गंभीर बीमारियों का इलाज और सस्ती दवाएं देश में ही मिलें, इस पर यहां चल रहा शोध
देश के प्रतिष्ठित मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट इमटेक डायरेक्टर और जाने माने साइंटिस्ट डॉ. अनिल कौल से शोध और भावी योजनाओं पर विशेष बातचीत।
चंडीगढ़ [डॉ. सुमित सिंह श्योराण]। बेहतर चिकित्सा और महंगी दवाओं के अभाव में हर साल देश में लाखों लोग दम तोड़ देते हैं। कैंसर, डेंगू और टीबी जैसी बीमारियों का सस्ता इलाज अभी आम आदमी के लिए आसान नहीं है। बीते सालों में देश के हेल्थकेयर सेक्टर में काफी तेजी से सुधार हुआ है। उसका श्रेय देश में नई दवाओं की खोज में लगे रिसर्च सेंटर को जाता है।
चंडीगढ़ के सेक्टर-39 स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबॉयल टेक्नोलॉजी (इमटेक) भी देश के टॉप मेडिकल रिसर्च सेंटर में शामिल है। यहां पर हो रही रिसर्च को विदेशी कंपनियों ने हाथों हाथ लिया है। नई और उपयोगी दवाओं की खोज में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्टियल रिसर्च सेंटर(सीएसआईओ) के अधीन इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबॉयल टेक्नोलॉजी (इमटेक) को स्थापित किया गया था।
टीबी, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों पर यहां सालों से शोध जारी है। दैनिक जागरण के सीनियर चीफ रिपोर्टर ने देश के प्रतिष्ठित मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट इमटेक डायरेक्टर और जाने माने साइंटिस्ट डॉ. अनिल कौल से इमटेक रिसर्च सेंटर में चल रहे शोध और भावी योजनाओं को लेकर विस्तार से विशेष बातचीत की। पेश हैं कुछ खास अंश ..
चंडीगढ़ में इमटेक को किस उद्देश्य से स्थापित किया गया?
मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के अधीन इमटेक चंडीगढ़ कैंपस की स्थापना 1984 में हुई। इसका मुख्य उद्देश्य नई दवाओं की खोज और बायोलॉजिकल रिसर्च में क्वालिटी को बेहतर करना है। यहां पर टीबी, कैंसर, हार्ट अटैक, डेंगू जैसी बीमारियों पर युवा और अनुभवी शोधकर्ता दिनरात काम करते हैं। दुनियाभर में इमटेक को 34वां और देश में पहले स्थान पर गिना जाता है। इमटेक इंस्टीट्यूट काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्टियल रिसर्च सेंटर(सीएसआईओ) के अधीन आता है।
कौन से रोगों से बचने के लिए दवाओं पर इमटेक में शोध जारी है?
यहां टीबी, कैंसर,मलेरिया जैसी बीमारियों पर सालों से काम जारी है, लेकिन अब देश में डेंगू, स्किन और निपॉह वायरस पर काबू पाना बड़ा चैलेंज है। इमटेक में साइंटिस्ट ऐसी बीमारियों के सस्ते इलाज पर फोकस कर रहे हैं। पेट से जुड़ी बीमारी पर भी यहां काफी बड़े स्तर पर शोध जारी है।
किन संस्थानों के साथ मिलकर शोधकार्य जारी हैं?
इमटेक सिर्फ देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर की शोध संस्थानों के साथ मिलकर काम कर रहा है। हेल्थकेयर की नामी कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन, मर्क के अलावा पीजीआइ, आइसर, नाइपर जैसी संस्थानों के साथ मिलकर विभिन्न प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है। पीजीआई के साथ एक एमओयू साइन किया गया है। उसके तहत कई ड्रग्स का क्लीनिकल ट्रायल होगा।
देश में स्वास्थ्य सेवाओं के स्तर पर आपका क्या कहना है?
किसी भी क्षेत्र में रिसर्च का फायदा तभी है, जब उसका फायदा हर आम आदमी तक पहुंचे। कैंसर की महंगी दवाओं के कारण भारत में हर साल हजारों लोग जिंदगी खो रहे हैं। इमटेक का फोकस गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए सस्ती और कारगर दवाओं की खोज करना है। इस मामले में हम काफी सफल भी हो रहे हैं। आने वाले सालों में सभी गंभीर बीमारियों का इलाज और सस्ती दवाएं देश में ही उपलब्ध होने लगेंगी।
रिसर्च के लिए इमेटक में किस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध है?
देशभर के रिसर्च इंस्टीट्यूट्स में इमटेक की रैंकिंग काफी उच्च स्तर की है। यहां रिसर्च के लिए वल्र्ड क्लास स्ट्रर तैयार हो रहा है। कुछ लैब बनकर तैयार हैं, जबकि कुछ पर काम जारी है। इंस्टीट्यूट में 50 से 60 साइंटिस्ट और 300 के करीब रिसर्च स्कॉलर (पीएचडी) लगातार दवाओं को लेकर रिसर्च कर रहे हैं। केंद्र सरकार भी इमटेक को रिसर्च के लिए हर संभव ग्रांट उपलब्ध करवा रही है।
इमटेक में चल रहे शोध का मेडिकल इंडस्ट्री को किस तरह फायदा मिल रहा है?
