सिंचाई घोटाले में शामिल ठेकेदार का सरेंडर, विजिलेंस ने किया गिरफ्तार
-हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी खारिज कर दी थी अग्रिम जमानत की याचिका -1000 करोड़
-हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी खारिज कर दी थी अग्रिम जमानत की याचिका
-1000 करोड़ के काम अलॉट करने में ताक पर रखे नियम
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राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़: सिंचाई विभाग में एक हजार करोड़ से ज्यादा के घोटाले में शामिल मुख्य आरोपी ठेकेदार गुरिंदर सिंह को आखिर चार महीने बाद गिरफ्तार कर लिया गया। गुरिंदर सिंह ने बुधवार को मोहाली की अदालत में सरेंडर किया था। दो दिन पहले ही इसी घोटाले में नामजद पूर्व चीफ इंजीनियर हरविंदर सिंह ने भी सरेंडर कर दिया था। दोनों को विजिलेंस ने गिरफ्तार कर लिया है।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी ने आरोपी गुरिंदर सिंह की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। उन्हें एक हफ्ते के अंदर अदालत में सरेंडर करने को कहा था। बुधवार को गुरिंदर सिंह ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया और अदालत ने उन्हें 16 दिसंबर तक विजिलेंस की हिरासत में भेज दिया।
करोड़ों रुपए के इस घोटाले में 18 अगस्त को विजिलेंस ने गुरिंदर ठेकेदार समेत सिंचाई विभाग के दो सीनियर अधिकारियों समेत चार रिटायर्ड अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज कर छापेमारी की थी।
विजिलेंस सूत्रों के अनुसार पिछले सात-आठ वर्षों में सिंचाई विभाग के सीनियर अधिकारियों ने नियमों को खूंटी से टांगकर छोटे टेंडरों को मिलाकर बड़ा बनाया और लगभग एक हजार करोड़ रुपए के काम गुरिंदर सिंह को दिए गए। ये सभी काम विभागीय रेट से 10 से 50 फीसदी ज्यादा रेट पर दिए गए। विजिलेंस ने अभी तक जो जांच की है, उससे पता चला है कि इसी समय के दौरान दो करोड़ रुपये की लागत के ठेके अन्य ठेकेदारों को देने के मामले में विभाग ने निश्चित रेट से कम पर अलॉट किए। टेंडर प्रकाशित करने काम का स्थान, काम को पूरा करने का समय और डीएनआइटी की आवश्यक तकनीकी सिफारिशों को लिखा ही नहीं जाता था, जबकि गुरिंदर सिंह को पहले ही यह पता होने के कारण काम उसे अलॉट हो जाता।
4.75 करोड़ से 300 करोड़ का सफर
साल 2006-07 में गुरिंदर सिंह की कंपनी मात्र 4.74 करोड़ रुपये की थी, जो 2016-17 में 300 करोड़ रुपये हो गया। विजिलेंस ने उनके किए कामों की जांच में पता लगाया कि बेहद घटिया निर्माण सामग्री का प्रयोग किया गया है। विजिलेंस ने उनसे पिछले सात-आठ वर्षो में ड्रेनेज और कंडी प्रोजेक्ट्स का जो काम उन्होंने किया था, उसका रिकॉर्ड भी मांगा था, लेकिन गुरिंदर सिंह ने यह नहीं दिया।
इन कामों को लेकर विजिलेंस को शक
गुरिंदर सिंह ने साल 2012 से 2015 के लिए 13वें वित्त कमीश्न की ओर से मिली 180 करोड़ रुपये की ग्रांट और सेम की रोकथाम के लिए मिले 440 करोड़ रुपये के फंड के कामों को लेने के लिए अधिकारियों से मिलीभगत करके ये टेंडर अलॉट करवाए। 2011-12 में अबुल खुराना ड्रेन का काम भी उसे शर्तो में ढील देकर दिया गया। छोटे कामों को इकट्ठा करके 39.86 करोड़ रुपये का टेंडर बनाकर उसे समूचा काम अलॉट कर दिया।
हालांकि, तब के सीएम प्रकाश सिंह बादल ने बड़ों कामों की टेक्निकल जांच के लिए तकनीकी सलाहकार भी रखा था। सभी काम उनकी वेटिंग के बिना अलॉट न किए जाने की ताकीद भी की थी, लेकिन गुरिंदर सिंह को काम देने में तकनीकी सलाहकार से भी मंजूरी नहीं ली गई। 2017 में चुनाव आचार संहिता लागू होने से दो दिन पहले भी उन्हें दो बड़े काम अलॉट किए गए।
सुखबीर बादल के करीबी
विजिलेंस सूत्रों का कहना है कि सिंचाई विभाग के अफसरों को लगाने या हटवाने में गुरिंदर सिंह की तूती बोलती रही है। दरअसल उनके तब के डिप्टी सीएम सुखबीर बादल के साथ करीबी संबंध रहे हैं, जिस कारण कामों को अलॉट करने में नियमों की अनदेखी की जाती रही है। सूत्रों का कहना है कि दो सीनियर आइएएस अफसरों पर भी इस घोटाले की गाज गिर सकती है। विजिलेंस ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार रोकथाम कानून की धारा 13 (1) डी और 13(2) सहित आइपीसी की धारा 406, 420, 467, 468, 471, 477 -ए और 120-बी के अधीन मोहाली के विजिलेंस थाने में केस दर्ज किया हुआ है।