पीजीआइ में पहली बार चार मरीजों की हुई इंडोस्कोपिक सर्जरी
पीजीआइ देशभर के उन गिने चुने स्वास्थ्य संस्थानों में शामिल हो गया है जहां खाने की नली में इंफेक्शन के बाद इंडोस्कोपिक सर्जरी शुरू की गई है। इस बीमारी को एकलीसिया कार्डिया कहा जाता है।
डॉ. रविंद्र मलिक, चंडीगढ़
पीजीआइ देशभर के उन गिने चुने स्वास्थ्य संस्थानों में शामिल हो गया है जहां खाने की नली में इंफेक्शन के बाद इंडोस्कोपिक सर्जरी शुरू की गई है। इस बीमारी को एकलीसिया कार्डिया कहा जाता है। शनिवार को चार मरीजों की यहां पहली बार सफलतापूर्वक यह सर्जरी की गई है। इसी के साथ पीजीआइ नॉर्थ इंडिया का पहला संस्थान बन गया जहां इसकी सर्जरी होती है। इससे पहले बीमारी का कोई कारगर इलाज नहीं था। जो पहले इलाज के तरीके रहे हैें, उनसे बीमारी का प्रभावी व नियमित समाधान नहीं हो पाता। एम्स, दिल्ली में भी यह ट्रीटमेंट करीब एक महीने पहले शुरू किया गया था।
इस सर्जरी को पेरोरल एंडोस्कोपिक माइटॉमी(पोएम) कहा जाता है। इंडोस्कोपिक सर्जरी बेहद प्रभावी व आधुनिक तकनीक है। पीजीआइ में सर्जरी का खर्च करीब 10 हजार तक आता है। प्राइवेट डॉक्टर्स सर्जरी का 2 से 3 लाख तक लेते हैं। इस सर्जरी पर पीजीआइ हैदराबाद के इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी के साथ मिलकर काम कर रहा है। इसकी कड़ी में वहां के डॉ. जहीर ने पीजीआइ का दौरा किया। यहां के डॉक्टर्स डॉ. कोमल गांधी, जनरल सर्जरी से प्रो. अरुणांशु बेहरा, डॉ. विशाल शर्मा, नरेंद्र ढाका और हर्षल मांडवाधरे ने उनके साथ मीटिंग की। क्या है एकलीसिया कार्डिया
इस बीमारी में खाने की नली में दो तरह की दिक्कत होती है। ऊपर वाली मांसपेशी कमजोर हो जाती हैं और नीचे वाली ज्यादा मजबूत हो जाती है। इसके चलते खाने के अंदर जाने या कुछ पीने में दिक्कत होने लगती है। नीचे वाली मांसपेशी फूडपाइप और पेट को जोड़ती है। ऊपर वाली मांसपेशी के कमजोर होने और नीचे वाली के मजबूत होने की स्थिति तो एकलीसिया कार्डिया कहा जाता है। ऐसे होती है इंडोस्कोपिक सर्जरी
इस सर्जरी के जरिए मरीज के शरीर में खाने की नली में 12 से 13 सेंटीमीटर की टनल बनाई जाएगी। पेट और सांस की नली के बीच की मजबूत मांसपेशी ही समस्या की जड़ होती है। इस मांसपेशी को काटना होता है। अंदर तक पहुंचकर इसको काटा जाएगा। यह माइनर सर्जरी है। नए एक्सपर्ट्स के लिए इसमें एक घंटा तो पूरी तरह पारंगत डॉक्टर के लिए करीब 20 से 30 मिनट ही लगते हैं पहले वाली तकनीक से ज्यादा कारगर
बीमारी के इलाज के लिए पहले भी कई ट्रीटमेंट उपलब्ध हैं, लेकिन वो ज्यादा प्रभावी नहीं है। इंडोस्कोपी में गुब्बारा इस्तेमाल कर खाने की नली के रास्ते को चौड़ा किया जाता है, लेकिन छह महीने में इसकी फिर जरूरत पड़ती है। दूसरे ट्रीटमेंट में इंजेक्शन लगता है जो करीब 15 हजार का है। इसकी जरूरत हर तीसरे महीने पड़ती है। तीसरा तरीका है सर्जरी, इसको लेकर ज्यादा मरीज सकारात्मक नही हैं। ऐसे में पोएम प्रक्रिया अन्य की तुलना में बेहद प्रभावी है। ओपीडी में आते हैं करीब 25 से 30 मरीज
बीमारी को लेकर हर सप्ताह औसतन 5 से 6 मरीज आ रहे हैं। पीजीआइ की ओपीडी में आने वाले मरीजों में से 4 की सर्जरी की गई। सभी के नतीजे काफी पॉजीटिव रहे।