विभिन्न दवाओं के लिए होने वाले रिसर्च का क्लीनिकल ट्रायल कई प्राइवेट हेल्थ कंपनी इमटेक के साथ मिलकर करती हैं। इमटेक के पास लैब में रिसर्च के लिए जरूरी 30 हजार से अधिक स्ट्रेन कलेक्शन है, जोकि एक तरह से बैंक लॉकर के तौर पर काम करता है। इन्हें देशभर की प्राइवेट और सरकारी दोनों शोध संस्थाओं को उपलब्ध करवाया जाता है। इससे इमटेक को साल में 2 से 3 करोड़ की आय होती है।
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देश के इतने बड़े मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के बारे में लोगों को जानकारी ही नहीं है?
यह काफी हद तक सही है। मैंने भी इसे महसूस किया है। इमटेक की कार्यप्रणाली को अधिक सार्वजनिक नहीं किया जा सकता, लेकिन अब इमटेक ने स्कूल और कॉलेज स्तर पर साइंस और रिसर्च में रुचि रखने वाले स्टूडेंट्स के लिए कई तरह के अवेयरनेस प्रोग्राम शुरू किए हैं। हर साल इमटेक में स्टूडेंट्स के लिए खास जिज्ञासा ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किया जाता है। यहां स्टूडेंट्स को अच्छे साइंटिस्ट से मिलने का मौका मिलता है। यहां होने वाले सेमिनार व कान्फ्रेंस में युवाओं को बुलाया जाता है। कई तरह के कंपीटीशन भी अब शुरू किए गए हैं।
अगले पांच साल में इमटेक का क्या विजन होगा?
केंद्र सरकार ने देश में टीबी को 2025 तक पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन अभी देश में टीबी से हर मिनट में तीन लोगों की मौत हो रही है। इमटेक में टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए बेहतर दवाओं को तैयार करने पर गंभीरता से काम चल रहा है। इसमें इमटेक की भूमिका काफी अहम रहेगी।
उपलब्धि
डॉ.अनिल कौल ने 15 साल के लंबे शोध से टीबी के लिए सरट्रो नामक दवा को तैयार किया है। पिछले 45 सालों में टीबी की दवा पर अमेरिका और यूरोप में सिर्फ डॉ.अनिल कौल की रिसर्च को पेटेंट मिला है।
जीवन परिचय
डॉ. अनिल कौल के नाम टीबी रोधक दवा का पेटेंट है। 15 साल के लंबे शोध से इन्होंने टीबी के लिए सरट्रो नामक दवा को तैयार किया। अमेरिका और यूरोप में पिछले 45 सालों में डॉ.कौल की टीबी के लिए तैयार दवा को पेटेंट मिला है। जनवरी 2017 में इमटेक डायरेक्टर नियुक्त हुए डॉ.अनिल का जन्म श्रीनगर (जेएंडके) में हुआ। 10वीं की पढ़ाई हिंदू हाई स्कूल और 12वीं क्लास गांधी मेमोरियल कॉलेज से पास की है। साइंस में बैचलर और मास्टर डिग्री दिल्ली यूनिवर्सिटी से की। इन्हें 16 साल से अधिक हेल्थकेयर में रिसर्च का लंबा अनुभव है।
दुनिया की नामी हेल्थकेयर कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन में सीनियर डायरेक्टर एंड हेड (रेसपीरेटरी इनफैक्शन डिसक्वरी) के पद पर भी रहे हैं। डॉ.कौल ने जर्मनी स्थित मैक्स-पलैंक इंस्टीट्यूट फॉर बायोकेमिस्ट्री से पीएचडी की डिग्री हासिल की है। दुनिया की प्रतिष्ठित हार्वड बिजनेस स्कूल से भी इन्होंने इनोवेशन,स्ट्रेटेजी एंड लीडरशिप पर भी कोर्स किया है।
दवा क्षेत्र में बेहतरीन काम के लिए इन्हें जर्मन एकेडमिक्स एक्सचेंज सर्विस के तहत डीएएडी रिसर्च फैलोशिप, 2005 में स्विस सोसाइटी ऑफ पिनोमोलॉजी ने स्विस टीबी अवार्ड, 2013 में जॉनसन एंड जॉनसन की ओर से प्रतिष्ठित जॉनसन मेडल और 2017 में सन फार्मा फार्मास्यूटिकल रिसर्च अवॉर्ड से नवाजा गया है। परिवार में पत्नी डॉ.अंजना चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत्त हैं। बेटी आदया और बेटा आयुष कौल स्कूल में पढ़ते हैं। किताबें पढ़ना और फिटनेस के लिए बैडमिंटन खेलना इनकी हॉबी है।
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