गिल के नाम से खौफ खाते थे आतंकी, पंजाब को निकाला था काले दौर से
पंजाब को आतंकवाद के काले दौर से मुक्ति दिलाने वाले केपीएस गिल नहीं रहे। गिल के नाम से आतंकी खौफ खाते थे।
जेएनएन, चंडीगढ़। 'सुपरकॉप' के रूप में चर्चित पंजाब के पूर्व डीजीपी केपीएस गिल नहीं रहे। उनका शुक्रवार दोपहर दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। गिल ने यूं तो भारतीय पुलिस सेवा में अपने करियर की शुरुआत पूर्वोत्तर के राज्य असम से की, लेकिन पंजाब पुलिस के प्रमुख के रूप में 1990 के दशक में वह पूरे देशभर में प्रसिद्ध हुए।
सख्त मिजाज अफसर माने जाने वाले केपीएस गिल पंजाब के डीजीपी तब बने जब राज्य में आतंकवाद चरम पर था। गिल आतंकवाद के दौर में पंजाब में दो बार डीजीपी बने। पहली बार वह मई 1988 से दिसंबर 1990 तक व दूसरी बार नवंबर 1991 से दिसंबर 1995 तक पंजाब के डीजीपी रहे। उस समय पंजाब में आतंकवाद चरम पर था।
1988 में श्री स्वर्ण मंदिर साहिब में चरमपंथी फिर से एकत्र होने शुरू हो गए थे, लेकिन केपीएस गिल ने ऑपरेशन ब्लैकथंडर के तहत बिना खास गोलीबारी के चरमपंथियों को बाहर निकाला। गिल के नेतृत्व में बिजली, पानी की सप्लाई रोकर परिसर से चरमपंथियों को बाहर निकाला गया। आतंकवाद के खिलाफ इस बड़ी सफलता के बाद गिल ने और भी कई सख्त कदम उठाए।
इसके बाद आतंकी व अपराधी उनके नाम से खौफ खाने लगे और मीडिया में वह सुपरकॉप के नाम से प्रसिद्ध हो गए। अपनी सख्त नीतियों के कारण वह राज्य में आतंकवाद को खत्म करने में सफल रहे। पुलिस से सेवानिवृत होने के बाद भी वह विभिन्न सरकारों को आतंकवाद विरोधी नीति निर्माण के लिए सलाह देने में हमेशा व्यस्त रहे।
गुजरात 2002 में जब सांप्रदायिक हिंसा से जूझ रहा था, तब भी गिल ने वहां शांति बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई। गिल उस समय गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सुरक्षा सलाहकार थे। गिल ने अपने दीर्घ अनुभवों व सख्त फैसलों से गुजरात की सांप्रदायिक हिंसा पर काबू पाया।
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