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बदलते डेमोग्राफिक आंकड़ों की अनदेखी देश के लिए बड़ा खतरा

साजिश के तहत निकालना इस्लामिक जिहाद का हिस्सा था यह आजादी की लड़ाई नहीं थी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 19 Jan 2020 09:07 PM (IST)Updated: Mon, 20 Jan 2020 06:16 AM (IST)
बदलते डेमोग्राफिक आंकड़ों की अनदेखी देश के लिए बड़ा खतरा
बदलते डेमोग्राफिक आंकड़ों की अनदेखी देश के लिए बड़ा खतरा

विकास शर्मा, चंडीगढ़ : कश्मीरी पंडितों को जम्मू-कश्मीर से एक साजिश के तहत निकालना इस्लामिक जिहाद का हिस्सा था, यह आजादी की लड़ाई नहीं थी। बदलते डेमोग्राफिक आंकड़ों के खतरे को भारत की सरकारें समझ नहीं रही हैं। रोहिग्या मुसलमानों को जम्मू कश्मीर में बसाना भी इसी साजिश का हिस्सा है, देश के कई राज्यों में गायब हो चुके हैं हिदुओं के गांव। यह कहना है कश्मीरी पंडित रमेश पंडिता का। रमेश ने बताया कि आज से तीस साल पहले हुए नरसंहार में 500 से ज्यादा कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया गया। हम उस नरसंहार में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के मकसद से इकट्ठे हुए हैं। ट्राईसिटी के अलग-अलग हिस्सों में बसे कश्मीरी पंडितों ने रविवार को सेक्टर-24 स्थित कश्मीर भवन में इकट्ठे होकर शहीद कश्मीरी पंडितों को श्रद्धांजलि दी और अपना दुख एक-दूसरे से बांटा। कश्मीरी सहायक सभा की तरफ से आयोजित इस कार्यक्रम संजय रैना, जयकिशन रैना, अश्वनी साधू समेत सैकड़ों कश्मीर पंडित मौजूद रहे। साढ़े चार लाख कश्मीरी पंडितों के जख्मों को किसी ने नहीं लगाया महरम

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रिटायर्ड स्कवाड्रन लीडर बीएल साधू ने कहा कि जम्मू-कश्मीर से साढ़े चार लाख कश्मीरी पंडितों को बाहर निकाला गया था। ये लोग पिछले 30 साल से शांतिपूर्वक ढंग से आवाज उठा रहे हैं लेकिन किसी भी भारतीय सरकार को कश्मीरी पंडितों का दर्द समझ नहीं आया। कश्मीरी लोग डरपोक नहीं हैं लेकिन उन्होंने कभी भी इस देश को पराया नहीं समझा। जो आगजनी करके, सड़कों पर विरोध करके अपने हक की लड़ाई लड़े। उन्हें दुख होता है जब यूएनओ में इस बात पर चर्चा होती है कि कश्मीरी लोगों को इंटरनेट नहीं मिल रहा है जबकि साढ़े चार लाख लोगों को रातोंरात घर से बाहर निकालने का दर्द कोई नहीं समझता। हर बात पर याद आता है अपना घर, रोने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते

कश्मीरी पंडित नंसी गंजू ने बताया कि कश्मीरियों ने वर्षो ठोकरें खाने के बाद अब जीना सीख लिया है। आज हमारे पास सबकुछ है लेकिन जब हम कश्मीर से निकले थे तो हमारे पास पानी पीने के लिए गिलास तक नहीं था। वर्षो टैंट में गुजार दिए लेकिन कोई पूछने नहीं आया। आज भी हर बात पर हमें कश्मीर के वो अपने कच्चे घर याद आते है। आज भी हम सोचते हैं कि काश कुछ ऐसा हो कि हम अपने घर वापस जा पाएं लेकिन यह कैसे हो पाएगा। यह किसी को मालूम नहीं।


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