पंजाब में जेलों की सुरक्षा में सेंध, सिस्टम हुआ तार-तार
पंजाब की जेलों में सुरक्षा में सेंध लग रही है। पिछले छह महीने में जेलों से 200 मोबाइल मिल चुके हैं। अपराधी जेल से ही सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं।
जेएनएन, जालंधर। जेल... वो चारदीवारी वो नाम जहां अपराधियों को इसलिए भेजा जाता है कि वे सुधर जाएं। जेल से छूटें तो अच्छे नागरिक बनें। दोबारा अपराध की दुनिया में कदम न रखें, लेकिन आजकल जो हालात दिखाई दे रहे हैं उन्होंने जेल नाम की परिभाषा बदल दी है। जेल में नशा, जेल में ही जेल ब्रेक की साजिशें, जेल में ही अगले अपराध की रूपरेखा और जेल से गैंगस्टर नेटवर्क आपरेट किए जाने लगे हैं।
इंटरनेट व मोबाइल इसका जरिया बनते हैं और पंजाब की जेलों में ये सब आसानी से उपलब्ध है। अपराध की नींव ही अब जेलों से रखी जाने लगी है। कुख्यात अपराधियों के हाथ में जेलों में मोबाइल धड़ल्ले से चलाए जा रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि ये लोग पकड़े नहीं जाते और कानून के रक्षक कार्रवाई नहीं कर रहे। सब कुछ हो रहा है। मोबाइल भी पकड़े जा रहे हैं और मोबाइल चलाने वाले भी पकड़े जा रहे हैं। बस, अगर कुछ हाथ नहीं लग रहा तो वो है इन अपराधियों तक मोबाइल पहुंचाने वाला नेटवर्क।
राज्य की इंटेलीजेंस भी इस नेटवर्क के आगे असहज नजर आ रही है, जेल प्रशासन मामले दर्ज करवाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है और सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। पंजाब में कई ऐसी सनसनीखेज वारदातें हो चुकी हैं जिन्हें आतंकियों, गैंगस्टर्ज और आइएसआइ नेटवर्क ने उन लोगों के जरिए अंजाम दिलवा दिया जो लोग जेलों में बंद हैं। कहीं न कहीं जेलों से रची जाने वाली इन साजिशों के लिए मोबाइल फोन और इंटरनेट का जेलों से इस्तेमाल बड़ी भूमिका निभाता रहा है।
जेलों में मोबाइल का प्रयोग क्यों नहीं रुक रहा और जेलों में मोबाइल पहुंच कैसे रहे हैं, ये सवाल सिर उठाए खड़ा है। जिसका जवाब सरकार और जेल प्रशासन भी नहीं दे पा रहा है। कैदी जेलों से ही वाट्सएप और फेसबुक चला रहे हैं। मोबाइल के जरिए अपने गुर्गों को बाहर कहां, कौन सी वारदात करनी है फोन पर ही बताते है। जिसका नमूना पंजाब में हुई सात बड़ी हत्याओं का मामला है, जिसमें जेल में बैठा गैंगस्टर गुगनी ग्रेवाल हथियार सप्लाई कर रहा था, इसके अलावा रवि ख्वाजके और नाभा जेल ब्रेक जैसे कांड भी जेल के अंदर चल रहे मोबाइल की मदद से अंजाम दिए गए।
ऐसे पहुंचते हैं जेलों में मोबाइल और सुरक्षा पर खड़े होते हैं सवाल
