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शहर में महिला किन्नरों संग मनाया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर शहर में पहली बार महिला किन्नरों को सम्मानित किया गया। यह पहला मौका था जब महिला किन्नरों के साथ इस दिन का जश्न मनाया गया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Feb 2021 10:57 PM (IST)Updated: Mon, 22 Feb 2021 10:57 PM (IST)
शहर में महिला किन्नरों संग मनाया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
शहर में महिला किन्नरों संग मनाया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

जासं, चंडीगढ़ : अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर शहर में पहली बार महिला किन्नरों को सम्मानित किया गया। यह पहला मौका था जब महिला किन्नरों के साथ इस दिन का जश्न मनाया गया। पहली बार इस तरह के समारोह में शामिल होकर किन्नरों के चेहरों पर भी खुशी देखी गई। किन्नर समाज की महंत कामिनी मां इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुई। उनके साथ महंत रीटा, महंत अनिशा, महंत शालिनी, महंत रिकी, महंत प्रिया, महंत मलाइका और समाजसेविका अंजू शर्मा सहित कोरोना काल में अपनी पॉकेट मनी से हजारों मास्क बनाकर बांटने वाली लड़कियां भी शामिल हुई। द लास्ट बेंचर और भारत विकास परिषद के सहयोग से कार्यक्रम को आयोजित किया गया।

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लड़कियां अभिशाप नहीं वरदान है

महंत कामिनी मां ने कहा कि आज भी लड़कियों को कई जगहों पर अभिशाप माना जाता है, जो गलत धारणा है। लोगों को अपनी सोच बदलने की जरूरत है। हम नौ देवियों के रूप में कन्याओं का पूजन करते हैं, लेकिन जब स्वयं के घर वहीं देवी कन्या के रूप में जन्म लेती हैं, तो उसे तिरस्कार की नजरों से देखा जाता है। लड़कियों का पैदा होना वरदान है यहीं हमारे देश की संस्कृति है। देश में शांति के लिए मांगी दुआ

कहते हैं किन्नर दिल से अगर किसी को दुआ दे तो वह जरूर फलती है। इसी वजह से कार्यक्रम में किन्नरों से देश-प्रदेश में हो रहे बच्चियों और महिलाओं पर अत्याचार और दुष्कर्म को रोकने के लिए दुआ मांगने का निवेदन किया गया। किन्नर महंतों ने लोगों से भी अपील की कि वह जागरूक होकर दूसरों को भी प्रेरित करें।

लॉकडाउन में जेब खर्च से दो बहनों ने बनाए 10 दस हजार मास्क

द लास्ट बेंचर की प्रेसिडेंट सुमिता कोहली ने जहां एक ओर महिला किन्नरों को सम्मानित किया, वहीं दूसरी ओर लॉकडाउन के समय में अपनी जेब खर्च से लोगों के मास्क बनाने वाली दो बहनों को भी सम्मानित किया गया। मानसी और दीपा इन दोनों बहनों ने माता-पिता की मदद से लॉकडाउन में 10 हजार मास्क बना कर लोगों और एनजीओ को दिए थे। इस कार्य के लिए उन्होंने किसी से भी मदद नहीं ली।


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