आक्रोश की कविता..
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : वो साला बिहारी। कविता का शीर्षक। जिसमें वही गालियां रही, जिससे हम मज
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : वो साला बिहारी। कविता का शीर्षक। जिसमें वही गालियां रही, जिससे हम मजदूरों को संबोधन करते हैं। समाज को आइना दिखाती ऐसी ही कविता, जिसमें आक्रोश भरा है, एक-एक कर पंजाब यूनिवर्सिटी के आइसीएसएसआर में गूंज रही थी। शहर में पहली बार आयोजित अखिल भारतीय ¨हदी युवा लेखक सम्मेलन के अंतिम दिन युवा कवियों ने आक्रोश से भरी कविता पाठ किया। इसमें भेदभाव, सामाजिक मुद्दों और जातिवाद पर कटाक्ष किए गए। कविता वहां भी है, जहां कुछ भी नहीं.
सम्मेलन के पहले दिन अपनी कविताओं से सबसे ज्यादा चर्चा बटोरी अरुणाभ सौरभ ने। उन्होंने कहा कि कविता हर उस समय में जन्मी है, जब विरोध की जरूरत थी। कविता ने एक ऐसा माहौल तैयार किया है, जहां आप इंसान की आजादी की बात कर सकें। मुझे लगता है कि कविता वहां भी है जहां, सब कुछ है और वहां भी जहां कुछ नहीं। मेरी कविता वो साला बिहारी, लिखते वक्त मेरे दिल में महानगरों में नौकर, किसान और मजदूर के रूप में काम करने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों की स्थिती को जाना। ये देखकर दुख होता था, कि जो लोग दूसरे लोगों का काम आसान करते हैं, उन्हें क्या जिल्लत देखने को मिल रही है। खुद भी बिहार से हूं, ऐसे में मैंने ये कविता लिखी। लोगों ने काफी कुछ कहा, कई लोग तो खफा भी हुए, कि आपने ये क्या लिखा है। मगर जो भी हो, ये भाषा उपयुक्त लगी, क्योंकि यही भाषा बोली जाती है। मेरे अनुसार, पहले जो कविता लिखी गई, उनका अंदाज जुदा है। मगर आज जो कविता लिखी जा रही है,वो सच है। युवा कवि इन दिनों हर सरकार से सताए हुए हैं, वो उक्ता के लिख रहे हैं, जो पहले कभी नहीं हुआ। इसलिए आज का युवा कवि, सबसे बेहतर लिख रहा है और सच लिख रहा है। हर समय में कविता जरूरी है
सौरभ ने कहा कि कविता की अहमियत हर समय में है। इन दिनों सोशल साइट्स हैं, कई ऐसे माध्यम हैं, जहां कविता है। कविता को कभी हाथ फैलाए नहीं बैठना पड़ा। वो पाठक खुद बना लेती है, ऐसे में मुझे कवि होते हुए, कभी ये नहीं लगा कि कविता कोई नहीं पढ़ता। हां, ये मुश्किल है कि आप केवल कवि होकर अपना गुजारा करें, मगर फिर भी कवि को समाज में रहना ही होगा, ताकि आईना बराबर दिखता रहे। भाषा वही है, जो बोल-चाल में है
सम्मेलन में दिल्ली से पहुंचे युवा कवि अदनान कफील दरवेश ने कहा कि दरअसल मुझे कविता बचपन से ही पसंद रही। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि मैंने उसको चुना था, ये तो कविता थी, जिसने मुझे चुन लिया। मुझे कभी अपनी कविता किताबों में नहीं भाती थी। मुझे पसंद है इसे अपने पास तक ही रखना। कुछ एक पत्रिका में ये छपी भी, जहां से मुझे भारतभूषण सम्मान मिला। दरअसल, मुझे अपनी कविता में कोई एक भाषा नहीं दिखती। भाषा अपने अहसास को व्यक्त करने का भाव है। इसमें शब्द, उर्दू के भी रहते हैं और ¨हदी के भी। एक कवि को मैं समाज का आईना दिखाने वाला कहता हूं। जो समाज में दुखी रहकर, कुछ लिखता है।