सूत्रों की मानें तो जेल में बंद अपने परिजनों को मिलने आने वाले परिवारों से पहली मुलाकात में कैदी अगली बार मोबाइल लाने के लिए कहते हैं तो परिवार के लोग मोबाइल लाने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपनाते हैं। कभी सब्जी के अंदर छिपाकर, तो कभी जूते के अंदर मोबाइल को फिक्स कर जेल के अंदर तक पहुंच जाते हैं। अगर ये सब न हो सके तो मुलाकात के वक्त कैदी परिजन को बैरक से बाहर आने का समय बता देते है। जिसके उन्हें अगले दिन जेल की दीवार के बाहर से मोबाइल अंदर फेंकने का समय और जगह बता देते हैं। इसके बाद उक्त शख्स मोबाइल बताए समय व स्थान पर अंदर फेंक देता है।
यह भी पढ़ेंः ये है संबंधों की बदनाम कहानी, पराई के चक्कर में सलाखों के पीछे करोड़पति
कई बार तो ज्यादातर कैदी पेशी के दौरान अपने साथ कुछ इस तरह से मोबाइल छिपाकर ले आते ही कि चैकिंग के बाद भी मोबाइल पकड़ा नहीं जाता। इन सबके बीच सवाल ये खड़े होते हैं कि क्या जेलों में चैकिंग की व्यवस्था दुरुस्त नहीं है या चैकिंग के दौरान ही कुछ चीजों को अनदेखा कर दिया जाता है। जेल में क्या कोई भी, कुछ भी, कभी भी और कहीं से भी फेंक सकता है। यहीं नहीं सूत्रों की मानें तो जेल में मोबाइल कुछ मुलाजिमों की मिलीभगत से भी पहुंच रहे हैं। अगर वाकई ऐसा है तो जब मोबाइल पकड़े जाते हैं तो इसकी जांच क्यों नहीं की जा रही कि जिससे मोबाइल मिला उसे वह मोबाइल किसने दिया।
आंकड़े बयां करते हैं अलग कहानी
दैनिक जागरण ने पंजाब की विभिन्न जेलों में पिछले छह महीनों के दौरान पकड़े गए मोबाइल फोन के आंकड़े और दर्ज हुए मामलों की जानकारी हासिल की तो हैरानीजनक जानकारी सामने आई। इस अविधि के दौरान करीब 200 मोबाइल पकड़े गए और कैदियों 180 कैदियों पर मामले दर्ज हुए, जबकि जेल स्टाफ की मिलीभगत के कारण केवल आठ कर्मचारियों पर मामले दर्ज हुए।
यह भी पढ़ेंः चंडीगढ़ में सौतेली मां ने बच्ची से की बर्बरता, चाइल्ड राइट कमीशन ने लिया संज्ञान
इससे एक सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या शेष मामलों में किसी कर्मचारी की कोई भूमिका नहीं रही या जेलों की सुरक्षा ही तार-तार है। क्यों इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा और कैदियों को मोबाइल व इंटरनेट देने वाले हाथ किसके हैं? ताजा मामलों में 23 नवंबर को लुधियाना की महिला जेल से चार मोबाइल मिले। इससे पहले 21 नंवबर को चैकिंग के दौरान 11 मोबाइल, 28 अक्तूबर को छह मोबाइल और 22 अक्तूबर को दो मोबाइल मिले थे।
हाल ही में जेल से मोबाइल पर ये हुआ
-- बठिंडा की सेंट्रल जेल जेल में बंद डबल मर्डर केस के आरोपी ललित कुमार उर्फ लाली ने फिरोजपुर निवासी गवाह को फोन पर धमकी देकर पुलिस व जेल प्रबंधन में खलबली मचा दी। आनन-फानन में पुलिस ने देर रात सर्च करके उसके कब्जे से सैमसंग कंपनी का मोबाइल फोन बरामद कर उसके खिलाफ मामला दर्ज किया।
यह भी पढ़ेंः साले के प्यार में जीजा बना बाधा, फिर हुआ उसका खौफनाक अंजाम
-- फरीदकोट जेल में गैंगस्टर से राजनीतिज्ञ बने लक्खा सिधाना ने फेसबुक पर लाइव होकर किसानों और सरकार को ही नसीहत दे डाली। पराली के मुद्दे पर सिधाना ने कहा था कि किसानों को ऐसा नहीं करना चाहिए और सरकार को भी इसका हल ढूंढना चाहिए। बाद में उस पर मामला दर्ज हुआ और साथ में उसे मोबाइल उपलब्ध करवाने वाले जेल स्टाफ सदस्य पर भी केस दर्ज किया गया।
