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गलत इंजेक्शन लगने से बच्चे की मौत मामले में कमेटी ने नहीं जमा करवाई रिपोर्ट Chandigarh News

बच्चे के परिजनों का कहना है कि पीजीआइ प्रशासन अपली गलती छिपाने का प्रयास कर रहा है। अगर गलत इंजेक्शन लगाने से मौत नहीं हुई होती तो जांच रिपोर्ट एक दिन में आ जाती।

By Sat PaulEdited By: Published: Fri, 29 Nov 2019 08:25 AM (IST)Updated: Fri, 29 Nov 2019 08:25 AM (IST)
गलत इंजेक्शन लगने से बच्चे की मौत मामले में कमेटी ने नहीं जमा करवाई रिपोर्ट Chandigarh News
गलत इंजेक्शन लगने से बच्चे की मौत मामले में कमेटी ने नहीं जमा करवाई रिपोर्ट Chandigarh News

चंडीगढ़, जेएनएन। पीजीआइ में 11 दिन पहले गलत इंजेक्शन देने से हुई बच्चे की मौत प्रकरण में अब भी कारणों का पता नहीं चल पाया है। कारण, पीजीआइ प्रशासन की ओर से मामले की जांच के लिए बनाई गई कमेटी का 11 दिन बाद भी जांच रिपोर्ट न सौंपा जाना है। जबकि इसके लिए कमेटी को सिर्फ पांच दिन की मोहलत दी गई थी, लेकिन 11 दिन बाद भी स्थिति जस की तस है।

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मामले में देरी को लेकर बच्चे के परिजनों का कहना है कि पीजीआइ प्रशासन अपली गलती छिपाने का प्रयास कर रहा है। अगर गलत इंजेक्शन लगाने से मौत नहीं हुई होती तो जांच रिपोर्ट एक दिन में आ जाती, लेकिन ऐसा नहीं है। इस संबंध में पीजीआइ प्रशासन कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। जीरकपुर निवासी बाबूराम के 12 वर्षीय बेटे सोनू की 18 नवंबर को पीजीआइ में इलाज के दौरान मौत हुई थी। बाबूराम का आरोप है कि नर्स ने डॉक्टर के लिखे इंजेक्शन की बजाय बच्चे को गलत इंजेक्शन लगा दिया, जिससे उसकी मौत हो गई। जिसपर पीजीआइ डायरेक्टर ने उसी दिन तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित कर मामले में जांच का आदेश दिया था।

रिपोर्ट के लिए पिता बाबूराम हर रोज काट रहा पीजीआइ के चक्कर

जांच कमेटी में पीजीआइ एडवांस पीडियाट्रिक सेंटर के प्रो. सुरजीत सिंह, डॉ. संजय जैन और डॉ. राती शामिल हैं। जांच रिपोर्ट पांच दिन के अंदर देनी थी। उस दिन से बाबूराम हर दिन पीजीआइ के चक्कर काट रहा है। लेकिन न तो उसे किसी अधिकारी से मिलने दिया जा रहा है न ही कोई जांच रिपोर्ट के बारे में बता रहा है। बाबूराम का कहना है कि गरीब होने के नाते उसके बेटे की जान की कोई कीमत नहीं है। अगर किसी अमीर के बेटे की मौत हुई होती तो चंद घंटों में दोषियों को सजा मिल गई होती। एक इंजेक्शन के कारण उसकी दुनिया उजड़ गई लेकिन पीजीआइ प्रशासन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मामले को शांत करने के लिए बड़े-बड़े आश्वासन दिए गये थे, लेकिन अब मुझ गरीब को कौन पहचानेगा।

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