स्थिति को भी बताया। अब लीज टू फ्री होल्ड प्रापर्टी का मामला इनलाइन हो गया है। इसमें अब कोई झंझट नहीं रहा। प्रशासन अपनी तरफ से काम पूरा कर एमएचए को सौंप चुका है। अब एमएचए को ही इस पर अंतिम मंजूरी देनी है। बिल्डिग मिसयूज वायलेशन की पैनल्टी आधी
बिल्डिग मिसयूज वायलेशन की पैनल्टी तय करने का फ्रैश प्रस्ताव भी प्रशासन ने एमएचए को सौंप दिया है। नए प्रस्ताव में पैनल्टी को अब चार हजार रुपये प्रतिदिन प्रति स्क्वेयर फीट किया गया है। वहीं, प्रति माह अधिकतम तक एक लाख रुपये रहेगी। अब एचएमए इस पर अंतिम निर्णय लेगा। हालांकि कानून में संशोधन के लिए इस पर कैबिनेट की मंजूरी भी जरूरी होगी। इसके बादकैनल्टी के रूल्स फ्रेम करने का काम प्रशासन अपने स्तर पर करेगा।
लीज होल्ड टू फ्री होल्ड कन्वर्जन का 40 वर्ष से इंतजार
कुछ प्लाट फ्री होल्ड पर अलाट करने के बाद 1972 प्लाट लीज होल्ड बेस पर अलाट किए गए। 15 वर्ष के लाकिग पीरियड के बाद यह प्लाट फ्री होल्ड कराए जाने की शर्त रखी गई थी, लेकिन 40 वर्ष के बाद भी प्रशासन कन्वर्जन रेट तय नहीं कर पाया। टाइटल क्लीयर नहीं होने से बैंक लोन तक नहीं देते। इंडस्ट्री का काम बढ़ाने के लिए फंड तक नहीं मिल पा रहा। इंडस्ट्रियलिस्ट अपने प्लाट तक सरेंडर कर चाबी सौंपने का एलान कर चुके।