-- इससे पहले भी कई बार गैंगस्टर जेलों में जन्मदिन मनाने औदि के वीडियो फेसबुक पर डालते रहे हैं।
ऐसे हैं सुरक्षा में छेद
मैक्सिमम सिक्योरिटी जेल नाभा में लगे जैमर 4जी नेटवर्क जाम करने में नाकाम हैं। फास्ट इंटरनेट के लिए मोबाइल कंपनियों ने 4जी लांच किया। इसके बाद ही 27 नवंबर 2016 को नाभा जेल ब्रेक हुई थी। जेल ब्रेक होने के पीछे एक बड़ी वजह जेल के अंदर मोबाइल फोन इस्तेमाल होना बताया गया था।
यह भी पढ़ेंः रेलवे में खानपान हुआ सस्ता, जीएसटी 18 से घटकर हुआ 5 फीसद
जेल के जैमर सिर्फ 3जी और 2जी नेटवर्क जाम करते हैं, मगर जेल में बैठे गैंगस्टर 4जी नेटवर्क वाले फोन व सिम कार्ड इस्तेमाल करते थे। एक साल पहले जेल ब्रेक के बाद लगातार हो रही गिरफ्तारियों के दौरान गैंगस्टर्स द्वारा 4जी नटवर्क के इस्तेमाल का खुलासा हुआ था। जेल में जैमर को 4जी नेटवर्क को जाम करने योग्य बनाने के लिए नया सॉफ्टवेयर इंस्टाल करने का काम अभी भी अधर में है।
एडीजीपी जेल इकबाल प्रीत सहोता से सीधी बात
-- क्या जेल की सुरक्षा इतनी कमजोर है कि कोई भी अंदर आकर कैदी को मोबाइल दे जाता है या पेशी पर गया कैदी आसानी से मोबाइल अंदर ले आता है?
जवाबः नहीं एेसा एकदम नहीं हैं। जेल के अंदर जाने वाले हर शख्स की तलाशी ली जाती है। जेल स्टाफ पर भी नजर रखी जा रही है। पेशी पर कई बार कैदी से मिलने वाले लोग जरूर मोबाइल देने की कोशिश करते हैं, जानकारी में आते ही मोबाइल जब्त कर लिए जाते हैं।
-- मोबाइल मिलने पर कैदी पर मामला दर्ज कर लिया जाता है? क्या जेल स्टाफ सदस्यों की भूमिका की कभी जांच नहीं करवाई जाती?
जवाबः एकदम सही बात है, जेल स्टाफ सदस्यों पर कड़ी निगरानी शुरू कर दी गई है। उनके खिलाफ भी कारवाई करने के आदेश दिए गए हैं।
-- पिछले छह महीने में 200 मोबाइल पकड़े जा चुके हैं, कैसे जेल में पहुंचे इसकी जांच की गई? जांच में क्या निकला?
जवाबः हां हर मामले की जांच की जा रही है। अभी तक रिपोर्ट मेरे पास नहीं आई है। कुछ मामलों में कैदियों के परिजनों ने मोबाइल दिए थे। जांच रिपोर्ट आने के बाद ही स्पष्ट तौर पर कुछ कहा जा सकता है। चूंकि एेसे तमाम मामले हैं इसलिए जेल प्रशासन नए सिरे से जांच करवा रहा है।
-- नाभा मैक्सिमम जेल में एक साल बाद भी 4जी सिग्नल को जाम करने में असमर्थ है, ऐसा क्यों?
जवाबः जैमर जब लगे थे तो मोबाइल नेटवर्क की पुरानी तकनीकी थी। उसके हिसाब से लगाए गए थे। उस समय के हिसाब से जैमर एकदम फिट थे और काम कर रहे थे, लेकिन अब इस बारे में जेल प्रशासन ने पूरा प्लान तैयार कर लिया है। सरकार को मंजूरी के लिए भेजा गया है।
यह भी पढ़ेंः शातिर निकली ये दो युवतियां- कई को कर चुकी ब्लैकमेल, एेसे फंसाती थी जाल में....